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वड़वानल - 29

वड़वानल - 29

8 mins
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सवाल  पूछे  जा  रहे  थे ।  दत्त  जो  मुँह  में  आए  वो  कह  रहा  था ।  शुरू  में उसे अच्छा लगा । मगर बाद में यह सब बर्दाश्त के बाहर होने लगा । पूरे साढ़े चार घण्टे – सुबह साढ़े आठ बजे से दोपहर के एक बजे तक - पैर लटकाए उस स्टूल पर बैठना; पूरा शरीर जकड़ गया था ।

जाँच  कमेटी  के  सदस्यों  को  हर  आधे  घण्टे  में  चाय,  कॉफी,  शीतल  पेय, फल आदि दिये जा रहे थे । सिगरेट वे पी सकते थे । उकता जाने पर थोड़ा टहल सकते   थे ।

मगर  दत्त  मानो  उस  स्टूल  से  बँधा  बैठा  रहा ।  ऊपर  से  वह  तीव्र  प्रकाश और सवालों की बौछार; मस्तिष्क धुनक गया था । भूख से पेट में चूहे दौड़ रहे थे । यह सब कब खत्म होगा,   इसकी वह बेचैनी से राह देख रहा था ।

कमेटी दत्त को बेज़ार करके सत्य खोजना चाहती थी । उसके साथियों को ढूँढना था । कमेटी सन् 1857 की पुनरावृत्ति नहीं चाहती थी । उन्हें ‘आजाद हिन्दुस्तानी’ के रूप में दूसरी आज़ाद हिन्द सेना का निर्माण नौसेना के भीतर नहीं होने देना था । बग़ावत के इस बढ़ते हुए पौधे को यहीं उखाड़ फेंकना था ।

''Secure Hands to Dinner!'' क्वार्टर   मास्टर   ने   घोषणा   की ।

''Board is adjourned till 14.30 hrs today.'' सामने रखी फाइल बन्द करते हुए एडमिरल कोलिन्स ने घोषणा की ।

''March off the accused.'' कमाण्डर  खन्ना  ने  ऑर्डर  दिया ।

दत्त  ने  राहत  की  साँस  ली । वह स्टूल से नीचे उतरा । उसके पेट में खलबली मच  रही  थी ।  कानों में विचित्र–विचित्र आवाज़ें आ रही थीं । पहरेदारों की सहायता से वह किसी तरह सेल   में   आया ।   सेल   में   उसका   खाना   आ   चुका   था । खाने की इच्छा ही नहीं हो रही थी । मगर दोपहर को दुबारा जाँच का सामना करना है । अत: पेट में कुछ डालना ही चाहिए इसलिए उसने खाना बड़े बेमन से छुआ ।

पानी के घूँट के साथ–साथ चार निवाले मुँह में डाले । पेट बुरी तरह से खलबला गया । वह समझ गया कि शरीर मन का साथ नहीं दे पा रहा है ।

‘‘नहीं,   ऐसा नहीं होना चाहिए!’’   वह स्वयं को हिदायत दे रहा था ।

‘‘ये तो कुछ भी नहीं । असली इम्तहान तो आगे है । इसलिए स्वयं को सँभालना होगा ।’’

पेट में बड़ा लोढ़ा घूम गया,    शरीर की शक्ति किसी ने निचोड़ ली,  भड़भड़ाकर उल्टी और चक्कर... खुद को सँभालने से पहले ही वह गिर गया । किसी तरह घिसटते हुए गन्दगी से दूर हुआ । बड़ी देर तक वह पड़ा रहा । उठना हो ही नही पा रहा था ।

‘‘अब कुछ करना चाहिए, वरना गलती से मुँह से निकला एक भी शब्द घात करेगा!’’ वह पुटपुटा रहा था । कुछ भी सूझ नहीं रहा था । मस्तिष्क कीचड के गोले की तरह लिबलिबा हो रहा था ।

क्वार्टर   मास्टर   ने   चार   घण्टे   बजाये ।   दो   बज   रहे   थे ।

''Come on, get up and get ready.'' गोरा सन्तरी दत्त पर बरसा । दत्त किसी तरह उठा । कपड़े ठीक किए । ‘शेरसिंह से मिलना चाहिए था–––’’ मन में ख़याल आया और सुबह दास ने धीरे से जो चिट्ठी थमाई थी उसकी याद आई ।

