वड़वानल - 15
वड़वानल - 15
‘‘जय हिन्द !’’ तीनों ने उनका अभिवादन किया। अभिवादन स्वीकार करते हुए उन्होंने तीनों को बैठने का इशारा किया और लिखना रोककर वे कहने लगे, ‘‘तुम्हारे मुम्बई के संगठन कार्य के बारे में मुझे पता चला। सैनिकों को इस बात का ज्ञान कराना कि उनके साथ अन्याय हो रहा है - यह लक्ष्य उचित है। मगर गति बढ़ानी होगी। मैंने सन्देश भेजे हैं कि कलकत्ता, कराची, विशाखापट्टनम दिल्ली में चल रहे कार्य की गति तेज़ की जाए। समय गँवाना ठीक नहीं। मगर जल्दबाजी करना भी उचित नहीं। क्योंकि यदि विद्रोह सर्वव्यापी होगा तभी सरकार के लिए उसे दबाना मुश्किल होगा। भूदल और हवाई सेना के सैनिकों से सम्पर्क स्थापित किया है वहाँ से भी समर्थन मिल रहा है। यह याद रखना कि अंग्रेज़ी हुकूमत पर यह वार अन्तिम होगा।’’
‘‘आज समाज में जो असन्तोष खदखदा रहा है उस पर यदि ध्यान दें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस विद्रोह को सामान्य जनता का समर्थन मिलेगा। कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने आज़ाद हिन्द सैनिकों की कोर्ट में पैरवी करने का निश्चय किया है।अर्थात् विद्रोह को कांग्रेस का भी समर्थन प्राप्त होगा।’’ खान ने अपनी राय दी।
‘‘यदि आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों को जनता द्वारा दिये गए समर्थन पर ध्यान दें, तो वह निश्चित ही तुम्हारे विद्रोह को भी प्राप्त होगा। परन्तु कांग्रेस तुम्हें समर्थन नहीं देगी। आज यदि कांग्रेस सैनिकों के साथ है तो वह सिर्फ जनता के दबाव के कारण, अन्यथा कांग्रेस इन अदालती मुकदमों से अलिप्त रहती। कांग्रेस का समर्थन इसलिए प्राप्त नहीं होगा, क्योंकि यदि इस विद्रोह के कारण आजादी प्राप्त होती है तो उसका श्रेय कांग्रेस को नहीं मिलेगा, फिर तुम्हारा मार्ग भी तो कांग्रेस के मार्ग से भिन्न है।’’ शेरसिंह ने स्पष्टीकरण दिया।
कौन हमें समर्थन देगा और कौन नहीं देगा, इस बात पर माथापच्ची न करते हुए हमें अन्तिम विजय के ध्येय को सामने रखना होगा। सन् 1942 में अच्युतराव पटवर्धन ने भूमिगत क्रान्तिकारियों की सभा में कहा था, ‘‘हिन्दुस्तान की सेना - जब Army of Occupation न रहकर Army of Liberation हो जाएगी तब प्रत्यक्ष रूप में स्वराज्य आएगा। हमें ठीक यही परिवर्तन लाना है।’’
शेरसिंह ने निश्चित ध्येय के बारे में बताया।
‘‘सेना के भीतर असन्तोष बढ़ रहा है - यह सच है और सरकार को भी इसकी कल्पना है। आज़ाद हिन्द सैनिकों के साथ किये जा रहे बर्ताव तथा हिन्दुस्तानी सैनिकों को इंडोनेशिया और इंडोचायना के क्रान्तिकारी आन्दोलनों को दबाने के लिए भेजने के कारण यह असन्तोष है। हम भी इन्हीं दो कारणों से लाभ उठाएँगे।’’ गुरु ने सुझाव दिया।
‘‘बिलकुल ठीक। जो भी मिले उस मौके से फ़ायदा उठाओ। सरकार को, सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को एक के बाद एक धक्के पहुँचाओ। वातावरण का जोश बरकरार रखो। इससे सैनिकों के मन का डर दूर होकर वे निर्भय हो जाएँगे। अब समय न गँवाओ !” शेरसिंह ने सलाह दी।
कुछ देर तक विभिन्न पक्षों की विचारधाराएँ, उनके उद्देश्य, उनके बीच के वाद–विवाद पर चर्चा करने के बाद जब वे शेरसिंह की गुफा से बाहर निकले, तो रात के आठ बज चुके थे।
अगली रात वे फिर संकेत स्थल पर एकत्रित हुए। ‘‘मध्यप्रदेश के जातीय दंगों के बारे में पढ़ा ? लिखा है कि दस लोगों को जलाकर मार डाला ! जातिवाद के अन्धे आदमी कितने शून्य हृदय हो जाते हैं !’’ गुरु अस्वस्थ हो गया।
