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Ravi Kumar

Fantasy Romance

4.7  

Ravi Kumar

Fantasy Romance

अधूरी मुलाकात…

अधूरी मुलाकात…

28 mins
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कुछ मुलाकातों की भी अपनी ही एक अलग किस्मत होती है जो एक तय मुकाम पर ही आकर रुकती है ।

ऐसी मुलाकातें जाने कब, कहां और कैसे हो जाएं, ये न तो हम जानते है और न ही वो जो इससे होकर गुजरते है पर हां एक बात तो हमेशा तय रहती है कि इन्हे चाहकर भी भुलाया नही जा सकता और कोई चाहे जितना अपने जेहन से झगड़ ले पर दिल तो इन्ही मुलाकातों के पन्नों को बार-बार पलटता रहता है, भला जिद्दी जो ठहरा । ऐसी ही एक मुलाकात से आज राजीव भी गुजरने वाला था जो कॉफी शॉप पर बैठा, गर्मागर्म कॉफी की चुस्कियों के साथ अपने नोवॅल के अंतिम चैप्टर पर उलझा पड़ा था । बार-बार शब्दों से उलझते हुए उसकी अंगुलियां लेपटॉप के डिलीट बटन पर आकर रुक जाती और फिर न चाहते हुए भी स्क्रीन पर उभरे शब्द एक-एक करके गुमनामी की दुनिया में विलीन हो जाते । सांसो में घुलती कॉफी की सुगंध, रह-रहकर उसके दिलोदिमाग को मुग्ध कर जाती । आस-पास बैठे लोगो की गुफ्तगू से अनजान, वो अपने ही मन की गलियों में अपनी कहानी के किरदारों के साथ खोया हुआ सा था । कुछ सूझता तो झट से उसकी अंगुलियां लेपटॉप पर चल पड़ती पर वही अगले ही पल अपने ख़यालों से झगड़कर वो फिर उलझ जाता । क्या इस कहानी का कोई अंत है भी ? उसने पूछा खुद से और जवाब उसकी खामोशी ने दिया । यूं ही बैठे-बैठे पल, घंटो में तब्दील हो गए और टेबल पर कॉफी के कप की तादाद भी एक से ज्यादा होती गई । शायद आज उसका दिन ही नहीं था या फिर वो कहानी ही उससे रुठ चली थी । शायद सुनने में अटपटा जरुर लगे पर राजीव तो यही मानता था कि हर कहानी की अपनी एक रुह होती है जो किसी दिन चुपके से आपके दिलोदिमाग में आ बैठती है और एहसासो व कल्पनाओं के जरिए आपसे बात करने लगती है । ये पनपता एहसास ही शब्दों के जरिए हमारे कलम के सहारे कागज़ पर आ उतरता है । कहानी ही ये तय करती है कि उसे कब, कहां और कैसे खत्म होना है । उसे लिखने वाला तो बस एक जरिया है । अलग नजरिया था राजीव का हर चीज़ को देखने का और शायद यही कारण था कि इस दौड़ती-भागती नौ से सात बजे की जिंदगी से ज्यादा उसे अपनी कहानियों की दुनिया में रमना ज्यादा पसंद आया ।

