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अंगुलियाँ

अंगुलियाँ

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रेलिंग का सहारा लेकर उसने किसी तरह धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ीं और साक्षात्कार कक्ष के बाहर जा पहुँची। अभी भी बारह मिनट शेष थे। पहले बैंच पर बैठकर दो मिनट को सुस्ताया फिर एक हाथ से बैग से पानी की बोतल निकाली और दूसरे से रूमाल, लगभग एक साथ ही माथे पर आये पसीने को पोंछा। वहाँ उसके अतिरिक्त दो पुरुष प्रतिभागी पहले से बैठे हुए थे, उसने अंदाज़ा लगाया कि इनका साक्षात्कार उसके बाद ही होगा। अभी भी वह थोड़ा हाँफ रही थी, एक हाथ उभरे हुए पेट पर रख वह नज़रें झुका कर बैठ गई। 
उसे याद आया कि जहाँ वह पीएच डी कर रही थी वहाँ उसकी एक अन्य वरिष्ठ शोध छात्रा से उसके गाइड इस बात पर अक्सर नाराज़ रहते थे कि उसकी गर्भावस्था की वजह से प्रोजेक्ट का काम पिछड़ रहा था। एक दिन मीटिंग में आँकड़े प्रस्तुत न कर पाने की वजह से कितने अभद्र तरीके से उनसे कह भी दिया था कि 
-इसी वजह से मैं अपनी प्रयोगशाला में शादी-शुदा लड़कियों को नहीं लेता कि प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो न हो लेकिन उन्हें परिवार पहले पूरा करना है। 
यह सब याद आते ही एकबार पुनः पसीने की बूँदे उसके माथे पर उभर आईं। वह खुद को संभाल ही रही थी कि उसके नाम का बुलावा आ गया 
- डॉक्टर रीना!!
-यस सर, आ रही हूँ। 
 
संयत होकर अपनी कोशिश भर तेज़ी से वह साक्षात्कार कक्ष में पहुँची। पौने घंटे चले साक्षात्कार में सब कुछ सामान्य रूप से घटित होता रहा और अंत में साक्षात्कारकर्ता ने पूछा 
- रीना, मैं आपके जवाबों से संतुष्ट और प्रभावित हूँ। आपके मन में कोई संदेह या सवाल हो तो आप अभी पूछ सकती हैं। 
- सर, आई एम प्रेग्नेंट फॉर सेवेन मंथ्स लेकिन मैं वादा करती हूँ कि निर्धारित समय में प्रोजेक्ट पूरा कर लूँगी। 
साक्षात्कर्ता ने मुस्कुराते हुए कहा 
- रीना, मेरी पत्नि भी शोधकर्ता हैं और एक बच्चे की माँ भी, मैं आपकी समस्या समझ सकता हूँ। आप निश्चिन्त रहिये चयन करते समय सिर्फ आपकी योग्यता को ही ध्यान में रखा जाएगा। 
 
अचानक वह बहुत हल्का महसूस करने लगी थी, उसने भरी हुई आँखों से अपनी अँगुलियों पर एक निगाह डाली, जो एक सी नहीं थीं।


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