‘‘इस जातिवाद का फैसला हो ही जाना चाहिए।’’ मदन गुस्से से कह रहा था। ये झगड़े, ये दंगे कितने दिनों तक चलने देंगे ? जो लोग इस भूमि के प्रति ईमानदार नहीं रहना चाहते, जो कट्टर धार्मिक हैं, जिनके मन में आशंका है कि बहुसंख्यक हिन्दू उन पर अत्याचार करेंगे, क्या उन्हें अलग कर देना उचित नही है ? वरना आज़ाद हिन्दुस्तान कमजोर रहेगा, विभाजित रहेगा”।
खान इस विचार से सहमत नहीं था। ‘‘मुट्ठीभर कट्टर जातिवादी मुसलमानों की जिद की खातिर क्या देश को और लोगों के दिलों को बाँटना सही है ? इस बात की क्या गारंटी है कि पाकिस्तान बनने से देश के जातीय दंगे पूरी तरह समाप्त हो जाएँगे ? बँटवारे के लिए कट्टर मुसलमानों के बराबर ही कट्टर हिन्दू भी जिम्मेदार होंगे। क्या यह बँटवारा बिना खून की नदियाँ बहाए होगा, ऐसा आप सोचते हैं ? आज दिलों का बँटवारा हुआ है, कल ज़मीन का होगा। ज़मीन का बँटवारा होने से मन फिर से नहीं जुड़ेंगे, बल्कि कई सवाल पैदा हो जाएँगे।’’ खान तिलमिलाकर कह रहा था।
‘‘सेना की बगावत यदि एक दिल से हुई; हिन्दू, मुसलमान, सिख एक दिल से मिलकर खड़े होंगे तभी बगावत कामयाब होगी। दिलों का यह मिलाप शायद ज़मीन के बँटवारे को टाल सकेगा।’’ गुरु ने कहा।
‘‘जब तक सैनिक अशान्त हैं, तभी तक कुछ कर लेना चाहिए। अन्तर में सुलगती आग तेज करनी चाहिए, वरना, फिर से सब कुछ शान्त हो जाएगा और इस वह्नी को प्रज्वलित करना मुश्किल होगा।’’ आर. के. ने सुझाव दिया।
‘‘सरकार को, नौदल के वरिष्ठ अधिकारियों को एक ज़ोरदार धक्का देना पड़ेगा, साथ ही सैनिकों के मन का डर दूर होना चाहिए। उन्हें यह समझाना होगा कि अगर हम एक होंगे तो ये अंग्रेज़ हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे। गुलामी में गुजारी अनेक सालों की जिन्दगी की अपेक्षा इज़्जत से जिया गया एक पल भी बहुमूल्य है। डर–डर के जीने की अपेक्षा लड़ते हुए मरेंगे, यह बात यदि उन्हें समझा सकें तो काम आसान होगा।’’ मदन ने कहा।
‘‘कोई एक आगे बढ़कर यह दिखा दे कि नौसेना के नियमों के मुताबिक अंग्रेज़ थोड़ी–बहुत सजा देने से ज़्यादा कुछ भी नहीं कर सकते। ज़्यादा से ज़्यादा नौसेना से निकाल देंगे। किसी एक का यह बलिदान औरों को प्रेरणा देगा। वह व्यक्ति हमारी क्रान्ति की नींव का पत्थर होगा।’’ खान ने मदन के विचारों का
समर्थन करते हुए कहा।
‘‘मतलब, करना क्या होगा ? हिंसात्मक मार्ग अपनाना होगा या अहिंसात्मक ?’’ गुरु ने पूछा।
‘‘अंग्रेज़ों को इस देश से बाहर निकालने के लिए सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग ही उचित है।’’ मदन की इस राय से आर. के. सहमत नहीं था। ‘‘मेरा ख़याल है कि हमें अहिंसात्मक मार्ग का ही पालन करना चाहिए। अहिंसा से ही लोगों के दिलों और उनके विचारों में परिवर्तन लाया जा सकता है।बगैर कटुता उत्पन्न किए, बिना खून बहाए, आजादी प्राप्त करने का एक अलग ही मार्ग दिखाने का प्रयत्न महात्माजी कर रहे हैं।उसी मार्ग का अवलम्बन हम करेंगे।’’
‘‘सत्याग्रह, प्रदर्शन इत्यादि जैसे अहिंसात्मक मार्गों का अवलम्बन करने वाले हजारों लोगों को सरकार ने मार डाला है। सरकार यह समझ गई है कि तानाशाही से ऐसे आन्दोलनों को कुचला जा सकता है, इसलिए सरकार इस मार्ग की जरा भी परवाह नहीं करती। फिर हमारे लिए इस मार्ग को अपनाना कठिन हैं। ‘अरे’ का जवाब ‘क्या रे’ से देने की हमारी प्रवृत्ति है, अहिंसात्मक मार्ग के लिए आवश्यक सहनशीलता, अपने मन पर काबू रखना - ये सब बातें हमारे पास नहीं हैं। फिर इस मार्ग का समर्थन सैनिक नहीं करेंगे। मेरी राय में तो यह मार्ग उचित नही है,’’ खान ने अपना विरोध दर्शाया।