 ”उफ्फ” राजीव ने मुहं से एक ठंड़ी सांस छोड़ी और हाथों को अपने सिर के पीछे बांधते हुए कुर्सी पर ऊंघने लगा। वही पास के शीशे से सड़क पर दौड़ती गाड़ियों को देखते हुए उसने अपने ठहरे हुए ख़यालों को भी रफ्तार देने का प्रयास किया पर अफसोस वो नाकाम रहा । कॉफी का आखिरी कप भी खत्म हो चुका था और शॉप के मालिक की तिरछी निगाहें बार-बार राजीव को घूरती जा रही थीं जो शायद ये सोच बैठा कि कहीं राजीव ने यही रहने का इरादा तो नहीं कर लिया । खैर, राजीव भी उसके अंदेशे को जल्द ही भांप गया और लेपटॉप बंद करके वो उठने ही वाला था कि अचानक शॉप के दरवाजे पर अनजान कदमों की आहट हुई और राजीव की नजरें खुद-ब-खुद उस ओर खिंची चली गईं । उस अजनबी की दस्तक कुछ यूं खास थी कि बाहर दुनिया का समां भी उसके आने पर करवटें बदल बैठा और काली बदरी आसमान से बरसने को बेताब हो उठी । हो सकता था शायद ये केवल एक इत्तेफाक हो पर राजीव के दिल की धड़कने भी तो बदलते मौसम की तरह इस पल बैचेन हो उठी थी । वो अर्चना है शायद, अरे हां वही तो है । राजीव का मन बेबाकी में चहक उठा । अपनी ठहरी निगाहों से राजीव उसे शॉप में दाखिल होता देख, मानो अपनी जगह जम सा गये । अगर उसके सीने में धड़कता दिल न होता तो कोई भी उसे एक बुत मान लेता । हां, वो वही थी । चांद सा दुधिया रंग था उसके चेहरे का, माथे पर एक छोटी सी लाल बिंदी भी थी जो उसके गोल चेहरे पर बेहद फब रही थी । हरे रंग की चटकीली साड़ी पहने, अपने दाएं हाथ से अपने उलझे बालों को संवारती, वो बाहर के बदलते मौसम से डरती, घबराती हुई सी कॉफी शॉप की छत के नीचे आसरा पाकर खड़ी हो गई । ये बारिश का डर उसे कबसे सताने लगा, राजीव ने सोचा । ये वही अर्चना थी न, जो कभी बारिश में यूं बाहें फैलाकर खड़ी हो जाया करती थी मानो उनका स्वागत कर रही हो और उन ढलकती बूंदो के बीच अपने भीगे होंठो पर भीनी मुस्कान लाकर ऐसे हंसती मानो बरसात ने कुछ कहा हो उससे । कितना कुछ बदल गया था शायद । वो पांच साल पुरानी बात थी । आज जो सामने थी, वो भी शायद उसी बदलते वक्त की रफ्तार में कही खोई सी लग रही थी । एक नज़र, उसे देखने के बाद राजीव ने चाहा कि अर्चना कभी उस तरफ न देखे जहां वो बैठा था और कही भूल से अगर वो उसे देख भी ले तो वो उसे पहचान न पाए । वो भी तो बदल चुका था न । कॉलेज की यादें , आज की मटमैली सच्चाई की वजह से कही धुंधली न पड़ जाए शायद यही सोचकर वो चाहकर भी उसे पुकार न पाया । पर वो उठकर वहां से जा भी तो नहीं सकता था, वो वही खड़ी थी, दरवाजे के पास , मौसम के थमने के इंतजार में । पल-पल उठती उसकी निगाहे दरवाजे से आसमां को ताकती और गड़गड़ाते बादलो की धमक पाकर वो हताश हो जाती । कही पहुंचना था उसे शायद पर कहां ? सांवले मौसम की रोशनी में उजला सा उसका चेहरा क्या किसी से मिलने की बेबसी में उलझा था ? आखिर ऐसी कौन सी मंजिल थी या ऐसा कौन सा शख्स था जो इस पल उसके लिए इतना महत्त्वपूर्ण था ? राजीव के जेहन पर मंड़राते सवालो की जमात तो जैसे पल-पल बढ़ती गई और उन्हे जैसे-तैसे थामते हुए राजीव ने वापस अपना लेपटॉप खोल लिया और उसके पीछे मुहं छिपाए , ब्लैंक स्क्रीन को ताकने लगा । कुछ ही पल बीते थे कि बारिश की बूंदे उन काले बादलो से आजाद होकर जमीन पर मोतियो के समान बरस पड़े । रिमझिम करती बूंदे शीशो से टकराकर उन पर अनगिनत लकीरे खींचते चले गए । राजीव भी उनकी दस्तक को नजरअंदाज न कर पाया और बाईं ओर नजरें फेरकर शीशे से बाहर की दुनिया को धुंधला होता देखता रह गया । तभी पास ही कहीं कोई हलचल हुई । किसी ने कुर्सी खिसकाई थी शायद । न चाहते हुए भी राजीव ने लेपटॉप के बगल से अपनी गर्दन निकाली तो उसने थोड़ी सी दूरी पर दो टेबल छोड़, तीसरी टेबल पर अर्चना को बैठा पाया । अकेली सी, गुमसुम सी वो, अपनी गुमराह निगाहों से कॉफी शॉप का मुआयना कर ही रही थीं कि राजीव उसकी गुजरती नजरों के दरम्यान, खुद को छिपाते हुए वापस लेपटॉप के पीछे छिप गया । बरसात के थमने के इंतजार में अर्चना ने एक कप कॉफी तक मंगा ली और राजीव बस यही सोचता रहा कि कैसे अब यहां से निकला जाए पर वहीं उसकी नज़रों से बचने की जद्दोजहद में राजीव ने ये भी पाया कि उसके मन का एक हिस्सा यहां ठहरकर उसे निहारना भी चाहता था, फिर चाहे पल, साल में और साल, सदियां ही में क्यो न तब्दील हो जाएं । आखिर क्यों ये एहसास पांच सालों के बाद भी अपनी फितरत न बदल पाएं और एक बार फिर वो चाहत उसके सीने मे उफान भरने लगी जिसे सालो पहले वो दफन कर चुका था । कॉलेज की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, इसका एहसास उन दोनो को कभी हुआ ही नहीं था, बस एक रोज़ ऐसी ही बरसात में राजीव ने अपने दिल की बात उसके आगे रख दी और अर्चना ने भी मुस्कुराते हुए उसके प्यार को स्वीकार कर लिया । शायद एक बचपना था उस दौर का या फिर उम्र की कोई शरारत जिसमें वो दोनों ही ठगे गए थे । कॉलेज के खत्म होते ही उन दोनों ने अपने रास्ते अलग कर लिए जहां राजीव ने अपने कैरियर को प्राथमिकता दी और वही अर्चना ने अपनी पढ़ाई को आगे जारी रखना चाहा । फिर वो दोनों कभी नहीं मिले । वक्त की बिसात पर बिछी उनकी जिंदगी फिर कभी एक जगह आकर नहीं रुकी पर न जाने क्यों आज भूले- भटके वो आज आमने – सामने आ थमी । सीने में उछलता राजीव का दिल तो अपनी मोहब्बत की गवाही उसे बार-बार दिए जा रहा था पर ये दिमाग था जो उसकी एक नहीं सुन रहा था । मन तो किया कि उठकर उसके पास टेबल पर जाए और उसे कुछ कहे और बदले में उसकी कुछ सुने । पर क्या ये मुमकिन था ? शायद नहीं । 

