छांया
छांया
सर्दियों की ठंडी-ठंडी शाम में घुलती गुलाबी ठंडक को, घोलती सुहानी शाम को रितु लान की सीढ़ी पर रोज़ाना आकर बैठ जाती थी।
रितु की दीदी ने अपने गार्डन को बहुत ख़ुबसूरती से मेंटेन किया था, घर के मेन गेट से छोटे-छोटे गोल पत्थरों को जमा कर पाथ बनाया था और हरी-हरी घास, और करीने से लगे पौधे थे। रितु दीदी के यहाँ देहरादून छुट्टी में आई हुई थी। रितु की दीदी प्रेग्नेंट थी उसकी देखभाल करने रितु कुछ दिनों के लिए आई थी। रितु की शाम की बैठक उसकी सीढ़ी पर थी उसे अट्रैक्ट करता था सामने की बिल्डिंग में शाम होने पर कमरे में लाईट जलती थी, एक छाया खिड़की पर हाथ रख कर अक्सर गार्डन की ओर देखता सा लगता था। रितु भी सम्मोहित सी उस छाया के इंतज़ार में रहती थी जहाँ रितु की दीदी और जीजा जी का बंगला था उसके पास ही मल्टी स्टोरी बिल्डिंग थी। रितु अंजान थी उस छाया से बस रोज़ शाम को बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती थी, ये कैसा लगाव था अंजाना सा न कभी देखा न पहचान बस एक छाया ही दिखती थी। रितु के जीजा जी कभी शाम के वक़्त गार्डन में अपनी टेबल कुर्सी लगवा कर रितु के साथ बैठ जाते थे।
कई बार ठंडक ज़्यादा हो जाने पर दीदी बहुत बुलाती अंदर आजा, मगर रितु का छाया मोह छोड़ नहीं पाती। एक दिन रितु को उस बिल्डिंग के बाहर बहुत से लोगों की भीड़ दिखाई दी, रितु के जीजा जी ने घर आकर बताया, उस बिल्डिंग में रहने वाले एक बाइक सवार का एक्सीडेंट हो गया है और सुना है बाइक सवार वहीं ख़त्म हो गया है। अब तो रितु बहुत परेशान कौन होगा किसी से मालूम भी नहीं कर सकती क्यों कि वो उस छाया के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी, उस दिन के बाद से वो छाया फिर खिड़की पर नहीं दिखाई दी। रितु उस अंजान छाया के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती रही कुछ दिनों के बाद वो देहरादून लौट गई मगर वो उस अंजान से जो लगाव हो गया था, वो कभी नहीं भूल पाई। फिर कुछ सालों बाद आना हुआ तो दीदी ने बताया सामने वाली बिल्डिंग में रहने वाले शर्मा जी के बेटे का रिश्ता तुम्हारे लिए आया था तेरे जीजा जी ने मुझसे कहा "रितु को बुला लो वो लड़का देखना चाहता है।"
"दीदी वो सामने वाले घर में कोई और आ गए हैं क्या अरे नहीं वहीं पुराने लोग है, तेरे जीजा जी को उसने पूछा है कि मैं आपके घर में पत्नी के साथ और कोई भी रहती है मैंने कुछ साल पहले सीढ़ी पर बैठे देखा है।" बस इतना सुनना था जैसे रितु को मन की मुराद मिल गई।