वह   सँभला ।

इन्क्वायरी रूम के ऊँचे स्टूल पर वह सन्तुलन बनाए बैठा । सवालों की बारिश फिर शुरू हो गर्ई ।

‘‘तुमने   सरकार   विरोधी   काम   किए   हैं ?’’   पार्कर ।

 ‘‘मैंने  स्वीकार  किया  है ।’’  दत्त ।

‘‘क्या तुम्हें याद है कि तुमने सरकार के प्रति ईमानदार रहने की अपनी निष्ठा  ‘हर  मैजेस्टी’  के  चरणों  पर  अर्पित  करने  की  शपथ  ली  थी ?’’  खन्ना ।

‘‘हाँ ।’’  दत्त ।

‘‘फिर यह गद्दारी करने के लिए तुम क्यों प्रवृत्त हुए ? तुम्हें ये सब करने के लिए किसने उकसाया ।’’   पार्कर।

‘‘शपथ ली थी तब मैं बेवकूफ था । स्वतन्त्रता का मूल्य मैं नहीं जानता था । मगर आज मुझे स्वतन्त्रता  का  सही  अर्थ  समझ  में  आ  गया  है ।  मुझे  उकसाने की ज़रूरत ही नहीं थी ।   मैं   खुद   ही   भड़क   उठा   था ।’’   दत्त ।

‘स्वतन्त्रता,     सत्याग्रह,     कानून     तोड़ना - ये सारे राजनेताओं के खेल हैं । सैनिकों का इससे कोई लेना–देना  नहीं  है ।  मुझे  आज्ञा  देने  वाले  लोग  वैध  हैं  या  नहीं; उनकी आज्ञाएँ कानूनन सही हैं अथवा नहीं; इस सबका विचार सैनिकों को नहीं करना चाहिए, यह बात तुम निश्चित रूप से जानते हो । तुमने अपने मन से यह सब किया नहीं है, तुम्हें बाहरी क्रान्तिकारियों की शह है । कौन थे    ये क्रान्तिकारी ?’’ कमाण्डर यादव ।

दत्त  कमाण्डर  यादव  को  और  उस  जैसे  अन्य  हिन्दी  अधिकारियों  को  अच्छी तरह जानता था । अपने स्वार्थ के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, इस बात की उसे जानकारी थी । कमाण्डर यादव ने  दत्त  से  प्रश्न  पूछकर  अपनी  निष्ठा स्पष्ट    की    थी ।    दत्त    ने    यादव    को    खरी–खरी    सुनाने    का    निश्चय    कर    लिया,    ‘‘स्वतन्त्रता हर  व्यक्ति  का  नैसर्गिक  अधिकार  है,  फिर  चाहे  वह  व्यक्ति  सैनिक  हो,  मुल्की हो या अधिकारी हो, उसे यह अधिकार मिलना ही चाहिए । यदि यह अधिकार अप्राप्य हो तो परिणामों की परवाह किये बिना इस अधिकार के लिए   प्रयत्न करना चाहिए । किसी भी व्यक्ति को अपनी निष्ठा सर्वप्रथम अपनी मातृभूमि को, मातृभूमि की स्वतन्त्रता को समर्पित करना चाहिए । जो व्यक्ति अपनी तथा मातृभूमि की स्वतन्त्रता को तिलांजलि देकर क्षुद्र स्वार्थ के लिए विदेशियों के पैर चाटते हैं उन्हें इस देश में रहने का अधिकार नहीं, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है और इसीलिए पूरी तरह से स्वतन्त्र रूप से मैं सत्ता के विरुद्ध खड़ा हो गया ।’’

दत्त के उत्तर से यादव और खन्ना गुस्से से लाल हो गए थे । यदि सम्भव होता तो वे दत्त पर हाथ भी चला देते, मगर कोलिन्स के सामने यह सम्भव नहीं था ।

''Mind your language, पूछे गए सवालों के सीधे–सीधे जवाब दो । औरों को सिखाने की कोशिश मत करो, और यह मत भूलो कि तुम एक सैनिक हो, राजनेता नहीं,’’   कोलिन्स   ने   कहा ।

दत्त   को   शेरसिंह   की   याद   आई ।   सुबह   दास   के   हाथों   आया   सन्देश - ‘‘हिम्मत करो । अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़े रहो । तुम्हारे पीछे सैनिक खड़े हो जाएँगे,   सर्वसामान्य जनता  खड़ी  हो  जाएगी–––  यही  वक्त  है ।  चल  उठ,  आवाहन कर अगले संघर्ष का...’’  शेरसिंह  के  शब्द  मन  में  गूँजने  लगे ।  उसकी  क्षीणता  दूर  हो  गई ।  एक नये चैतन्य का आभास हुआ और वह झट   से   उठकर   खड़ा   हो   गया ।

