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मिलिशियामैन

मिलिशियामैन

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अलिक को दुनिया में सबसे ज़्यादा डर मिलिशियामैन से लगता था। घर में उसे हमेशा मिलिशियामैन के नाम से डराते थे। अगर वह सुनता नहीं है, तो उससे कहते हैं, “अभ्भी आ रहा है मिलिशियामैन !”

शरारत करता है – फिर से कहते हैं, “तुझे मिलिशिया में भेज देना पड़ेगा !”

एक बार अलिक भटक गया। उसे खुद भी पता नहीं चला कि ये कैसे हो गया। वह कम्पाउंड में घूमने के लिए निकला, फिर रास्ते पर भागा। भागता रहा, भागता रहा और उसने अपने आप को अनजान जगह पे पाया। अब तो वो रोने लगा। चारों ओर लोग जमा हो गए। पूछने लगे, “ तू कहाँ रहता है ?”

मगर उसे तो ख़ुद को ही मालूम नहीं है !

किसी ने कहा, “इसे मिलिशिया में ले जाना चाहिए। वहाँ इसका पता ढूँढ़ लेंगे।”

मगर जैसे ही अलिक ने मिलिशिया के बारे में सुना, वो और ज़ोर से रोने लगा।

इतने में मिलिशियामैन वहाँ पहुँच गया। वह झुककर अलिक से पूछने लगा, “तेरा नाम क्या है ?”

अलिक ने सिर उठाया, मिलिशियामैन को देखा और वहाँ से दूर भागा। मगर कुछ ही दूर भागा। लोगों ने उसे जल्दी से पकड़ लिया और कस कर पकड़े रहे जिससे कि वो कहीं और न भाग जाए।

और वो था कि चिल्लाए जा रहा था, “मिलिशिया में नई जाना है ! मैं खोया हुआ ही रहूंगा, वो ही अच्छा है !”

लोगों ने कहा, “ऐसे खोए हुए नहीं रहना चाहिए।”

 “मैं तो किसी न किसी तरह मिल ही जाऊँगा !”

 “ऐसे कैसे मिल जाएगा ? ऐसे थोड़े ही न मिल जाएगा !”

अब मिलिशियामैन फिर से उसके पास आया। अलिक ने उसे देखा और ऐसे ज़ोर से चिल्लाया कि मिलिशियामैन ने हाथ हिलाए, वह दूर हटकर गेट के पीछे छिप गया।

लोग बोले, “अच्छा, अच्छा, चिल्ला मत। मिलिशियामैन चला गया, देख रहा है न – वो कहीं नहीं है !”

“नहीं, नहीं गया। वो छिप गया है गेट के पीछे, मैं देख रहा हूँ !”

और मिलिशियामैन गेट के पीछे से चिल्लाया, “नागरिकों, कम से कम उसका नाम तो पूछ लीजिए, मैं मिलिशिया में फोन करता हूँ !”

एक औरत ने अलिक से पूछा, “मेरी पहचान का एक छोटा सा बच्चा है, वो कभी भी ऐसे गुम नहीं जाता है, क्योंकि उसे अपना ‘सरनेम’ मालूम है।”

“मुझे भी अपना ‘सरनेम’ मालूम है,” अलिक ने कहा।

“अच्छा, तो बता।”

 “कुज़्नेत्सोव। और मेरा नाम है अलेक्सान्द्र इवानोविच।”

 “ऐख तू। शाबाश !” औरत ने उसकी तारीफ़ की। “तू, शायद सब जानता है !”

वह मिलिशियामैन के पास गई और उसे अलिक का ‘सरनेम’ बताया। मिलिशियामैन ने मिलिशिया में फोन किया, फिर उनके पास आकर बोला, “ये बिल्कुल पास ही में रहता है : पेस्चानाया स्ट्रीट पर। बच्चे को घर तक पहुँचाने में कौन मदद करेगा ? मुझसे तो ये न जाने क्यों डरता है।”

 “चलिए, मैं ले जाती हूँ। लगता है कि इसे मेरी थोड़ी सी आदत हो गई है,” उस औरत ने कहा जिसने अलिक का ‘सरनेम’ पता किया था।

उसने अलिक का हाथ पकड़ा और घर ले चली। मिलिशियामैन पीछे-पीछे चल रहा था। अलिक शांत हो गया और उसने रोना बंद कर दिया। मगर वह पूरे समय मिलिशियामैन की ओर देखता रहा और उसने पूछा, “ मिलिशियामैन पीछे-पीछे क्यों चल रहा है ?” “तू उससे मत डर ! वो तो सब कुछ ठीक-ठाक रखने के लिए होता है। देख, तू उसे अपना ‘सरनेम’ नहीं बताना चाहता था, मगर मैंने उसे बताया। उसने मिलिशिया में फोन किया, और वहाँ उन्होंने फ़ौरन तेरा पता ढूँढ़ लिया, क्योंकि मिलिशिया में सबके ‘सरनेम और पते लिखे हुए होते हैं।”

तबसे अलिक मिलिशियामैन से नहीं डरता। उसे मालूम है कि वे व्यवस्था बनाए रखने के लिए हैं।         


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