कॉफी के कप में उठते धुएं को फूंक मारकर उड़ाती हुई अर्चना रह-रहकर कप को होंठो तक ले आती और फिर बारिश की बूंदो में सुकून ढूंढने का असफल प्रयास करती । अब क्या लिखता वो, लफ्ज़ तो कुछ पल पहले ही उसका साथ छोड़ चले थे अब तो बस लेपटॉप के भटकते कर्सर को वो सिर्फ ताक ही सकता था कि अचानक अनचाहे कदमों के आगमन से राजीव चौंक उठा । नजरें उठाकर देखा तो उसने वेटर को पाया जो उससे आगे के ऑर्डर की फरमाइश करता दिखा । राजीव ने न चाहते हुए भी एक कॉफी मंगवा ली और वेटर के जाते ही उसने अर्चना की नज़रों का सामना किया जो अब उसे ही देखने लगी थी । क्या वो उसे पहचान पाएगीं ? क्या वो इन पांच सालो के अंतराल में उसकी यादो में कही ठहरा भी था या फिर कहीं गुम हो चला था ? राजीव ने भी थमी हुई निगाहों से अर्चना को देखा, अब छिपने का आखिर फायदा ही क्या था । खामोश नज़रो की बातचीत का एक दौर दोनो तरफ से आरंभ हो गया था, जहां लफ्जों का कोई काम ही नहीं था । अपनी अंगुलियो से कॉफी के कप को सहलाती, अर्चना जहां उसे पहचानने के प्रयास में लगी रही, वही राजीव उसकी नजरों से बचते हुए लेपटॉप पर यूं ही अंगुलियां फिराने लगा पर अब देर हो चली थी । अर्चना की निगाहें उससे एक पल के लिए भी नहीं हटी और उसकी नजरों का आलम कुछ यूं था कि राजीव उन निगाहों की गर्माहट को अपने जिस्म के हर हिस्से पर महसूस कर सकता था । इस बार जब उसने नजरें चुराकर अर्चना को देखना चाहा तो वो बड़ी आसानी से पकड़ा गया । अर्चना उसकी चोरी पकड़, मुस्कुरा उठी और उसके खिले होंठो के किनारों पर सजी मुस्कान को देख न जाने क्यों राजीव को एक अजब सा सुकून मिला । अपनी नजरें झुकाए वो भी मुस्करा पड़ा । अपनी मुस्कुराहटों से एक-दूसरे का परिचय कर उन दोनो ने पांच साल की फैली दूरियों को उस पल एक झटके में मिटा दिया और अगले ही पल अर्चना अपनी कॉफी थामे उसकी टेबल की ओर बढ़ी चली आई । 

”हैलो, मिस्टर राइटर ! तुम मुझे पहचान नहीं पाए या फिर मुझे न पहचानने का नाटक कर रहे थे ? ” अर्चना ने चहकते हुए उससे पूछा । 

उसे अपने इतना करीब देख, राजीव ने तो कुछ पल यकीन करने ही बिता दिए । न जाने कैसी खुश्बू ओढ़ी थी उसने कि आसपास का समां उसकी खुश्बू में ही घुलकर महक उठा और साथ में राजीव का जेहनोदिल भी ।  

अपराधबोध, राजीव एक भीनी मुस्कान लिए उसकी ओर देख कर बोला, ” शायद दोनों ही । कितनी बदल गई हो तुम । प्लीज सिट” ।

राजीव के आग्रह पर अर्चना उसके टेबल के पास वाली कुर्सी पर बैठ गई और कॉफी का एक सिप लेते हुए बोली, ” तुम भी तो बदल चुके हो । क्लीन शेव रखने वाले शख्स को आखिर घनी दाढ़ी से कब प्यार हो चला पर फिर भी मैं तुम्हें पहचान गई न !” ।

होंठो पर तैरती मुस्कान बिखराए, राजीव ने कहा,” पहचान तो मैं भी तुम्हे पहली नज़र में ही गया था । वो तो मेरे मन ने मुझे थोड़ा उलझा दिया था ”। 

”हम्म ” अर्चना ने उसे देखते हुए कहा,” मन की बातो में आज भी तुम बड़ी आसानी से आ जाते हो । शायद कुछ आदतें कभी नहीं बदलतीं ”।

”शायद, कभी नही ”