‘‘मैं तुम्हारी इस रॉयल इंडियन नेवी के कायदे–कानूनों को नहीं जानता । हिन्दुस्तान  की  स्वतन्त्रता  के  लिए  खड़ा  हुआ  स्वतन्त्रता  सैनिक  हूँ  मैं...’’  दत्त  चीख रहा   था ।

''You better shut your mouth and answer the questions'', तिलमिलाया हुआ रियर एडमिरल कोलिन्स चिल्लाया ।

''No. you cannot keep my mouth shut. I am fighting for the freedom of my motherland.'' दत्त चिल्ला रहा था। '' I am a freedom fighter and you must treat me as a political prisoner.'' वह दृढ़ निश्चय के साथ खड़ा   रहा ।

दत्त  की  इस  अचानक  चली  गई  चाल  से  जाँच  कमेटी  के  सदस्य  अवाक् रह गए । इससे पूर्व भी नौसेना में विद्रोह हुए थे, मगर ऐसी माँग तो किसी ने भी  नहीं  की  थी ।  दत्त  मन ही मन खुश हो रहा था,  वांछित परिणाम प्राप्त हो गया   था ।

‘‘तुम  एक  सैनिक  हो  और  सैनिकों के सारे कायदे–कानूनों से बँधे हो’’, खन्ना चीखा ।

‘‘चिल्ला–चोट मचाकर मुझे डराने की कोशिश न करो । मैं राजनीतिक कैदी हूँ । नारे मैंने लिखे हैं, पोस्टर्स चिपकाए  हैं,  और  उन्हें  चिपकाते  हुए  तुमने  मुझे पकड़ा है । इसलिए तुम्हें मुझे राजनीतिक कैदी का दर्जा देना होगा । राजनीतिक कैदियों को दी जाने वाली सुविधाएँ मुझे मिलनी चाहिए, वरना मैं तुम्हारे किसी भी  सवाल  का  जवाब  नहीं  दूँगा ।  सत्याग्रह  शुरू  कर  दूँगा ।’’  खन्ना  से  अधिक ऊँची आवाज़ में दत्त ने सुनाया ।

‘‘सन्तरी ऽऽऽ’’    यादव ने दत्त को काबू में लाने के लिए सन्तरी को पुकारा ।

‘‘बुला, सन्तरी को बुला ।’’ दत्त ने जमीन पर पालथी मारे बैठते हुए कहा और  उसने  जाँच  कमेटी  को  चेतावनी  दी । “मैं पूरी बेस को यहाँ इकट्ठा करता हूँ और फिर...’’  वाक्य आधा छोड़कर उसने नारे लगाना शुरू    किया,    ‘‘वन्दे मातरम्... जय हिन्द... क्विट इण्डिया... अंग्रेज़ों! चले जाओ... ।’’

''Stop him! Hey, you, stop this nonsense!'' कोलिन्स   चीखा ।

‘‘मारो, पीटो साले को!’’ यादव और खन्ना सन्तरी पर चिल्लाए ।

दरवाजे़   में   खड़े   सन्तरी   की   दत्त   को   रोकने   की   हिम्मत   ही   नहीं   हुई ।

‘‘क्या  हुआ ?  कौन  चिल्ला  रहा  है ?  किसलिए  चिल्ला  रहा  है ?’’  दत्त  की चीख–पुकार  से  एडमिनिस्ट्रेटिव  ब्लॉक  के  सारे  सैनिक  इन्क्वायरी  रूम  के  सामने इकट्ठा   होकर   एक–दूसरे   से   पूछ   रहे   थे ।

''Come on, all of you get back to your work! Come on!'' पार्कर के चिल्लाने का वहाँ एकत्रित सैनिकों पर कोई   असर   नहीं   हो   रहा   था ।

''Oh, god! इसे रोकना ही होगा ।’’ कोलिन्स अपने आप से बुदबुदाते हुए दत्त के निकट गया और यथा सम्भव दिमाग को ठण्डा रखकर उसे समझाने लगा ।

''Listen to me, stop shouting and listen to me.''

