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Bhawna Kukreti

Others

4.8  

Bhawna Kukreti

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शायद-8

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5 mins
211


तन्वी को जरा होश आया उसे चेहरे पर जलन सी महसूस हुई ।आँखें खोली तो घुप्प अन्धेरा।चेहरे पर गीलापन सा भी लगा। पेट भी दुख रहा था।हाथ हिलाया तो घास पत्ते हाथो मे आ गये।उसका दिल डूब गया।वो जंगल मे है अभी भी।


इधर रेसोर्ट मे सब शाम होने से कुछ देर पहले पहुंचे थे ।तन्वी के जंगल मे जाने की बात से सब परेशान थे। प्रियम सर और रेसोर्ट ओनर मैम ने वन विभाग और पुलिस को सूचित कर दिया था ।मयंक और ग्रुप के साथी दो तीन गाइड के साथ जंगल मे वापस तन्वी को ढूंढने निकल गये थे।


प्रियंम सर को जंगलात वालों ने आते के साथ बताया की दोपहर को ही भालूओं की "कॉलर ट्रेसींग' से पता चला था की एक भालू का एक जोड़ा बच्चों के साथ नदी के करीब जंगल मे ट्रेस किया गया है। और काफी देर से अभी सिग्नल, गश्ती रस्ते के पास ही एक जगह पर रुका हुआ है। प्रियम सर तुरंत रेंजर के साथ जीप मे जंगल को चले गये।


पोलिस रेसोर्ट के कागज और तन्वी की पूछताछ वहां के स्टाफ से कर रही थी। तन्वी का रुम चेक किया गया।उसका फोन और डायरी जब्त कर रुचिर को फोन किया गया। रुचिर भी फौरन रेसोर्ट पहुंच गया।उसे जब सब पता चला तो वो जंगल मे जल्दी चलने की जिद करने लगा। लेकिन पोलिस उस से पहले पूछताछ करना चाह रही थी।उसका आपा खो गया।वो सब- इंस्पेक्टर से ही उलझ गया। पोलिस इंस्पेक्टर ने स्तिथि संभाली और वन विभाग के अन्य कर्मचारियों और रुचिर को अपनी जीप मे ले कर जंगल की ओर निकल गये।


तन्वी ने इधर उधर अन्धेरे मे देखने की कोशिश की। कुछ दूरी पर उसे कुछ चमकता सा दिखाई पड़ा। उसने आवाज लगाने की कोशिश की मगर उसकी आवाज घुट कर रह गयी। वो चमकती चीज अब 6-7 हो गईं थीं । वे जंगली आँखें थी। तन्वी डर से जमीं पर पड़ी पड़ी थरथर कांपने लगी। वे आँखें धीरे धीरे उसकी ओर आने लगीं।उसने उठने की कोशिश की मगर हिल भी नही पायी,उसकी पैरों मे तेज़ दर्द उठा।तन्वी को लग गया की ये उसके जीवन के आखिरी पल हैं।तभी उसे कुछ हल्ला सा सुनाई पड़ा । करीब आती आँखें अब थोड़ा तितर बितर हो गईं। तन्वी ने ध्यान से सुना उसका नाम पुकारा जा रहा था। उसने पूरा जोर लगाया कहा का कि मैं यहां हूं पर हूं पर उसके गले से बेहद हल्की आवाज निकली " मैं यहां हूं "। शोर करीब आ रहा था । कुछ गाड़ियों की आवाज भी नजदीक आते सुनाई दे रही थी।अब वे आँखे ठहरी हुई थीं। कुछ टॉर्चेस की रोशनी आने लगी। उस रोशनी मे तन्वी ने देखा उस से महज कुछ दूरी पर दो बड़े भालू खड़े हैं और रोशनी की ओर देख रहे हैं।छोटे बच्चे भी उनके पैरों के पास हैं। फायरिंग की आवाजे हुई और भालू का परिवार उसके एक दम बगल से भागता निकला।उसके उपर अब रोशनी पड़ रही थी।" तन्वीऽऽऽ" कहते कुछ लोग उसके पास भागते आए ।तन्वी फिर बेहोशी मे चली गयी।



" जल्दी आओ सब , इसे उठा कर सीधे हॉस्पिटल ले चलो।"

" अम सॉरी तन्वी"