दोनों एक साथ मुस्कुराए ।

तभी राजीव की भी कॉफी उसके टेबल तक पहुंच चुकी थी और कुछ पल शांत रहकर उन दोनो ने कॉफी का जायका लिया । बाहर बरसात की रिमझिम तेज़ हो चली थी । शीशों पर टकराती बूंदे बार-बार दस्तक देकर अंदर आने की इजाजत मांगती दिखी पर अफसोस वहां मौजूद कोई शख्स उन्हें सुन नहीं पाया । कॉफी का सिप लेते हुए राजीव ने अपने सीने में उछलते दिल की धड़कनो को काबू में लाने का प्रयास किया और यही उम्मीद करी कि उसकी धड़कनो की गूंज अर्चना के कानो तक न पड़े । 

”तो अपनी कोई नई कहानी लिख रहे हो, ?” अर्चना ने उसके लेपटॉप को निहारते हुए पूछा ।

राजीव ने झिझकते हुए जवाब दिया,” कोशिश कर रहा हूं पर तुम्हे कैसे पता ? ”।

”तुम्हारी किताब पढ़ी थी मैंने” अर्चना ने कहा,” ‘मोक्ष’ यही नाम था न तुम्हारी किताब का ?”

ये सुन राजीव मुस्कुरा पड़ा और सहमति में सिर हिलाते हुए उसने कहा,” हां, तुम्हें कैसी लगी ? ”

”हम्म” अर्चना ने जवाब में कहा,” अच्छी थी पर मुझे उसका अंत कुछ अटपटा सा लगा”

”मतलब ? ”

”मतलब कि तुमने उसे जल्दबाजी में खत्म किया था शायद”

ये सुन राजीव सिर झुकाए हंस पड़ा । वो सही थी पर राजीव ने उससे सही होने की उम्मीद नहीं की थी ।

”कहानियो का अंत अक्सर मुझे उलझा देता है, यूं समझ लो कि जैसे वो अलविदा कहना ही नहीं चाहते मुझसे ”। राजीव ने अर्चना को देखते हुए कहा, ”पर पता है, सही मायने में कोई भी कहानी कभी पूरी होती ही नहीं है बस ऐसे ही किसी एक खूबसूरत से मोड़ पर लाकर छोड़ दी जाती है सिर्फ इसी उम्मीद के साथ कि उन किरदारों के साथ अब सबकुछ अच्छा होगा । अजीब है न ? ”।

जवाब में अर्चना के होंठ मुस्कान में खिल उठे और उसकी बातो के यथार्थ को समझते हुए बोल पड़ी,” अगर ऐसा है तो, तब तो उन किरदारों की किस्मत हमसे कई गुना बेहतर है । कम से कम कोई तो है जो उनके लिए एक बेहतर अंत तलाश रहा है । यहां तो हमारी पूरी जिंदगी बीत जाती है पर हम उस अंत को कभी तलाश नही पाते ”।

कॉफी थामे ,मुहं की तरफ जाता राजीव का हाथ बीच में ही थम गया । कितना सही कहा था अर्चना ने । ये बात राजीव के दिल को छू गई ।

उससे प्रभावित होकर, राजीव ने मजाक में कहा,” मेरे ख्याल से तुम्हे भी अब लिखना शुरु कर देना चाहिए”।

”अच्छा, अगर ऐसा हुआ तो कही तुम्हारे लिए कम्पीटीशन न बन जाऊं” अर्चना ने हंसते हुए कहा ।

” फिर तो रहने दो” 

दोनो ने मुस्कुराते हुए, एक साथ कॉफी का सिप लिया ।

” तो क्या तुम अक्सर यहां आया करते हो ? ” अर्चना ने पूछा ।

” मैं तो बस एकांत तलाशता हूं । जहां मिल जाए, बस वही अपना लेपटॉप खोल लेता हूं और शुरु हो जाता हूं पर तुम बताओ, यही आस-पास रहती हो क्या? ” राजीव ने पूछा ।

”मेरा यहां आना सिर्फ इत्तेफाक भर है, वो भी इस बारिश की वजह से” अर्चना ने कहा ।

इस पर राजीव का मन बोल उठा, ” बड़ा हसीन इत्तेफाक है जो पांच सालो बाद उसने आज हमे यूं ही मिलाने की शरारत कर डाली ” पर वो इस ख्याल को लफ्जों की शक्ल न दे पाया ।

” न जाने कब ये बरसात थमेगी ? ” अर्चना ने शीशो से टकराती बूंदो को देखकर अपना मन मसोसा ।

”कहीं जाना है, क्या ?” राजीव ने पूछा ।

इस पर अर्चना ने खामोश निगाहों से उसे ताका, शायद उसके सवाल को मन ही मन तोल रही थी वो और फिर गहरी सांस भरते हुए उसने कहा,” तुमसे मिलकर अच्छा लगा पर शायद मुझे अब चलना चाहिए”।

”पर अभी बारिश थमी नहीं है और तुम्हारी कॉफी भी तो अभी खत्म नही हुई है ” राजीव ने उसे कुछ पल ओर ठहरने का आग्रह किया ।

अर्चना ने नजरें झुकाकर अपने कप को ताका और फिर अनचाहे मन से उसने एक सिप ओर लिया । बारिश की रिमझिम को सुनते हुए राजीव यादों में खो चला और चहकते हुए उसने कहा,” याद है तुम्हे कॉलेज की वो लास्ट सेमेस्टर की बारिश जहां तुमने कॉलेज से अपने घर तक का सफर पैदल, बारिश में भीगते हुए पूरा किया था । हम लोगों ने कितना टोका था तुम्हें , पर क्या कहा था, तुमने ? ”।

