शीर्षक - अनार बम
शीर्षक - अनार बम
वैसे तो मायके में बचपन का हर दिन उत्सव होता है ।
आज जब वह दिन याद आते हैं तो लगता है कि जैसे हर रोज दिवाली रहती थी हमारी। और दिवाली तो सचमुच बहुत खास होती थी।
पिताजी व्यापार के सिलसिले में अक्सर मुंबई में रहते थे।
पर दिवाली के त्यौहार में जरूर घर आते थे।
और फिर हम सब बच्चों के लिए तो मानो जैसे अलादीन के चिराग बन जाते थे।
जो चाहे जितनी भी फरमाइश है सब पूरी होती थी।
कितने प्रकार के पकवान मिठाईयां नए नए कपड़े क्या कुछ नहीं होता था दीपावली में।
पर एक दिवाली की याद भुलाए भी नहीं भूलती जब हम सब पूजा करने के बाद आतिशबाजी करने के लिए छत पर गए और आतिशबाजी करने लगे तो एक जगह हम लोग रॉकेट छुड़ा रहे थे और एक और पिताजी अनार बम पर अचानक पता नहीं क्या गड़बड़ी हो गई कि जो हम लोगों ने रॉकेट छोड़ा वह पड़ोस के अंकल के पजामे में घुस गया और पिता जी ने जो अनार बम छोड़ा भी फट गया तो उससे उनका पूरा हाथ घायल हो गया ।
हम सभी लोग इतना सहम गए कि सारी दिवाली का मजा किरकिरा हो गया ।
और आज भी मैं अनार बम से बहुत डरती हूं मेरे मन के किसी कोने में अंदर तक दहशत भर गई अनार बम से।
और वैसे भी अब हम लोगों ने दिवाली के दिन पटाखे तो छोड़ना बंद ही कर दिया है क्योंकि पर्यावरण बहुत ज्यादा प्रभावित होता है।
हमें ऐसी खुशियां मनाना है जिससे हमारी प्रकृति प्रभावित ना हो। क्योंकि जब हमारी प्रकृति हमसे खुश रहेगी तभी हमारा और हमारी आने वाली पीढ़ियों का जीवन संभव है।