" अब वो सुरक्षित है"


तन्वी को थोड़ा थोड़ा होश आने लगा। उसका सिर किसी की गोद मे था तो पैर किसी की गोद मे। तन्वी को उसके पापा से दिखायी पड़े ।उसने कस के पकड़ लिया और रोने लगी "पापाऽऽ",

मयंक घबराया हुआ था घबराते हुए हँसता बोला।

" तेरा भी ठीक है , पापा बना दिया तूने, ड्राईवर साहब जल्दी चला लो यार ये जाने किसको और क्या बना दे।" तन्वी ने अपने आधे अधूरे होश में जीप की मधिम रौशनी मे गौर से देखने की कोशिश की... वो मयंक तो नहीं लग रहा था।

" रुचिर!!?" तन्वी ने कहा। सुन कर हाथों ने उसे और अच्छे से थाम लिया। तन्वी फिर बेहोश हो गयी।


तन्वी को होश आया।नर्स उसकी ड्रिप चेक कर रही थी ।उसे होश मे आता देख वो मुस्करायी।" आप बहुत लकी हैं मैम " , " ओय तू आ गयी जन्नत से वापस" मयंक की चहकती आवाज उसके कानों मे पड़ी। उसने देखा मयंक पैरों के पास खड़ा है और रुचिर उसके बगल मे ही बैड के दूसरी ओर खड़ा था।उसकी आँखों से आँसूं बह रहे थे। उसने तन्वी के सर पर हाथ फेरते हुए माथा चूमा। तन्वी के भी आँसू निकलने लगे।उसने रुचिर का हाथ थामा और सुबकने लगी।मयंक और नर्स बाहर डॉक्टर को बुलाने चले गये। " सॉरी " तन्वी ने कहा," नही यार सब भूल जाते हैं। मैं भी गलत ही था ।बस तुम अब जल्दी ठीक हो जाओं।"


प्रियम सर ,मयंक ,नर्स और डॉक्टर आये। तन्वी के चेहरे, पैर और कमर पर घाव था। मगर ज्यादा गहरा नहीं था।प्रियम सर ने तन्वी को मुस्कराते हुए देखा। तन्वी मे देखा सर की आँखे बेहद लाल थीं और बाल भी बिखरे हुए से थे।तन्वी ने भंवें उठा कर उनकी ओर सवालिया नजरों से देखा।तो प्रियम सर अपने बालों मे हाथ फेरते हुए मुस्कराये और हाथों से इशारे से पूछा, ठीक हो? तन्वी कहा "जी सर ठीक हूं", " ओके, अभी ज्यादा बात अलाव नही तुम्हे, पहले ठीक हो जाओ"," ओके सर "," फिर? अब एक शब्द नहीं" सर ने टोका।रुचिर वहीँ था।


सब लौट आये थे।तन्वी के चेहरे, पैर और कमर पर स्टीचस के निशान बाकी थे। उसकी मां और भाई उसी के पास आ गये थे। मयंक लगभग रोज ही ऑफिस आते जाते उसको मिलने आता था, उसके आने से घर का माहौल एक दम खुशनुमा हो जाता था ।रुचिर को भी आते ही एक अच्छा बिज़नेस पार्टनर मिल गया था। वो नये बिज़नेस को जमाने मे बिज़ी हो गया था पर हर रात उसका हाल चाल लेता था और कल ही उस से मिलकर गया था।



प्रियम सर ने आते ही उसके मैडिकल बिल, और बाकी पोलिस की फोर्मलीटी निपटाना शुरु कर दिया था। घर पर सबके लिये खाना उन्ही के घर से आ रहा था।उनके परिवार से उनका बड़ा भाई, भाभी और भतीजा मिल कर गये थे।मगर वे ,उसे रेसोर्ट से उसके घर ले आने के बाद दुबारा अभी तक तन्वी को देखने नही आये थे।


आज सुबह तन्वी की मां को मयंक हंसते हुए बता रहा था की उस दिन जंगल से जीप में अधमरी सी तन्वी ने प्रियम सर को पहले पापा, फिर रुचिर समझ लिया था।


तन्वी ने ये सुन कर खिड़की के बाहर देखा । सामने दूर तक फैला नीला आसमान था ,जो कुछ खामोश सा लग रहा था।


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