राजीव ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखकर, जवाब का इंतजार किया और अर्चना अपने दिमाग पर जोर देते हुए कुछ भुले-बिसरे शब्द अपने होंठो पर जुटा ही रही थी कि राजीव बोल पड़ा,” बारिश की हर एक बूंद का स्वाद चखना है, मुझको । कुछ यूं भीगना है आज मुझे कि…”

तभी अर्चना ने आखिरी वाक्य को खत्म करते हुए कहा, ” अपने तन से घुलकर, रुह मे मिल जाऊं कही, ” ।

राजीव का चेहरा दमक उठा पर वही अर्चना शायद अपने बीते कल में ही कही ठहर गई कि उसकी नजरें गुमराह हो चली । 

 ”हैरानी होती है मुझे, कि आज तुम उसी बारिश की बूंदो से दूर भाग रही हो” राजीव ने उसका ध्यान भंग करते हुए कहा ।

” वक्त हमेशा एक सा नही रहता और न ही हम, और हो सकता है कि आज उसकी कोई मजबूरी हो जिसकी वजह से वो इस बरसात का सामना नही कर सकती”  

 ”भला ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी उस पर, मैं भी तो जानू ”

इस पर अर्चना ने लफ्जो की जगह सिर्फ अपनी मुस्कान से जवाब दिया । कुछ तो छिपा था उस मुस्कान के पीछे जिसे राजीव भांप नही पाया । 

” मेरी बाते याद है तुम्हे पर क्या मैं याद रही तुम्हे इतने सालो में ?” 

” ये सवाल तो मै भी तुमसे कर सकता हूं न ?” 

”हां, पर पूछा तो पहले मैनें है ” 

”तो ?”

”तो जवाब जानने का हक मेरा ज्यादा बनता है”

इस पर राजीव अपने माथे पर अंगुलियां फिराने लगा । वो जानता था कि बहस में उससे जीतना लगभग नामुमकिन था और कुछ खामोश पलो का सहारा लेते हुए उसने कहा, ” किसी की याद आने के लिए पहले उस शख्स का भुलाया जाना जरुरी होता है और तुम तो मेरी यादों से कही गई ही नहीं थी कभी । तुम मुझे हमेशा मिलती रही जब ऐसी ही बरसात में किसी अजनबी को मुस्कुराता हुआ पाया । मेरी कहानियों के किरदारो में भी तुम हमेशा नाम बदलकर आ जाया करती थी । यूं ही कभी राह चलते, कई सफरों में अक्सर कोई ऐसा शख्स हमेशा मिल जाता था जिसमे मुझे तुम्हारी झलक मिला करती थी । इतने सालों के दरम्यान, मै ऐसे ही टुकड़ो मे तुमसे मिलता हुआ आया हूं कि तुम्हें भुलाने की कोशिश करने की फुर्सत भी तुम्हारी यादों ने नहीं दी, मुझे । मैं भला, कैसे भुला सकता था उस शख्स को जिसने मेरे नोटबुक के पिछले पन्नो पर लिखी कहानियों पर विश्वास करके मुझे ये यकीन दिलाया था कि मैं एक राइटर बन सकता हूं ”।

बाहर रिमझिम की फुहारें तेज़ हो चली थी । शीशों से झांकती बाहर की दुनिया पल-पल उन फुहारो में खोती जा रही थी और वही उन शीशो के परे, टेबल पर बैठे दो शख्स भी पुरानी यादों की लहरों में उलझते जा रहे थे । अर्चना, राजीव के जवाब में कुछ ऐसे उलझी कि वो शब्द भुला बैठी और परेशान सी, अपनी जगह बैठी रह गई । कॉफी से निकलता धुआं अब ठंड़ा पड़ने लगा था पर अब उसका ध्यान कॉफी पर था भी नहीं ।

” मै जानता हूं कि मैने ही हमारे रिश्ते को खत्म किया था पर सच तो ये है कि तुम्हें भूलने की मैने जितनी बार कोशिश की है, न जाने क्यों मैने तुम्हे उतना ही खुद के करीब पाया है । वक्त के साथ बढ़कर मैने वो सब हासिल किया जिसकी तमन्ना पाले तुमसे दूर हुआ था पर आज तुम्हे पास देखकर, मन फिर से उन बीते पलों में लौट जाने का कर रहा है जहां हम अजनबी थे और वहां तुमसे मिलकर फिर से एक नई शुरुआत करने का दिल चाहता है ”। अपनी बात खत्म कर, राजीव एकटक उसे देखता रह गया ।

अर्चना उसका जवाब जानकर अचरच हो गई और आंखो में हैरानी लिए वो राजीव को देखती रह गई । दोनों की नजरें आपस में न जाने कैसी गुफ्तगू में व्यस्त हो चली कि खामोशी का साया उन दोनो के बीच पसर गया । तभी अर्चना ने अपनी नजरें झुकाई और कहा,” बातो में उलझाना तुम्हे बेहतर आता है । आखिर तुम एक राइटर जो ठहरे, पर इंसानी जज्बातो को समझना उतना आसान नहीं होता जितना कि कहानी के किरदारों का होता है ”।