‘‘यदि अहिंसात्मक मार्ग से सैनिकों का आत्मविश्वास बढ़ने वाला हो तो इस मार्ग का अनुसरण करने में कोई हर्ज नहीं है। मगर करना क्या होगा ?’’ गुरु ने पूछा।
‘‘असहयोग करना होगा। फॉलिन के लिए नहीं जाएँगे, काम नहीं करेंगे, काम करेंगे नहीं इसलिए खाना भी नहीं खाएँगे, ” आर. के. ने सुझाव दिया।
इसके लिए आवश्यक मनोबल कौन दिखाएगा ? क्या अपने सर्वस्व का त्याग करने के लिए कोई तैयार है ?’’ खान ने पूछा।
‘‘मैं तैयार हूँ, अर्थात् यदि आप सब आज़ाद हिन्दुस्तानी अनुमति दें तो !’’ आर. के. दृढ़ निश्चय से बोला।
आर. के. का यह निर्णय सभी के लिए अनपेक्षित था। अंग्रेज़ी सत्ता का विरोध कोई एक व्यक्ति करेगा, यह उन्होंने सोचा ही नहीं था। सबको चुप बैठ देखकर आर.के. अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहने लगा:
‘‘मैं पहले काम बन्द करूँगा और अपनी नौकरी से इस्तीफा दूँगा। अधिकारी इस पर जरूर कार्रवाई करेंगे, मुझे सजा देंगे, मगर मुझे इसकी परवाह नहीं है,
क्योंकि मैं विरोध करने पर उतारू होने वाला हूँ जान की बाज़ी लगाकर। अंग्रेज़ों द्वारा मुझ पर किये जाने वाले हर अत्याचार का, बल प्रयोग का जवाब मैं ‘वंद मातरम् !’ से दूँगा।’’ आर. के. के हर शब्द में आत्मविश्वास कूट–कूटकर भरा था।
‘‘हम औरों से चर्चा करके अपना निर्णय तुम्हें सुनाएँगे।’’ खान ने कहा।
क्रान्तिकारी सैनिकों की संख्या पचास तक पहुँच गई थी। सुभाषचन्द्र बोस का स्मरण सदा होता रहे इसलिए वे स्वयं को ‘आज़ाद हिन्दुस्तानी’ कहते थे। खान, मदन और गुरु उनके नेता थे। आजाद हिन्दुस्तानी एकत्रित होने की जोखिम नही उठाते थे। यदि कोई निर्णय लेने की या काम की जिम्मेदारी सौंपनी होती तो मदन, खान और गुप्त हरेक से अलग–अलग मिलकर चर्चा करते और फिर निर्णय लेते। उनके द्वारा इस प्रकार लिये गए निर्णय का कोई विरोध भी नहीं करता।
दूसरे दिन खान अकेला ही शेरसिंह से मिलने गया। आर. के. का निर्णय और आजाद हिन्दुस्तानी द्वारा उसे दी गई इजाजत के बारे में उसने शेरसिंह को बताया।
‘‘मेरे विचार से तुम लोगों द्वारा लिया गया निर्णय योग्य नहीं है।’’ शेरसिंह ने फौरन कहा, ‘‘आज तक लाखों लोगों ने इस मार्ग पर चलकर ब्रिटिश हुकूमत का विरोध किया। परन्तु परिणाम कुछ भी नहीं निकला। आर. के. के विरोध से हुकूमत का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, मगर बेचारा आर. के. बेकार में मारा जाएगा।’’
‘‘यदि आर. के. से प्रेरणा लेकर हजारों सैनिक इसी राह पर चल पड़ें तो ?’’ खान ने पूछा।
‘‘उन सबको नौसेना से निकाल देंगे। आज देश में गरीबी को देखते हुए निकाल बाहर किए गए सैनिकों की जगह लेने अनेक नौजवान आगे आएँगे। इन नये सैनिकों के बलबूते पर सरकार अपनी हुकूमत अबाधित रखेगी।’’ शेरसिंह ने अपनी बात स्पष्ट की।
‘‘मतलब, आपकी राय में आर. के. को यह कदम उठाने से रोकना चाहिए।’’
‘‘यदि उसने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया है तो उसे इस राह पर जाने दो। इससे अहिंसात्मक मार्ग का खोखलापन जाहिर हो जाएगा। मगर तुम लोग इस सबसे दूर रहो। यदि अधिकारियों को तुम लोगों पर सन्देह हो गया तो तुम लोग पकड़े जाओगे और कार्य अधूरा रह जाएगा।’’