दत्त शान्ति से उठकर खड़ा हो गया । उसने नारे लगाना बन्द कर दिया ।

कोई भी समझ नहीं पा रहा था कि क्या करना चाहिए । दत्त ने एक बार फिर बाज़ी मार ली थी ।   उसने जाँच कमेटी को परेशानी में डाल दिया था ।

''You wait outside, we shall let you know our decision.'' कोलिन्स ने दत्त से कहा और दत्त पहरेदार के साथ  बाहर  गया ।  बाहर जाते–जाते  उसने फिर   से   चेतावनी   दी, ''Remember, my cooperation depends on your decision.''   

दत्त के बाहर जाने के बाद जाँच कमेटी के अधिकारी अपनी–अपनी जगह बैठ गए । उनके चेहरों पर अस्वस्थता    झलक    रही    थी । ‘नौसेना    के    कानून    के    अनुसार क्या  गुनहगार  सैनिक  राजनीतिक  कैदी  हो  सकता  है ?’  कोलिन्स  के  इस  सन्देह पर  पार्कर  ने  नौसेना  के  कानूनों  की  किताबें  पलटना  शुरू  कीं,  मगर कोई कड़ी नहीं   मिली ।

‘‘सर, कानून में तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, यदि हो तो भी दत्त को राजनीतिक कैदी का दर्जा दिये जाने पर भविष्य में इसके क्या परिणाम होंगे इस पर   भी   विचार   करना   होगा ।’’   खन्ना   के   मन   में   भय   था ।

‘‘कमाण्डर खन्ना ठीक कह रहे हैं । कल को हर गुनहगार चार नारे लगाएगा और राजनीतिक कैदियों की सुविधाएँ माँगने लगेगा ।’’ यादव ने खन्ना की बात का   समर्थन   किया ।

 ‘‘मेरा ख़याल है कि नौसेना के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक डेढ़ दमड़ी का काला सैनिक एक रियर एडमिरल के सामने मुँह उठाकर न सिर्फ बोल रहा है, बल्कि मेरी माँगें पूरी न हुर्इं तो मैं असहकार आन्दोलन करूँगा ऐसी धमकी दे रहा है । It is too much. We must teach him a good lesson.'' खन्ना ने   अपनी   राय   दी ।

‘‘इन्कलाब जिन्दाबाद, वन्दे मातरम्, जय हिन्द…’’ बाहर हो रही गड़बड़ी से बेचैन होकर कोलिन्स ने पार्कर की ओर देखा, ‘‘ये सब बन्द कमरे में हो रहा था तब तक तो ठीक था । मगर अब खुले में, सबके सामने… इसका परिणाम…go and stop it.'' उसने पार्कर से कहा । पार्कर शीघ्रता से बाहर आया ।

‘‘क्या  गड़बड़  है ?’’  उसने  पहरेदार  से  पूछा ।

‘‘मैं बताता हूँ, तुमने जो ऊँचा स्टूल दिया था उस पर बैठने से मेरी पीठ अकड़ गई है । इसलिए मैंने इस पहरेदार से एक कुर्सी माँगी तो साला डरपोक मुझसे कहता है, तू एक कैदी है, साम्राज्यद्रोही है । अधिकारियों की इजाज़त के बगैर दूँगा तो मुझे सज़ा हो जाएगी ।’’ दत्त ने जानकारी दी और पार्कर के सामने ही पहरेदार पर चिल्लाया,  ‘‘अरे,  बहरा हो गया है क्या?  क्या कह रहा हूँ,  वो सुनाई नहीं देता? मुझे कुर्सी चाहिए...।’’

‘‘दे उसे, कुर्सी लाकर दे ।’’ पहरेदार से पार्कर ने कहा । 

‘‘हँ हँ, एक मिनट अब मुझे कुर्सी नहीं चाहिए । अब मुझे बेंच चाहिए। अन्दर तुम लोगों की चर्चा पूरी होने तक थोड़ी नींद ले लूँगा ।’’  पार्कर  की  ओर  देखते  हुए  दत्त  ने  कहा ।

दत्त की इस मुँहजोरी पर पार्कर को गुस्सा आ गया था । ‘यह अपने आप को समझ क्या रहा है ? Bloody black pig!’ मन ही मन उसने दत्त को गालियाँ दीं, मगर चेहरे पर कुछ भी न दिखाते हुए उसने सन्तरी से कहा, ‘‘ठीक है उसे बेंच लाकर दे ।’’

