सेहरा
सेहरा
आकाश , अक्षरा और अनिकेत तीनों अपने - अपने काम पर जा चुके थे ।सुबह सबकी पसंद का ब्रेकफास्ट और लंचबाक्स तैयार करते - करते समय की सुई इतनी तेजी से घूमती है कि सुरभि को दम मारने जरा भी फुर्सत नहीं मिली पाती ।सुबह की सैर के बाद बस वो जैसे - तैसे एक कप चाय पी पाती है और उसके बाद चक्करघन्नी सी घूमती रहती है ।रोज की कि ये दिनचर्या ही उसका जीवन है ।जब पति और बच्चे अपनी कामयाबी का सेहरा उसके सर बांधते हैं तो उसे लगता मानो ये सारी की सारी प्रोगरेस उसकी ही मेहनत का परिणाम है।
कल ही तो अनिकेत कह रहा था- " यार सुरभि तुमने घर , बच्चे, परिवार और समाज सब इतना अच्छी तरह संभाला कि हम सब अपने काम पूरी शिद्दत से कर पाते हैं ।सारी कामयाबी का सेहरा तुम्हारे सर पर है " । सोचते हुए सुरभि मुस्कुरा दी ।
सुरभि ने एक नजर अपने घर पर दौड़ाई, हर कोना बिखरा पङ़ा था पर वो जानती थी अगले दो घन्टे में शन्नो रानी और उसके हाथ यहाँ वो जादू बिखेरेंगे कि घर पुरी तरह चमक जाएगा ।
सुरभि ने अपने लिए ग्रीन टी का पानी चढ़ा दिया ।अभी बस वो चाय छान ही रही थी कि शन्नो रानी आ गई - " दीदी एक कप मेरा भी बनाईगा ", आते ही शन्नो रानी ने आर्डर झाड़ा ।
" बिल्कुल बना देंगें , अच्छा शहद वाली लोगी या बिना शहद वाली " सुरभि ने पूछा ।
"बिना शहद की देना मेरे दुश्मन को, हम तो डबल शहद वाली पीएंगे "।
"चलो ये भी ठीक है " कहते हुए सुरभि ने दोनों कपो में शहद डाल लिया ओर एक कप शन्नो को पकङ़ाकर दूसरा खुद उठा लिया।
" शन्नो आज घर बङ़ा गन्दा है जरा अच्छे से साफ करना " सुरभि ने कहा।
" बिल्कुल....ये भी कहने की बात है हमारा भी तो घर है ये " शन्नो ने आँखें तरेरते हुए कहा।
" वही तो ...मैनें तो अपनी सब सहेलियों से कह रक्खा है हमारी शन्नो को नजर न लगाना ।बहुत ही साफ- सुथरा काम करती है ।फर्श तो ऐसी चमकाती है कि मानो कांच हो ।हम तो उसके भरोसे सारा घर छोड़ देते हैं" सुरभि ने तीर छोड़ा ।
"और नहीं तो क्या , अब मेरे हाथों का जादू देखना " हँसते हुए शन्नो रानी ने कहा और ब्रेड के साथ चाय का आनंद लेने लगी।
सुरभि अपने मीठे शब्दों का जादू साफ- साफ महसूस कर रही थी। कामयाबी का सेहरा एक सर से दूसरे सर पर पहुंचकर इतरा रहा था।