सात वचन
सात वचन
"बस यार शादी के बाद बेटा बदल ही जाता है।" रामसरन के सामने अपने मन का गुबार निकालते बसेसर हुए बोला।
"पर विश्वास तो आदर्श बेटा था।" रामसरन ने आश्चर्य मिश्रित लहजे में कहा।
"नहीं वैसे तो सब ठीक है, मैं कुछ कहता हूँ तो मान लेता है, अपनी माँ की भी कोई बात नहीं टालता।" बसेसर ने थूक सा निगलते हुए कहा।
"फिर परेशानी क्या है।" रामसरन ने आँखों ही आँखों में पूछा।
"बस बीवी के आगे पीछे डोलता रहता है, हमारे घर में कभी बाहर से खाना नहीं आया ना हम कभी होटल गये। पर अब तो कभी जौमैटो-स्विगी हो रहा है कभी होटल जाया जा रहा है।" बसेसर ने दीर्घ श्वास छोड़ते हुए कहा।
"अच्छा तो ये बात है।" रामसरन ने हँसते हुए कहा।
"क्या इन सबके लिए पैसे तुमसे मांगता है?" रामसरन ने पूछा।
"नहीं और मेरे पास है भी नहीं यूँ फ़ालतू में लुटाने को।" बसेसर ने आवेश में कहा
"तुम नहीं सुधरोगे भाई, अरे बीवी है उसकी, सारे समाज के सामने सात वचन पढ़ के लाया है। एक वचन पत्नी को खुश रखने का भी है, वही तो निभा रहा है, अपनी कंजूसी के चलते तूने न निभाया तो क्या वो भी ना निभाएगा? क्यों भाभी सही कहा ना?" रामसरन ने हँसते हुए कहा।
बसेसर ने भी शगुन की तरफ देखा, बेटे की तारीफ का गर्व उसके चेहरे पर झलक रहा था। अचानक उसकी नजर शगुन की नजर से टकराई, बसेसर की नज़रें झुक गई थी।