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विद्या का व्यापार

विद्या का व्यापार

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कैलाश चिंतित था, इस बार फिर दोनों बच्चों की फीस बढ़ गई थी। ऐसा नहीं था कि वह अकेला कमाने वाला था। वह और उसकी पत्नी वर्षा मिल कर ठीक ठाक कमा लेते थे पर कमाई का बड़ा हिस्सा बच्चों की शिक्षा पर लग रहा था। फिर भी दोनों यह सोच कर कि बच्चों का भविष्य संवर जाएगा उन्हें महंगे स्कूल में पढ़ा रहे थे। 

कैलाश को चिंतित देख कर वर्षा ने पूछा-

"बात क्या है बहुत चुप हो ?"

"इस बार फिर स्कूल की फीस बढ़ गई।"

"हाँ....पर क्या सकते हैं ? बच्चों को तो पढ़ाना ही है। अन्यथा वह सबसे पीछे रह जाएंगे।"

"बात तुम्हारी एकदम सही है। पर मैं सोच रहा था कि यह स्कूल दिन पर दिन पैसा कमाने के अड्डे बनते जा रहे हैं। कोई कुछ करता नहीं।"

कैलाश की बात सुन कर वर्षा भी सोच में पड़ गई। कुछ क्षणों के बाद बोली। 

"एक बात सोच कर देखो। हम मिडिल क्लास इतनी मेहनत करते हैं ताकि सही ज़िंदगी जी सकें। हमारा पूरा प्रयास रहता है कि बच्चों को सही शिक्षा दिला सकें। जिससे वह भविष्य में आगे बढ़ सकें। सही तरीके से पैरों पर खड़े हो सकें। हमारी सारी ऊर्जा तो इसी सब में लग जाती है। फिर प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के आगे झुकने के अतिरिक्त चारा ही क्या है। हमारे पास जॉब और घर संभालने के बाद समय कहाँ रहता है कि हम सड़कों पर उतर कर विरोध करें।"

वर्षा की बात सही थी। मध्यम वर्गीय परिवारों में एक ही बात सबसे ऊपर रखी जाती है। बच्चों की अच्छी शिक्षा। माता पिता इसी में परेशान रहते हैं। पहले स्कूल की फीस। उसके बाद कोचिंग सेंटर की।  बच्चे पढ़ाई के अतिरिक्त भी कुछ सीख सकें इसके लिए हॉबी क्लास या स्पोर्ट क्लास की फीस। इतना पैसा सिर्फ बच्चों की शिक्षा पर लगता है। इस सब का बोझ अंततः बच्चों पर पड़ता है। माता पिता उनसे सदा अव्वल रहने की उम्मीद करते हैं। उनकी क्षमताओं के विषय में सोचे बिना उन पर अपने हिसाब से कैरियर चुनने का दबाव बनाते हैं। 

कैलाश ने अपने मन की बात वर्षा को बताई।

"तुमको नहीं लगता हम सब एक अजीब सी व्यवस्था में हम सब उलझते जा रहे हैं। अभिभावक और बच्चे सब एक दौड़ में भाग रहे हैं।"

कैलाश ने रुक कर वर्षा को देखा। वह भी इस विषय में सोच रही थी।

"वर्षा आज मुझे पापा की बात सही तरह से समझ में आ रही है। वह कहते थे कि आज शिक्षा चरित्र निर्माण के लिए नहीं बल्कि दौड़ जीतने के लायक बनाने के लिए है। विद्या का दान नहीं कारोबार हो रहा है।"

वर्षा को बात ठीक लगी, वह बोली।

"ये तो ठीक है। पर यह हमारे ऊपर है कि बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा भी दें पर समस्या सिर्फ यह नहीं है। बात स्कूली शिक्षा के व्यवसायीकरण की है। अगर शिक्षा के लिए हमारी निर्भरता प्राइवेट स्कूलों पर कम हो जाए तो यह स्थिति सुधर सकती है पर हमारे पास सही विकल्प उपलब्ध नहीं है। जब सही विकल्प उपलब्ध होंगे तो बताओ हम भी मेहनत की कमाई प्राइवेट स्कूलों पर क्यों लुटाएंगे।"

वर्षा ने समस्या का सही कारण ढूंढा था, कैलाश ने उसे शाबासी देने के लिए उसकी पीठ थपथपाई।


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