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kavi manoj kumar yadav

Children Stories Inspirational

5.0  

kavi manoj kumar yadav

Children Stories Inspirational

माँ

माँ

2 mins
556


बात उस समय की है जब मैं कक्षा सात में पढ़ता था। चार बहनों में अकेला भाई होने की वजह से मैं सभी का लाड़ला था। जब भी घर में कोई खाने की चीज आती तो माँ मुझे सबसे ज्यादा वाला टुकड़ा पकड़ा देती और अगर मैं घर में न होता तो सबसे छुपाकर मेरा हिस्सा निकालकर रख देती। मैं भी अपना खाना खाने के बाद भी जब तक माँ के हाथ से उनकी थाली से दो निवाले न खा लेता तब तक चैन नहीं पाता था। एक रोज मैं विद्यालय में हुई किसी प्रतियोगिता में इनाम जीतकर घर लौटा। माँ को इनाम दिखाने के उत्साह में गेट इतनी जोर से खोला कि गेट के पास बैठी पड़ोस की पंचायती आंटी का सिर गेट से टकरा गया। बस फिर क्या था सारी बहनें चकचक करने लगीं कि माँ ने ही इसे बिगाड़ रखा है। उस दिन मेरा सारा उत्साह हवा हो गया और मैं गुस्से से उबलने लगा।

बहन थोड़ी देर बाद खाना लेकर आई तो मैंने उसे वापस भेज दिया। भूख बहुत तेज लगी थी लेकिन मन गुस्से में आग-बबूला हो रहा था कि माँ अभी तक खुद खाना लेकर क्यों नहीं आई। आँखें बार-बार दरवाजे की तरफ जा रही थीं और देर जितनी ज्यादा हो रही थी गुस्सा भी उसी तीव्रता से बढ़ रहा था। खैर कुछ देर बाद माँ खुद खाने की थाली लेकर आई और सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए समझाया कि इतना गुस्सा नहीं करते। फिर उन्होंने अपने हाथ से जैसे ही एक कौर खिलाया मैं सब कुछ भूलकर तेजी से खाने लगा और साथ ही साथ अपनी इनाम वाली बात भी माँ को बताई। माँ बहुत खुश हुई और मुझे शाबाशी भी दी। यह कोई बड़ी घटना नहीं लेकिन आज जब किसी बात को लेकर नाराज हो जाता हूँ और कोई माँ की तरह मनाने नहीं आता तो यही सोचकर तसल्ली कर लेता हूँ कि माँ, माँ ही होती है उसके जैसा कोई और नहीं हो सकता।


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