अपनी बात कहकर, अर्चना ने अपने बाएं हाथ की अनामिका अंगुली पर चढ़ी अंगुठी राजीव को दिखाई और कहा, ” तुम्हें नहीं लगता कि शायद बीते कल में लौटने के लिए अब काफी देर हो चुकी है ”।

उस अंगुठी को देख राजीव की दौड़ती धड़कनो को अचानक एक गहरा धक्का सा लगा । उसकी सुनहरे रंग से सनी वो अंगुठी राजीव की आंखो को चुभती सी लगी जिसे वो ज्यादा पल देख नहीं पाया और नजरें फेर, होंठो पर मुस्कान का मुखौटा चढ़ा लिया । 

” और मैं कितना अजीब हूं,” राजीव ने बारिश की बरसती बूंदो को कुछ पल निहारा और फिर वापस अर्चना की ओर लौटते हुए बोला,” अपनी कॉफी के कप को जानबूझकर खत्म नहीं कर रहा था, ताकि इसके बहाने तुम्हें कुछ पल ओर थाम सकूं पर भूल गया था कि वक्त को तो कोई थाम ही नहीं सकता ”।

इतना कहकर वो अपने कॉफी के कप को सहलाने लगा । उसकी अंगुलियों के स्पर्श से स्पष्ट था कि वो कप भी अब ठंडा हो चला था । उसे अभी-अभी ये एहसास हुआ कि वो अर्चना के लिए जो महसूस करता है, उसे वो शब्दो में समेट नहीं सकता और वो ऐसा अगर कर भी लेता तो भी बहुत देर हो चुकी थी । बस, यही एहसास उसके दिल को कचोटने के लिए काफी था । वो मुस्कुरा तो जरुर रहा था पर अर्चना भी उसकी मुस्कान में छिपी उस चुभन को महसूस कर सकती थी जिसे वो अपने दिल में छिपाए बैठा था ।

” मैं और अर्जुन आज मिलने वाले थे” अर्चना ने अपनी अंगुठी को छुआ और कहा,” पर बारिश की वजह से यहां मजबूरन रुकना पड़ा । मुझे क्या पता था कि तुम भी आज इसी कॉफी शॉप में मिलोगे” । 

” इत्तेफाक ” राजीव ने थके स्वर में कहा, ” उतनी भी अच्छी चीज़ नहीं है जितना कि हम समझते हैं । पर वो कहते हैं न, अक्सर खूबसूरत कहानियों की शुरुआत लाईब्ररी में होती है और अंत किसी कॉफी शॉप पर । शायद हमारी कहानी भी कुछ ऐसी ही थी ” । 

राजीव ने कॉफी का कप होंठो से लगाया और उसे एक झटके में खत्म कर गया । अपनी दबी मुस्कान लिए वो खुद पर ही हंस पड़ा । उसके हालातों ने कैसा मजाक खेला था उसके साथ कि वो ठीक से खुद पर हंस भी नहीं पाया । आज उसके होंठो को पता चला कि मुस्कुराहटों का भी कोई बोझ होता है जो उन्हे कभी-कभी हालातों के चलते उठाना पड़ जाता है ।

चंद पलो की खामोशी में जहां अर्चना ने भी अपनी कॉफी खत्म की, वही बारिश भी अपनी साजिश में नाकामयाब होकर थमने लगी । 

बरसात को रुकता देख, अर्चना ने कहा, ” मुझे अब चलना चाहिए । क्या पता ये बरसात फिर कहीं शुरु न हो जाएं ”।

”हम्म” 

”तुम्हारी नई किताब का इंतजार करुंगी” अर्चना ने कुर्सी से उठते हुए कहा ।

राजीव के मन ने उसे रोकना तो खूब चाहा पर वो उसे क्या कहकर रोके, ये वो कोशिश करके भी सोच नहीं पाया । शायद ऐसे लफ्ज़ बने ही नहीं थे जो किस्मत की लकीरों को बदल सकते । मजबूरन, राजीव को हार माननी पड़ी और वो खामोश अपनी कुर्सी पर बैठा रह गया । अर्चना ने एक मुस्कान भरी नजरों से उसे अलविदा कहा और मुड़ गई ।

 तभी कुछ पल दूर जाने के बाद, दरवाजे पर अर्चना के बढ़ते कदम अचानक थम गए । शायद कुछ भूल गई थी वो या फिर किसी बात ने उसे उलझा दिया था । दरवाजे के हैंडल को थाम, वो वहीं खड़ी रह गई ।   

उसे यूं खड़ा देख, राजीव उठने को हुआ ही था कि अर्चना ने भी उसकी ओर अपनी निगाहें कर दी और फिर उसने कहा, ” तुम गलत हो राजीव । हो सकता है कि हमारी कहानी अभी खत्म नहीं हुई ”। 

