स्नेह पथ
स्नेह पथ
अंजू सामान समेटते हुए बड़बड़ाती जा रही थी, "आज फिर देर हो गई।"
जैसे ही गाड़ी के पास पहुँची,
"ओफ्हो चाबी तो टेबल पर ही छोड़ आई, देरी में देरी।"
झुंझलाती हुई वह चाबी लेने ऊपर जाती है।
वह जल्दी से जल्दी घर पहुँचना चाहती है। सास-ससुर कुछ ही दिनों के लिए ही तो उसके पास रहने आए हैं। वैसे तो सासू माँ काम में काफी मदद करती है पर मलेरिया बुखार आने की वजह से कमजोर हो गई हैं। सोचा था, इन दिनों उनकी खूब सेवा करूँगी। सिग्नल पर बत्ती देखते ही चेहरा लाल हो गया।
फाॅरेन डेलीगेशन आने के कारण तीन दिन से लगातार लेट हो रही हूँ। दो दिन से पतिदेव बाहर से ही खाना मँगवा रहे हैं। अधिक तेल, मिर्च मसाला के कारण उन्हें खाना पसंद नहीं आ रहा। सोचा था, आज घर पर ही बनाऊँगी। इस सिग्नल पर मन खुश हो गया। घर पहुँचते ही मम्मीजी को पलंग पर बैठे देख राहत महसूस हुई।
"मम्मी जी कैसी तबीयत है आपकी ? काम इतना था कि फोन पर भी आपकी तबियत नहीं पूछ पाई, मैं अभी आपके लिए कुछ बनाती हूँ।"
"अरे ! इतनी हड़बड़ाई क्यों है ? पहले हाथ मुँह धोकर, कपड़े बदल कर आ।"
फ्रेश होकर आने के बाद सबको डायनिंग टेबल पर बैठे देख।
"आपने आज फिर बाहर से खाना मँगवा लिया मैं बनाने ही वाली थी।"
"आज तो पापा जी ने खाना बनाया है।" पतिदेव ने कहा,
आश्चर्य से "आपने पापा जी ? आपको खाना बनाना आता है ?"
"मैंने तुम्हारी सासू माँ के निर्देशन में राष्ट्रीय भोजन बनाया है।"
कुकर खोलते ही, "वाह ! क्या खुशबू है।" अंजू बोली,
"मैं सर्व करूँगा आप लोग खाकर बतायें मैं पास हुआ या नहीं।"
पहला निवाला मुँह में डालते ही अंजू की आँखों से आँसू निकलने लगे।
"लगता है मैंने मिर्च ज्यादा डाल दी।"
"नहीं पापा जी, मिर्च ज्यादा नहीं आपने प्यार ज्यादा डाल दिया।