हवा का रुख
हवा का रुख
छोटी ननद की शादी में छोटी भाभी कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी। शादी के बाद यह पहला अवसर था सजने सँवरने का। खूब ढ़ेर सारी मस्ती करने का।
सो सबसे कह दिया था उसने वह जिम्मेदारी से काम भी करेगी और अपने मन की मस्ती। सो कोई उसे रोके टोके नहीं।
जेठ जेठानी की दुलारी तो थी ही तो किसी को कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं थी।
इसी का फायदा उठा उसने बड़ी भाभी को भी शादी में गाउन पहनने के लिए राजी कर लिया था। जेठानी उम्र में कुछ ही बड़ी थी सो उन्हें मनाने के लिए उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी थी।
तैयारी जोरो-शोरो पर थी सभी शादी में पहनने वाले कपड़े एक- दूसरे को दिखा कर राय- मशवरा कर रहें थें । जैसे ही छोटी बहु ने अपना और बड़ी भाभी का गाउन दिखाया ।
माँ तपाक से बोल पड़ी- "ये क्याबहू साड़ी पहनों उसमें ज्यादा अच्छी लगती हो तुम दोनों।"
नाक भौं चढ़ाते हुए वह बोली-माँ जी तो फिर मुझसे शादी की जिम्मेदारी ना निभाई जाएगी। मैं तो साड़ी ही सँभालती रहूँगी। और उदास हो बोली- "मस्ती भी
नहीं कर पाउंगी। फिर तो मैं अपनी सहेलियों को भी नहीं बुलाऊंगी। कह मुँह टेढ़ा किया उसने।
यह सुनते ही सासू माँ ह्म्म्म कहते अपने कमरें में गई और अपने बक्से से एक नई नाइटी (मैक्सी) निकाल लाई और बहुत मासूमियत से बोली- "तो फिर मैं भी ये गाउन ही पहन लेती हूं अब इस उम्र में ये मुई साड़ी तो मुझसे भी ना सम्भलें है।
सभी उनकी सादगी भरी मासूमियत पर खिलखला के एकसाथ हँस पड़े ।
उधर भाभियाँ गाउन से अपना मुँह ढ़क कुछ भी कहने सुनने में असमर्थ हो रही थी।