कुर्सी पर बैठा राजीव हैरानी से उसे ताकता रह गया । 

” वो कहते है न, ” अर्चना ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, ” जिदंगी उस किताब की तरह है जिसके पन्ने सिर्फ वक्त पलट सकता है, हम नहीं । हो सकता है , शायद हम भी उन पन्नो की बिसात पर दोबारा मिल जाएं कहीं ” ।

राजीव उसकी बात पर सिर हिलाकर सिर्फ मुस्कुरा पाया और बदले में अर्चना भी मुस्कुरा उठी । कुछ ही पलों बाद वो उसकी नजरों से दूर होती चली गई और राजीव बिना पलकें झपकाए, शीशे की आड़ में उसे तब तक देखता रहा जब तक की वो उसकी आंखो से ओझल नहीं हो गई । न जाने क्यो मन ये ख्याल पाल बैठा था कि शायद वो उसी दरवाजे से वापस चली आए, जहां से वो खो गई थी, बस इसी इंतजार में राजीव यूं ही टेबल पर कुछ पल बैठा रहा । पर वो वापस नही लौटी । वो आई तो थी बहुत सी उम्मीदों के साथ पर जाते हुए एक अनाम सा गम ईनाम में दे गई जिसे राजीव कभी भुला नहीं पाएगा । न जाने वो अपने साथ ऐसा क्या ले गई, जिसके बगैर राजीव खुद को अधूरा सा महसूस करने लगा और अफसोस इस बात का रहा कि राजीव खुद नहीं जानता था कि वो चीज़ क्या थी, जो वो उससे मांग सकता । वो चली तो गई थी पर उसकी खूश्बू वहीं ठहर गई जो उसकी खाली कुर्सी के इर्द-गिर्द एक साए की तरह मंडराती रही और राजीव उसमे रह-रहकर अपनी सांसे भरता रहा । उसके कहे गए शब्द राजीव के दिलोदिमाग में अभी तक गूंज रहे थे । ये कैसा प्रभाव था उसका, कि वक्त भी उसके आगे हार मानता सा दिखा, जो बीत ही नहीं रहा था । यादों के सागर में बार-बार गोते खाता राजीव का मन घुटने लगा और तभी अचानक राजीव ने अपने लेपटॉप को घूरा और फिर न जाने उसे क्या हुआ कि उसकी अंगुलिया खुद ब खुद उस पर चलने लगीं । उसकी रफ्तार से स्पष्ट था कि एक नई कहानी उसके मन में घर कर गई थी जिसे वो अब वास्तविकता का रुप देने में शुमार हो चुका था ।


दो साल बाद...


” थके हारे दिल के साथ जब रोहन उस कॉफी शॉप के बाहर आया तब उसने प्रिया को वहीं दरवाजे के पास बाहर खड़ा पाया । प्रिया के भीगे चेहरे को देखकर, रोहन को एहसास हुआ कि इस बरसात में भीगते हुए वो सिर्फ उसका इंतजार कर रही थी । इससे पहले कि वो कुछ कह पाता, प्रिया ने अपनी इंगेजमेंट रिंग को अपनी अंगुली से निकाल फेंका और वो उसकी ओर धीमे कदमों से बढ़ चली । रोहन के कदमों के कुछ फासलों पर प्रिया के कदम थमे और उनकी निगाहों ने एक-दूसरे को कुछ ऐसे निहारा मानो वो एक-दूसरे से बरसों बाद मिल रहे हो ” राजीव के स्वर से पूरा हॉल गूंज रहा था और जैसे ही उसके शब्द थमे, तालियों की एक जोरदार गड़गड़ाहट उसकी खामोशी का पीछा कर, उस हॉल में गूंज उठी । 

अपनी किताब को थामे, वो उनमे लिखी कुछ लाईने किसी मंच में खड़ा होकर सुना रहा था । आज अपनी नई बुक के लॉन्च पर राजीव ने अपने नोवॅल के लिए काफी वाह-वाही लूटी पर उसका मन, खुशी के साए से कोसों दूर कहीं वीरानियत में खोया रहा । तभी उसकी नजरें अपनी किताब से हटी और वो सामने बैठे कुछ लोगो से मुखातिब हुआ । 

” आखिर क्या प्रेरणा रही इस किताब को लिखने की ? ” किसी एक महिला सदस्य ने सवाल किया ।

इस सवाल पर राजीव के चेहरे पर गंभीरता छा गई । माइक को थामे, कुछ पल खामोश रहकर, उसने जवाब दिया,” एक मुलाकात जिसके अंजाम को मैं कोशिश करके भी न बदल पाया, शायद इस एहसास ने ”।  

” तो फिर ये कहना गलत नहीं होगा कि ये किताब आपके जीवन की किसी सच्ची घटना से प्रेरित है ” किसी अन्य सदस्य ने सवाल किया ।

”जी, बिल्कुल ठीक कहा आपने ” ।

” तो क्या आपकी प्रिया हकीकत में है ? ” 

ये सुनकर राजीव अपने चेहरे पर एक दबी मुस्कान ले आया और कहा, ” है भी और.. नहीं भी ”।

