Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Charumati Ramdas

Children Stories Drama

5.0  

Charumati Ramdas

Children Stories Drama

तेज़ दिमाग

तेज़ दिमाग

4 mins
408


मक्खीपकड़-पतलीनाक पेड़ की टहनी पर बैठा था और अपने अगल-बगल नज़र डाल रहा था। जैसे ही बगल से कोई मक्खी या तितली गुज़रती, वह फ़ौरन लपक कर उसे पकड़ लेता और निगल जाता। फिर वापस टहनी पर बैठकर इंतज़ार करता, चारों ओर नज़र दौड़ाता। उसकी नज़र पास ही बैठे बलूतनाक पर पड़ी और वह लगा उससे अपनी ज़िन्दगी का रोना रोने।

”बेहद थक जाता हूँ मैं,” वह कहने लगा, “खाना ढूँढ़ते-ढूँढ़ते। सारा दिन मेहनत करते रहो-करते रहो, आराम का नाम नहीं, सुख-चैन का पता नहीं, फिर भी आधा पेट ही रहता हूँ। ख़ुद ही सोचो: आख़िर कितनी मक्खियाँ पकड़नी चाहिए, जिससे पेट भर जाए। अनाज के दाने मैं चुग नहीं सकता, मेरी नाक बेहद पतली है।”

”हाँ, तेरी नाक किसी काम की नहीं है!” बलूतनाक ने कहा। “मेरी नाक की बात ही और है! मैं उससे चेरी की गुठली छिलके जैसी चबा जाता हूँ। अपनी जगह पे बैठे रहो और बेरीज़ पे चोंच मारते रहो। तेरे पास ऐसी नाक होनी चाहिए थी।”

क्लेस्त-सलीबनाक ने उसकी बात सुनकर कहा:

“बलूतनाक, तेरी नाक तो बेहद सिम्पल है, जैसे चिड़िया की नाक होती है, बस, कुछ ज़्यादा मोटी है। मेरी नाक देख, कैसी बढ़िया है! मैं उससे पूरे साल छिलकों से बीज निकालता रहता हूँ। ऐसे। क्लेस्त ने हौले से अपनी मुड़ी हुई नाक से क्रिसमस ट्री के फल का छिलका उतार कर बीज बाहर निकाल दिया।

“सही है,” मक्खीपकड़ ने कहा, “तेरी नाक बड़ी चालाकी से बनाई गई है!”

“तुम लोग नाकों के बारे में कुछ भी नहीं जानते!” दलदल से बेकास-लम्बीनाक टर्राया। “अच्छी नाक सीधी और लम्बी होनी चाहिए, जिससे कीचड़ से कीड़े आराम से पकड़ सको। मेरी नाक देखो!”

पंछियों ने नीचे की ओर देखा, तो वहाँ पत्थर के नीचे से पेन्सिल जितनी लम्बी और दियासलाई जैसी पतली नाक झाँक रही थी।

“आह,” मक्खीपकड़ ने कहा, “काश, मेरी नाक ऐसी होती!”

“ठहरो !” दो चाहा-भाई – सुआनाक और क्रोन्श्नेप-हँसियानाक – चहके, “अभी तूने हमारी नाक देखी ही नहीं है!”

मक्खीपकड़ ने मुँह घुमाकर देखा तो उसे अपने सामने दो लाजवाब नाकें दिखाई दीं: एक ऊपर की ओर देख रही थी, दूसरी नीचे की ओर, और दोनों सुई जैसी महीन थीं।

“मेरी नाक इसलिए ऊपर देखती है,” सुआनाक ने कहा, “जिससे कि मैं पानी के भीतर के छोटे-छोटे जीव पकड़ सकूँ।

“और मेरी नाक नीचे इसलिए देखती है,” क्रोन्श्नेप-हँसियानाक ने कहा, “कि मैं घास से केंचुए और छोटे-छोटे कीड़े खोदकर निकाल सकूँ।”

“ओह,” मक्खीपकड़ ने कहा, “आपसे अच्छी नाक तो किसीकी हो ही नहीं सकती!”

“ऐसा लगता है, कि तूने असली नाकें देखी ही नहीं हैं!” चौड़ीनाक ने डबरे से चिल्लाकर कहा। “देख, कैसी होती हैं असली नाकें। वॉव!”

सारे पक्षी चौड़ीनाक की नाक के ठीक सामने ठहाके लगाने लगे!

