परम्परा
परम्परा
अरे सुबह से ही भागदौड़ कर रही हो, पहले चाय पी लो फिर कुछ करना, ये कहते हुए मैंने अपनी बेटी पम्मी को अपने पास बिठा लिया।'
'चाय का कप अपने हाथ में लेते हुए पम्मी ने कहा-
अम्मा, गाँव की लगभग सभी औरते आ गई है,
क्या मै मुंँहदिखाई रश्म के लिए भाभी को ले आऊ?'
"अभी एक दो लोग बाकी है उनके आते ही मुंँहदिखाई के लिए बहू को ले आना, बहू तैयार तो है ना ?"
'हांँ अम्मा, लेकिन बाहर गाँव की औरतों में तरह-तरह की बातें चल रही है नई बहू के बारे में।'
"ये तो होना ही था अमेरिका में पढ़ी-बड़ी भारतीय लड़की जब इस गाँव की बहू बनकर आयी है तो सौ तरह की बातें बनेगी ही, लेकिन मुझे लोगो की बातें सुनकर अपना मन खराब नहीं करना। कुछ हफ्तों में बेटा और बहू वापस परदेश चले जाएंगे ऐसे में जितना भी समय हमारे पास है वो हँसी खुशी बीत जाये ऐसा यत्न करना चाहिए।"
'अम्मा, नई बहू से तुम खुश तो हो ना ?'
"मै बहुत खुश हूँ पम्मी, नई बहू पराये देश में रहते हुए भी भारतीय सभ्यता संस्कृति से जुड़ी हुई है, यह बहुत बड़ी बात है। घर के सभी सदस्यों का कितना आदर करती है, उसे देखकर लगता ही नहीं कि इतने दूर देश से आयी है। मुझे अपने बेटे की पसंद पर गर्व है। अब जाओ नई दुल्हन को लाओ सभी लोग आ चुके है।"
नई दुल्हन की मुँहदिखाई शुरू होती है और गाँव की सभी औरतें कुछ ना कुछ सगुन के रूप में बहू को देती है, और नई बहू धन्यवाद स्वरूप सभी बड़ों के पैर छूती है। मै भी सभी के समक्ष बहू को मुंहदिखाई में अपने खानदान का पुश्तैनी कंगन देती हूँ ।
"ये मेरी सास ने मुझे दिया था आज मै तुम्हे दे रही हूँ । इसे सिर्फ कंगन नहीं समझना बहू, यह हमारे पुरखों का आशीर्वाद है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा के रूप में हमारे परिवार में चली आ रही है।"
नई बहू उठकर मेरे पैर छूती है और फिर पम्मी के पास जाकर उसे एक कंगन पहनाते हुए कहती है-
"दीदी, अगर ये कंगन हमारे पुरखो का आशीर्वाद है तो उनका आशीर्वाद हम दोनों को मिलना चाहिए इसलिए यह एक कंगन हमेशा आपके पास रहेगा और दूसरा मेरे पास।"
यह सुनते ही पम्मी ने नई बहू को गले से लगा लिया।