शिक्षक के ओज ने लिया मुझे खोज
शिक्षक के ओज ने लिया मुझे खोज
आज मेरी माँ को पंद्रह वर्ष हो चुके हैं। आज से पहले मैंने कभी इस बारे में नहीं सोचा, परंतु कुछ दिनों से मैं भीतर ही भीतर खुद को दोषी समझ रहा हूँ। जीवन में प्रत्यक्ष उदाहरण अपनी जीवनदायिनी माँ को मैंने कभी कमज़ोर नहीं पाया। आज अचानक मुझे महसूस हो रहा है कि मैंने कभी अपनी प्यारी माँ का हाथ नहीं बँटाया, कभी दादी जी की सेवा नहीं की। मैंने जब से होश सँभाला, तब से केवल अपनी हर बात को मनवाने के लिए आतुर रहा।
मेरी शांत, सुशील, परोपकारी, निःस्वार्थी व कर्मठ माँ ने हर बार मेरी ज़िद्द को पूरा किया। मैंने कभी यह समझना ही नहीं चाहा कि सुबह 9 बजे से लेकर सांय 5 बजे तक एक कारखाने में कड़ी मेहनत करने वाली मेरी स्नेहमयी माँ नित दिन मुस्कुराती हुई घर में दाखिल होती हैं। अपने आँसुओं को पीने वाली मेरी सहनशील माँ निरंतर सेवा करती हुई सदा प्रसन्न दिखाई देती हैं। कभी अपना दुखड़ा किसी को नहीं सुनाती और न ही सुनने वाला कोई भी रिश्तेदार कभी घर आता। अक्सर दादी जी मुझे कहा करती कि तेरी माँ किसी देवी से कम नहीं है। न जाने मैंने कौन-से पुण्य किए थे जो तेरी माँ बेटी के रुप में बहू बनकर मेरे द्वार पर आई। मेरे पैदा होने से पहले ही एक दुर्घटना में पिता जी चल बसे थे।
तब से आज तक मैंने अपनी पूजनीय माता जी को अपने ही परिवार के प्रति समर्पित पाया। कक्षा में शिक्षिका जी के द्वारा पढ़ाए गए पाठ से मुझमें एक अजीब-सा बदलाव हुआ। आज से, अभी से मैं प्रण लेता हूँ कि अपनी देवी समान पूजनीय माता जी की तरह पूर्ण आत्मविश्वास के साथ मन लगाकर खूब पढ़ाई करता हुआ अपना, अपनी माँ व आदरणीय दादी जी का नाम रोशन करूँगा। मेरे जीवन में आए इस नए बदलाव का सारा श्रेय केवल मेरी अध्यापिका जी को जाता है।
‘‘धन्य हैं ऐसे शिक्षकगण, जिनके समझाने पर बदल जाते हैं विद्यार्थीगण’’