मन की डोर
मन की डोर
अगले महीने होने वाली राधा की शादी की तैयारियां पूरे ज़ोर शोर से चल रही थी, पूरे गांव को बेहद खुशी थी कि राधा को बहुत अच्छा लड़का मिला है। आखिर मिलता भी क्यों ना, राधा थी ही सर्वगुण संपन्न। लेकिन कहीं न कहीं राधा की शादी के बाद उसके शहर चले जाने की बात से सभी अपना दिल छोटा किये बैठे थे लेकिन क्या करें यह तो इस दुनिया की रीत जो ठहरी इसीलिए सब खुशी खुशी लगे हुए थे तैयारियों में। वहीं दूसरी ओर राधा का छोटा भाई रज्जी ज्यादातर घर में एक दीवार के सहारे मुँह फुलाये ही बैठा रहता कि “उसकी बहन राधा उसे अकेला छोड़कर इतनी दूर चली जाएगी, वो कैसे रहेगा उसके बिना इसीलिए उसकी शादी मत करो” बस यही रट लगी रहती थी उसकी सुबह शाम। जब माँ से ऐसा नहीं कहने की डांट पड़ती तो रोता रोता चिपक जाता राधा से।
वैसे तो राधा के और भी भाई बहन थे लेकिन रज्जी के सबसे छोटा होने के कारण उसका और राधा का बेहद प्यार व लगाव था क्योंकि राधा ने उसे बहन बन कर नहीं बल्कि माँ की तरह ही पाला पोसा था। इन दोनों के प्यार की मिसाल तो पूरा गांव देता था। जहां भी कही आना जाना होता दोनों साथ जाते, दोनों घर के आंगन में बैठकर खूब बातें करते।गर्मियों में कभी राधा रज्जी को फर्श पर लिटाकर अपनी गोद में उसका सिर रख पंखा देती तो कभी खूब कड़ाकेदार सर्दियों में दोनों भाई बहन तसले में लकड़ जलाकर मजे से आग सेंकते और राधा अपने भाई को मूंगफली छील कर खिलाती।
बार बार राधा की शादी न करने की ज़िद में रज्जी को रोता हुआ देख राधा को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था, और अब मना भी कैसे करती शादी के लिए, सारी तैयारियां जो हो चुकी थी। धीरे धीरे वक़्त बीत गया और शादी वाला दिन आगया था व बारात दरवाजे पर खड़ी थी। राधा की धड़कनें तेज हुई पड़ी थी अपने शुरुआत होने वाले जीवन के इस नए सफर में राधा को खुशी से पहले रज्जी की चिंता सताए जा रही थी। सारी रस्मों रिवाज़ों के साथ राधा का विवाह पूरा हो गया था व सभी रस्मों में रज्जी ने राधा का हाथ कसकर पकड़ रखा था।
अब सबसे कठिन समय आन पड़ा था विदाई का। सभी से मिलने के बाद जब राधा अपने नए घर जाने के लिए जैसे ही गाड़ी में बैठने लगी तब उसकी माँ ने रज्जी का हाथ उसके हाथ से छुड़ाने के लिए जैसे ही आगे बढ़ाया राधा बोल पड़ी “मेरा भाई रज्जी मेरे साथ जाएगा।”
यह क्या कह रही हो राधा बिटिया ? राधा की माँ की जुबान पर यह सवाल के साथ साथ मन में पैदा हो रहा डर आंखों से साफ दिखाई पड़ रहा था कि जमाई जी क्या सोचेंगे, कहीं कोई ऊँच नीच न हो जाए। इसीलिए बात को संभालते हुए राधा की माँ बोलने लगी “अरे ! राधा बिटिया तुम अपने नए जीवन की खुशी खुशी जमाई जी के साथ शुरुआत करो, रज्जी की चिंता छोड़ दो हम सब है ना इसकी देखभाल के लिए। जब भी कभी तुमसे मिलने की इच्छा करेगा हम मिलवाने ले आया करेंगे लाओ इसे दे दो।”
जैसे ही राधा की माँ राधा के हाथ से रज्जी का हाथ छुड़वा कर अपने पास बुलाने लगी राधा ने कहा “माँ, मैंने इनसे पहले ही यह बात बता दी थी कि रज्जी की मेरे जीवन में क्या अहमियत है और जैसे रज्जी मेरे बिना नहीं रह सकता वैसे ही मैं भी शायद उसके बिना न रह सकूँ और शायद यह इनकी अच्छाई ही तो है जो इन्होंने मेरी खुशी के लिए शादी के बाद भी रज्जी को मेरे साथ अपने घर ले जाने की अनुमति दे दी।”
राधा की बातें सुनकर रज्जी के चेहरे पर खुशी सी दमक पड़ी व राधा आज अपने आप को बेहद खुशनसीब समझ रही थी कि उसने जीवनसाथी के रूप में एक ऐसा इंसान पाया था जिसने उसे समझते हुए व बड़े ही सम्मान से उसके दिल के बेहद करीबी रिश्ते से बंधी मन से मन की डोर को गांठ बांध कर जीवन भर के लिए मजबूत कर दिया था।