“अरे, ये तो बिल्कुल फ़ावड़ा है!”

“मगर इससे पानी काटना कितना आसान है!” चौड़ीनाक ने दुख से कहा और फ़ौरन सिर के बल डबरे में घुस गया।

“मेरी नाक पर ग़ौर कीजिए!” पेड़ से नन्हा भूरा नाईटज़ार-जालीनाक फुसफुसाया। “चाहे वो छोटी हो, मगर वो जाली का काम भी करती है और निगलती भी है। जब मैं रात को धरती पे उड़ता हूँ, तब मच्छरों के, पतंगों के, तितलियों के झुँड के झुँड मेरे जाली-गले में फँस जाते हैं।”

“ऐसा कैसे ?” मक्खीपकड़ को बड़ा अचरज हुआ।

“ऐसे !” नाईटज़ार-जालीनाक ने कहा और इस तरह से अपना जबड़ा खोला कि सारे पंछी घबरा कर उससे दूर हट गए।

“क़िस्मत वाला है!” मक्खीपकड़ ने कहा। “मैं तो एक-एक कीड़ा ही पकड़ पाता हूँ, और ये तो एकदम सैंकड़ों निगल जाता है !”

“हाँ,” पंछियों ने सहमति दर्शाते हुए कहा, “ऐसे जबड़े से तो नाकाम हो ही नहीं सकते!”

“ऐ तुम, नाचीज़ पंछियों!” तालाब से पॅलिकन- थैलीनाक ने चिल्लाकर उनसे कहा। “पकड़ लिया मच्छरों को, और हो गए ख़ुश। ये नहीं कि अपने लिए कुछ बचाकर भी रख लो। मैं तो मछली पकड़ता हूँ – और अपनी थैली में डाल देता हूँ, फिर से पकड़ता हूँ – फिर से थैली में डाल देता हूँ।”

मोटे पॅलिकन ने अपनी नाक उठाई, और उसकी नाक के नीचे दिखाई दी एक थैली, मछलियों से ठसाठस भरी हुई।

“ये है नाक!” मक्खीपकड़ चहका। “पूरा स्टोर-रूम! इससे बेहतर तो कोई और चीज़ हो ही नहीं सकती !”

“तूने, शायद, अभी तक मेरी नाक नहीं देखी है,” कठफोड़वा ने कहा। “ये देख, ख़ुश हो जा !”

“उसमें ख़ुश होने वाली क्या बात है ?” मक्खीपकड़ ने कहा। “साधारण-सी नाक है, बस: सीधी, ज़्यादा लम्बी नहीं है, न तो उसमें जाली है, न थैली। ऐसी नाक से खाना जुटाने में बहुत वक़्त लगता है, और कुछ बचाने-वचाने के बारे में तो सोचो ही मत!”

“पूरे समय सिर्फ खाने ही के बारे में नहीं सोचना चाहिए,” कठफोड़वा-लम्बीनाक ने कहा। “हम जंगल में काम करने वालों के पास एक औज़ार ज़रूर होना चाहिए बढ़ईगिरी और जोड़ा-जोड़ी करने के लिए। हम इससे न सिर्फ अपने लिए खाना जुटाते हैं, बल्कि पेड़ भी छीलकर खोखला करते हैं : घर बनाते हैं, अपने लिए भी और दूसरे पंछियों के लिए भी। इसलिए मेरे पास ये बढ़िया छेनी है !”

“आश्चर्यजनक !” मक्खीपकड़ ने कहा। “आज मैंने कितनी सारी नाकें देखीं, मगर मैं फ़ैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि उनमें सबसे बढ़िया कौन सी है। तो, भाइयों, आप सब लोग एक साथ खड़े हो जाईये। मैं आपकी तरफ़ देखूँगा और सबसे बढ़िया नाक का चुनाव करूँगा।”

मछलीपकड़-पतलीनाक के सामने सारे पंछी एक कतार में खड़े हो गए : बलूतनाक, सलीबनाक, लम्बीनाक, सुआनाक, चौड़ीनाक, जालीनाक, थैलीनाक और छेनीनाक।

मगर तभी ऊपर से भूरा बाज़-हुकनाक टपक पड़ा, उसने मक्खी पकड़ को अपने खाने के लिए उठा लिया।

बाकी के पंछी फ़ौरन डर के मारे इधर-उधर उड़ गए।


Rate this content
Log in