सन्तरी ने उसे बेंच लाकर दी । उस सन्तरी के चेहरे पर प्रशंसायुक्त आदर के भाव थे । आज पहली  बार  उसने  एक  हिन्दुस्तानी  सैनिक  को  शाही  नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी को बिना डरे उल्टे जवाब देते हुए देखा था; अधिकारी को झुकाते हुए देखा था।

इन्क्वायरी रूम में कोलिन्स सिर पकड़कर बैठा था । स्टिवर्ड द्वारा लाई गई गरमा–गरम चाय के दो घूँट पीकर उसे कुछ अच्छा लगा । कोलिन्स ऊपर से शान्त प्रतीत हो रहा था, मगर भीतर से वह बहुत अस्वस्थ था । अपने खलासी–जीवन में   उसने   अनेक   तूफानों   का   सामना   किया   था ।

वे सारे तूफ़ान प्रकृति निर्मित थे । मगर आज का यह तूफ़ान एक फटीचर सैनिक ने अचानक खड़े होकर अपने देशप्रेम के बलबूते पर पैदा किया था । इस तूफान में न केवल जाँच कमेटी की नैया,  बल्कि अंग्रेज़ी  हुकूमत के विशाल जहाज़ के भी डूबने की आशंका से वह बेचैन हो गया था । उसे डर था कि यह तूफ़ान सब   कुछ ध्वस्त कर देगा ।

''It is too much, sir!'' पार्कर वहाँ की खामोशी तोड़ते हुए अपने विचार प्रस्तुत कर रहा था,  ‘‘मेरा  ख़याल  है  कि  हम  उसे  ज्यादा  ही  सिर  पर  चढ़ा  रहे हैं । उसे उसकी जगह दिखा देनी   चाहिए ।’’

''We must get rid of him at the earliest.'' खन्ना ने पुश्ती जोड़ी ।

''Take it easy. क्रोध   करने   से   काम   नहीं   चलेगा ।   पूरी   तरह   से   विचार   करना होगा ।’’   अनुभवी   कोलिन्स   ने   उन्हें   समझाया ।

‘‘हम इस समस्या के दोनों पक्षों पर विचार करेंगे । पहला - यदि उसे सहूलियत दी जाती है तो क्या होगा ?’’

‘‘सेना   में   एक   गलत   प्रथा   आरम्भ   हो   जाएगी ।’’   खन्ना।

‘‘सेना  का  सारा  अनुशासन  ख़त्म  हो  जाएगा ।  सेना  पर  से  हमारी  पकड़ छूट जाएगी । हडताल,  सत्याग्रह,  काम  रोको  आदि  की  छूत  सेना  को  लग  जाएगी ।’’ यादव।

‘‘हिन्दुस्तान हाथ से निकल जाएगा और साम्राज्य पर से सूरज कुछ साल पहले ही अस्त हो जाएगा ।’’   पार्कर ।

‘‘और इस सबके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा मुझे और सिर्फ मुझे ।’’ कोलिन्स   ने   उद्विग्नता   से   कहा ।

‘‘और   यदि   सहूलियतों   से   इनकार   करें   तो––– ।’’

‘‘सर, मेरा ख़याल है, सहूलियतों से इनकार करें तो, यदि वह जाँच कमेटी को सीधे रास्ते से सहयोग नहीं दे रहा हो,  तो हमें सख़्ती करनी पड़ेगी । वक्त आने पर थर्ड डिग्री मेथड का भी प्रयोग करना होगा, ‘‘खन्ना ने राजकर्ताओं को खुश करने वाला जवाब दिया ।

‘‘सर,  इतनी  आसानी  से  यह  निर्णय  नहीं  लिया  जा  सकता...। अकेले अपने बलबूते पर तो दत्त यह कर नहीं रहा है । यदि सहूलियतें न दी गईं तो एक तो वह सहयोग नहीं करेगा; दूसरे चिल्ला–चोट मचाएगा । हमें कुछ भी हासिल नही होगा,   उल्टे क्रोधित सैनिक शायद बग़ावत कर देंगे । शायद दूसरा 1857…’’  पार्कर का सन्देह ।

‘‘सर, मेरा ख़याल है कि यदि उसके पीछे कोई होता तो उन्होंने अब तक बग़ावत कर दी होती । ‘‘यादव ने पार्कर के शक को खारिज करने की कोशिश की । यादव के जवाब पर कोलिन्स हँस पड़ा ।