उसका जवाब वहां बैठे कई लोगो के चेहरे पर हैरानी के भाव ले आया ।

उनकी हैरानी देख, राजीव ने मुस्कुराकर कहा, ” उस दिन कॉफी शॉप पर एक लड़की आई तो थी पर उसने प्रिया की तरह मेरा इंतजार नही किया और न ही मेरे लिए उसने अपनी इंगेजमेंट रिंग को अपनी अंगुली से निकाल फेंका पर एक वादा जरुर कर गई थी वो मुझसे उस दिन , जिसकी खातिर मेरा मन आज भी उसी कॉफी शॉप में ही ठहरा है कहीं । मेरे मन का एक हिस्सा आज भी उसी कुर्सी पर बैठा उसका इंतजार कर रहा है और शायद हमेशा करता रहेगा ” ।

” कैसा वादा ? ” तभी भीड़ से सवाल गूंज उठा ।

इस सवाल पर राजीव नजरें झुकाए, कुछ पल खामोश रहा ।

” ये एक राज़ है जो सिर्फ हम दोनों के दरम्यान कैद है ”।

इतना कहकर राजीव ने अपनी किताब और माइक को टेबल पर रखा और रुम से बाहर चला गया । टेबल पर रखी उस किताब का शीर्षक उसके हटते ही स्पष्ट हुआ- ” अधूरी मुलाकात” । 

शायद कुछ कहानियों का अंत वैसा नहीं होता जैसा कि हम चाहते हैं। राजीव भी तो यही कहता था न, कि सभी कहानियां एक खूबसूरत से मोड़ पर लाकर छोड़ दी जाती हैं सिर्फ इसी उम्मीद पर कि अब सबकुछ ठीक होगा । वो आज भी उसी कॉफी शॉप में जाता है जहां उसकी मुलाकात अर्चना से हुई थी और हर बार की तरह कॉफी ऑर्डर कर, उस दरवाजे को ताकता रहता है जिसका हैंडल थामे वो वही कुछ पल के लिए थम गई थी । सिर्फ उसके इंतजार में , वो घंटो उसी टेबल पर बैठा रहता है और इस दौरान वो फिर उन बीते पलो में खोकर, हमेशा उसके आखिरी शब्दों पर आकर ठहर जाता है । 

”तुम्हारी नई किताब का इंतजार करुंगी” 

यही तो कहा था उसने जाने से पहले । यही तो एक वजह थी कि राजीव ने उसी पल से अपना सारा वक्त उस नई किताब को खत्म करने में लगा दिया जो उसे फिर से अर्चना से मिला सके और उस अधूरी मुलाकात को मुक्कमल कर सके जो उस दिन अधूरी रह गई थी । क्या उसने उसकी नई किताब पढ़ी भी होगी ? क्या उसे अपनी बात याद भी होगी ? या फिर वो इन दो सालों के अंतराल में अपने जीवन में कहीं इतनी दूर तो नहीं चली गई कि राजीव बहुत पीछे छुट चुका हो शायद । इसी यादों के सिलसिले में राजीव को अभी याद आया कि वो उस दिन उससे ये पूछना तो भूल ही गया था कि क्या वो याद रहा था उसे इतने सालो में ।  

आज वक्त पहले से कुछ धीमा बीत रहा था और बाहर का मौसम भी तो कुछ अनमना सा लग रहा था । बदलते करवटो के पहर में जब राजीव थक हार कर अपनी कॉफी के आखिरी घूंट को खत्म कर उठने को हुआ ही था कि तभी शॉप के दरवाजे पर एक आहट हुई और वो वही थम गया । कोई तो दाखिल हुआ था उस शॉप में जिसके कदम कहीं और न बढ़कर सिर्फ राजीव की टेबल की तरफ बढ़े । वो अर्चना थी, हां वही थी । नीले रंग की साड़ी पहने, चेहरे पर फिक्र बिछाए और निगाहो में बैचेनी लिए, वो राजीव को देखकर मुस्काई और उसके टेबल के करीब आकर थम गई । वही राजीव भी धड़कनो में बेताबी लिए अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया और फिर दोनो ने एक दूसरे को कुछ ऐसे देखा मानो एक-दूसरे से बरसो बाद मिल रहे हों शायद । सवालों की जगह, होंठो पर मुस्कान सजाए वो यूं ही एक-दूसरे को खड़े ताकते रह गए । शायद वक्त कहीं थम सा गया था या ये दुनिया कहीं गुम हो चली थी, बेसुध से वो दोनों , बेपरवाह थे इस वक्त और दुनिया की हलचल से । वही उसी पल राजीव ने पाया कि अर्चना के बाएं हाथ की अंगुलियां सूनी पड़ी थी । इससे पहले कि वो कुछ ओर पूछ पाता, अर्चना की भीगी आंखो ने उसके सवाल पर लगाम लगा दिया और वो दोनो कुछ कह नहीं पाए, सिवाय एक-दूसरे को निहारने के…। 


समाप्त



”क्या खूब कहा था किसी ने कि, जिंदगी उस किताब की तरह है जिसके पन्ने सिर्फ वक्त पलट सकता है…हम नहीं । क्या पता आपकी अधूरी चाहत भी उन पन्नो पर कहीं, आपका इंतजार कर रही हो शायद !"






  

  


                                      

 


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