कोशिश
कोशिश
एक नन्हा बच्चा होता है, जिसे चलना और बोलना तुरंत नहीं आता। वो उनसे बड़े व्यक्ति को देखकर चलना, बोलना सिख जाते हैं। ऐसा नहीं कि वो एक दिन में ही बोलने लगते हैं, या चलने लगते हैं। उनको बोलने और चलने में 4,5 साल लग ही जाते हैं। वो गिरते हैं, फिसलते हैं। फिर भी उनकी कोशिश लगातार 4,5 साल चलती ही रहती है। तब उनके मन में ये नहीं आता कि, बस यार नहीं होता मुझसे, मैं नहीं करूँगा। यहीं सोच जब हम बड़े होते हैं तब कहा जाती हैं,पता नहीं। एक दो बार कोशिश के बाद ही हम अपने आपसे हार जाते हैं।
मेरी कहानी इस आधार पर ऐसी ही एक लड़की की हैं...
'संध्या' नाम की एक लड़की होती हैं। जिसकी पढ़ाई ग्रेजुएट तक हो चुकी थी। पर सिर्फ नाम के लिए उसकी डिग्री काम की थी। क्योंकि...वो तीन साल की पढ़ाई पाँच साल कर रही थी। बारहवीं तक पहले पाँच में आनेवाली संध्या तीन साल किसी ना किसी विषय में फेल हो जाती थी। और यहीं फेलिअर उसे मन में मन खा ही जा रहा था।
उसे अब पढ़ाई करना अच्छा ही नहीं लगता था। उसका मन पढ़ाई से ज्यादा अब जो फेलिअर मन की बातें हैं उसे शायरी रूप में लिखना पसंद आने लगा था। पर इससे थोड़ी जिंदगी चलती है। ये तो बस मन हल्का करने का नुस्खा है। ये वो मन ही सोच रही थी। पर उसे आदत ही लग गई, वो हर मन की बात कागज़ पर उतारने लगी। और लोगों के सामने पेश करने लगी। पर लोगों को लगता था कि, किसी और का लिखा ही वो सुनाती है। ऐसे ही टाइम पास के लिए लोग सुनते गए। और उसकी कलम हर बार रंग लाने लगी। कुछ दिनों के बाद लोगों को उसका सच सच लगने लगा,क्योंकि। वो वहीं लिखती थी,जो लोगों को लगता था, पर समझाने नहीं आता था, और ये लड़की बस कुछ लाइन में इतनी बड़ी बात यूँ ही कह जाती थी।
लोगों से उसकी लिखाई को प्यार और रेस्पेक्ट मिलने लगा। वैसे उसकी सोच आसमां छूने लगी। ऐसे करते करते उसका खुद का नाम भूलकर लोगों के होठों पर 'राइटर' नाम आना लगा। वो एक दिन सच में बढ़ी शायर, पोएटर, मोटिवेशनल थौटर बन गयी।
इस सब में उसने उसके फेलिअर विषयों को छुड़ाने की कोशिश नहीं छोड़ी, इस बार नहीं अगली बार सही होगा। ये सोचकर वो थोड़ा थोड़ा ट्राय करके उस विषयों को छुड़ाने में सफल हो गई। नाम के लिए ही सही पर वो ग्रेजुएट हो गई। अब वो कुछ खास करती नहीं, बस जब मन में आता हैं, कलम लेकर लिखना शुरु कर देती है। इसमें कौन सा सक्सेस है और कहाँ है उसको पता नहीं पर उसकी कोशिश जारी है।
कहते हैं, ना लहरों से डरकर नौका कभी पार नहीं होती,कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती ।
इस छोटी कहानी से मैं सिर्फ ये कहना चाहती हूँ की,
"जो नज़रों को अच्छा लगता हैं, या नज़दीक दिखता है, उसके ही पीछे दौड़ने में वक्त जाया ना करो।"बल्कि...जो अपने आप में छिपा होता है उससे कुछ नया करने की कोशिश करो।