‘‘वे, यूँ ही, अचानक अंग्रेज़ों के ख़िलाफ खड़े होकर क्या आत्मघात कर लेंगे ? पिछले तीन महीनों की घटनाओं पर अगर गौर करें तो इसका जवाब होगा ‘नहीं’। एक–एक व्यक्ति को आगे बढ़ाकर माहौल को ज्यादा से ज्यादा गरमाने का उद्देश्य है उनका । देखा नहीं उसने, दत्त कैसे आत्मविश्वास से बोल रहा था ? तुम  हिन्दुस्तानी  होकर  उनकी  चालें  नहीं  समझते ?’’  कोलिन्स  की  टिप्पणी  से  यादव का मुँह लटक गया ।

‘‘सर,   पहले हमें इस बात की जाँच करनी चाहिए कि क्या उनके पीछे केवल सैनिक हैं, या बाहर के क्रान्तिकारी हैं ?’’ पार्कर के इस विचार पर कोलिन्स ने सहमति दर्शाई ।

‘‘दूसरे, उसकी माँगें मामूली भी हो सकती हैं । यदि वे मामूली हैं तो हम उन्हें मान्य कर लेंगे । इसमें हमारा कोई नुकसान नहीं है, बल्कि हमारे दिल का बड़प्पन   ही   दिखाई   देगा ।’’

‘‘तुम्हारी   बात   विचार   योग्य   तो   है; मगर...’’

कोलिन्स   को   बीच   ही   में   रोकते   हुए यादव कहने लगा,   ‘‘माफ कीजिए,   सर । मैं  पार्कर की  राय  से  सहमत  नहीं  हूँ ।  मेरे  अनुमान  से  दत्त  के  पीछे  हद  से  हद आठ–दस सैनिकों का गुट होगा । ‘दण्ड और भेद’ की नीति अपनाकर हम उन्हें ढूँढ़ निकालेंगे ।’’

‘‘यादव, तुम मूर्खों के नन्दनवन में टहल रहे हो ।’’ पार्कर ने उसके ऊपर अखबार फेंकते हुए कहा, ‘‘यह अखबार देखो। दत्त की गिरफ़्तारी की ख़बर उसकी फोटो समेत छपी है पहले पृष्ठ पर ।’’

‘‘मैंने देखी है वह ख़बर और इसीलिए मैं जल्दबाजी नहीं करना चाहता । तुम   अपनी   राय   बताओ ।’’   कोलिन्स   ने   पार्कर   को   प्रोत्साहित   किया ।

‘‘सर, ध्यान दीजिए । आज तक नौसेना में कई विद्रोह हुए, मगर उनकी न तो कोई ख़बर बनी, न ही वह मुल्की लोगों को ज्ञात हुए । आज एक सैनिक को गिरफ्तार करते ही न केवल उसकी ख़बर बन गई, बल्कि उसकी फोटो भी छप गई - वह भी मोटे–मोटे अक्षरों में, प्रमुख समाचार के रूप में – पहले पृष्ठ पर । इसी का यह मतलब हुआ कि दत्त के पीछे केवल सैनिक ही नहीं, बल्कि बाहर के  भूमिगत  क्रान्तिकारी  भी  हैं ।  वे  इस  घटना  पर  नजर  रखेंगे,  दत्त  की  इन  हरकतों की प्रतिक्रियाओं का लाभ उठाकर वातावरण कैसे विस्फोटक बनाया जाए और सेना  में  कैसे  बगावत  करवाई  जाए  इस  बारे  में  उन्होंने  कुछ  योजनाएँ  बनाई  होंगी । इसलिए हमें अत्यन्त सावधानी से कदम उठाना होगा ।’’ पार्कर ने परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए अपनी राय दी ।

‘‘तुम्हारा कहना उचित है ।’’ कोलिन्स ने सहमति प्रकट की । ‘‘अब निर्णय हमें लेना है । शायद हमारा निर्णय ऐतिहासिक सिद्ध हो । हमारा कोई भी कदम, कोई  भी  निर्णय यदि गलत सिद्ध हुआ तो उसके साम्राज्य पर घातक परिणाम होंगे और इसके लिए हम, सिर्फ हम, पूरी तरह से जिम्मेदार होंगे । मेरा विचार है कि हम जो भी निर्णय लें,   वह अपने वरिष्ठों की सलाह से लें ।’’



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