विकल्प
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"तो फाइनल रहा भाभी जी, मैं सुबह देवकी को लेकर नर्सिंग होम आ जाऊंगा।" कहते हुए उधर से फ़ोन बंद कर दिया गया लेकिन इधर सुधा की आखों से नींद उड़ गयी।
एक ही वर्ष में यह दूसरी बार था जब वह देवकी को 'अटैंड' करने जा रही थी। हालांकि वह इस अनैतिक कार्य के पक्ष में नही थी लेकिन पति के रिश्ते के भाई होने और देवकी के पहले से ही दो बेटियाँ होने के कारण उसे हालात के चलते अपने निजि नर्सिंग होम में सब कुछ करना पड़ा था।
"....लेकिन अब एक बार फिर से! आप नागेश को समझाते क्यों नही?" बेचैनी में उसने पति की ओर करवट बदली।
"ये बात हम पिछली बार भी कर चुके है, वह अपने परिवारिक बंधन और पुत्र मोह में समझना नहीं चाहता।" पति का लहजा गंभीर था। "और मैंने तुम्हे तब भी कहा था कि तुम बिना किसी दवाब के अपना निर्णय ले सकती हो।
"मैंने वह सब भावनाओं के दवाब में किया था लेकिन इस बार मैं काफी तनाव में हूँ। वह अजन्मी बच्ची अभी तक रातों में आकर मुझसे जवाब माँगती है।" वह अपनी नम आखों को पोंछने लगी।
"तुम मना कर सकती हो सुधा।"
"हाँ! पर शायद ये कोई हल नही है।" एकाएक वह गंभीर हो गयी। "हमारा इंकार, हमारे रिश्तों के लिये बेहतर नहीं होगा और फिर मना करने के बाद भी वे इस समय मेरा कोई और विकल्प ढूंढ लेंगे।"
"तो फिर...!"
"इस बच्ची को तो जन्म देना ही होगा देवकी को... भले ही 'कृष्णा' की तरह इसका पालन-पोषण यशोदा के पास ही क्यों न हो।"
"तुम कहीं मिसेज यशोदा के बारें में तो नही सोच रही..." पति ने उसके मन के भाव को पढ़ लिया। ".... जो संतान के लिये काफी समय से तुम्हारे पास इलाज के लिये आ रही है।
"शायद हाँ !"
चलो मान लिया नागेश और उसका "परिवार इसके लिये मान भी गया लेकिन अगर यशोदा नहीं मानी तो?" पति ने सवालिया नजरों से उसे देखा।
"तो....!" सुधा की विश्वास भरी आँखें बहुत देर तक पति की आखों में झांकती रही। "....हमारे 'पुरू' को भी तो एक बहन की जरूरत है न।"