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भारत को जानो

भारत को जानो

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"नमस्ते चाचाजी, हम आ गए। आज किस प्रदेश चलना है ?" सभी बच्चे चहकते हुए एक साथ बोले।

"बच्चों, आज हम सैर करेंगे राजस्थान के झालावाड़ जिले की, और जानकारी हासिल करेंगे 18 वीं शताब्दी में बने रटलाई के उल्टा मंदिर की।"

"उल्टा मंदिर !"सब एक साथ चौक कर बोले।

"हां, यह लाल पत्थरों से बना प्राचीन तंत्रपीठ है। इस बारे में कहानी कही-सुनी जाती है कि इसे तांत्रिक मंत्र के बल से उड़ा कर ले जा रहा था।"

चाचाजी को टोकते हुए अमित ने पूछा,"क्या सचमुच तंत्र विद्या इतनी शक्तिशाली होती है?"

"हां, साधना कोई भी आसान नहीं होती, जब एक साधक तपस्या कर उसे साध लेता है, तो वह इतना शक्तिशाली हो जाता है कि वह कुछ भी कर सकता है।"

"चाचू ,जैसे हम यदि मेहनत से पढ़ें तो अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो सकते हैं।" सार्थक बोला।

"बिल्कुल वैसे ही। हां, तो अन्य तांत्रिकों ने जब यह देखा तो उन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से उस मंदिर को मध्य आकाश मार्ग में रोक कर उल्टे तरीके से उतार कर ज़मीन पर टिका दिया। "

 "चाचाजी, क्या वह आज भी वैसा ही पड़ा है, मेरा मतलब उल्टा ही ?" पवन ने जानना चाहा।

" हां, इसमें नींव व चुनाई नहीं है। यह ऊँचे-नीचे पत्थरों पर व्यवस्थित रूप से टिका है। विपरित प्रक्रियाओं के कारण इसे उल्टा तंत्रपीठ या ढाबा कहते हैं। यह बिना नींव, रेत व चूने से बना है। इसकी निर्माण कला को देख कर लोग चकित रह जाते हैं।" चाचाजी ने कहा।

 "क्या यह हमारी ऐतिहासिक धरोहर कहलाएगा?" अविरल ने पूछा।

"पुरातत्त्व विभाग द्वारा इसका जीर्णोद्धार कर दिया जाए तो पर्यटन के केन्द्र के रूप में पुन: प्राचीन व ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पहचान हो सकती है।

यह तंत्र पीठ के रूप में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मंदिर में बावन भैरू, हनुमान, २४ जोगनियां और शिव-पार्वती की प्राचीन मूर्तियां हैं। इसमें रखी कई मूर्तियां टूट चुकी हैं और कई इधर-उधर हो गई हैं। मालवा व हाड़ौती में इसके बारे में लोग जानकारी रखते हैं। प्रतिवर्ष सैकड़ों लोग इसको देखने के लिए आते हैं।"

"चाचाजी,भेरू और जोगनियां किन्हें कहा जाता है?" नितिन ने सवाल किया।

"भैरू भैरव को कहा जाता है। भैरव अर्थात् भय से रक्षा करनेवाला। जो शिव के रूप हैं। भैरव एक हिंदू तांत्रिक देवता हैं जिन्हें हिंदुओं द्वारा पूजा जाता है। शैव धर्म में, वह शिव के विनाश से जुड़ा एक उग्र रूप है। त्रिक प्रणाली में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर हिंदू धर्म में, भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है। वह पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी या डंडा रखते हैं। जोगनियां ईश्वर की सेविकाओं को कहा जाता है।"

इस मंदिर के निर्माण का समय कैसे तय किया गया, चाचाजी?"अभिनव ने पूछा।

"इस मंदिर के स्तम्भ पर १५८ अंकित हैं, जो संभवतः इसके निर्माण काल को दर्शाता हैं। इस आधार पर इस तंत्रपीठ का निर्माण १८०० वर्ष पूर्व हुआ था। इस मंदिर का संबंध गौरेश्वर महादेव मंदिर से भी बताया जाता है। बच्चों, आज की जानकारी बस इतनी ही।"

चाचाजी , हम आपसे मिली जानकारी को अपनी डायरी में लिख लेते हैं। हम इसे एक पुस्तक रूप में स्कूल के पुस्तकालय को देंगे, जिसका शीर्षक होगा, 'भारत को जानो '।

"यह तो अनूठा कार्य होगा, वाह, गुरु गुड रह गए, चेले शक्कर हो गए!" चाचाजी ने ठहाका लगाया।



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