टूटती बेड़िया
टूटती बेड़िया
प्रीति....प्रीति, अरे ! सुनो तो ज़रा कहाँ हो ? इधर आना तो प्लीज।
क्या हुआ रजत ! क्यों चीख रहे हो ? रसोईघर से भाग कर आती हुई प्रीति ने हाथ साफ कर कपड़ा टेबल पर रखते हुए पूछा।
देखो ना, यह ताला नहीं खुल रहा, कितनी बार कोशिश की, तुम अपनी कोई तरकीब लगाओ ना इसे खोलने के लिए।
लाओ दो तो ज़रा मुझे, रजत के हाथ से ताला लेकर प्रीति ने भी खूब कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ ही रही।
“लगता है रजत यह ताला काफी समय से ना खुलने के कारण जाम हो गया है, अब इसमें जब तक तेल नही डालेंगे तब तक नहीं खुलेगा, कोई बात नहीं मैं आज फ्री होकर घर के सारे तालों में तेल डाल दूँगी ताकि वो जाम न हो और वैसे भी बेफालतू में चीज़ खराब हो यह बिल्कुल पसंद नहीं है मुझे।”
कहते हुए प्रीति वापिस रसोईघर की तरफ मुड़ गयी।
रजत भी तैयार हो कर शाम तक वापिस लौट आने का कहकर किसी काम को निपटाने के लिए निकल गया। चूंकि आज इतवार था तो रजत को अपने पेंडिंग काम खत्म करने का समय मिल जाता था। घड़ी की टिकटिक ने कब पांच बजा दिए पता ही नही चला। प्रीति की रूही के साथ खेलते खेलते लगी आंख रजत के डोरबेल बजाने पर खुली। रजत को पानी देकर शाम का चाय नाश्ता लेकर जब प्रीति डाइनिंग टेबल पर आई तो वहां एक रेजिस्ट्रेशन फॉर्म रखा हुआ पाकर बोली।
”अरे ! यह किस चीज़ का फॉर्म है रजत ? तुम कुछ जॉइन कर रहे हो क्या ?
“मैं नही प्रीति, तुम करोगी जॉइन.. ग्रूमिंग क्लासेज, वो भी कल से, मैं जानता हूं शादी से पहले अपने स्टूडेंट्स को ग्रूमिंग क्लासेज देना तुम्हारा पैशन था लेकिन अब पांच सालों बाद बहुत सी नई ऐसी चीज़ें आ चुकी है जिन्हें पहले तुम्हें खुद दुबारा से सीखना होगा तभी तुम आगे बढ़ पाओगी।” रजत की यह बातें सुनकर प्रीति की आंखों में चमक तो आ गयी परन्तु उसकी जुबान उसके मन का साथ देने को तैयार न थी।
“मै..अरे ! ना बाबा ना...यह तो बिल्कुल भी पॉसिबल ही नही है रजत। रूही छोटी है उसको कौन देखेगा, ऊपर से घर संभालना, घर के सौ काम..हो ही नही सकता और वैसे भी अब मुझे क्या करना है यह क्लासेज जॉइन करके, इन सब से रिश्ता बहुत पहले ही खत्म हो गया है..अब सब कुछ तो है मेरे पास अपनी इसी ज़िन्दगी में बहुत खुश हूं मैं।” कहते हुए प्रीति ने रजत के हाथ में चाय का कप पकड़ा दिया और मुस्कुराने लगी।
“अरे ! प्रीति दिक्कत क्या है इसमें ? जब रूही प्ले स्कूल चली जाती हैं तब तुम जाकर अपनी क्लास ले सकती हो सिर्फ एक से दौ घंटो की ही तो बात है।” रजत की बातों में दिख रही वैधता ने रूही को तो चुप करा दिया था लेकिन उसके मन में उमड़ रहे घर, बच्चा, किचन की जिम्मेदारियों के सैलाब से वो भी दोराहे पर आकर खड़ी हो गई थी।
अभी मन मे उधेड़बुन चल ही रही थी कि रजत उसके सामने आईना लाकर उसे दिखाते हुए बोला- ”कभी देखा है खुद को तसल्ली से इस आईने में..देखो क्या हाल बना दिया है अपना..मानता हूं इसका जिम्मेदार कहीं न कहीं मै भी हूं क्योंकि तुमसे प्रेमविवाह के बाद मै इतना स्वार्थी बन गया कि कभी तुम्हारी ओर देखकर यह भी नहीं सोचा कि निस्वार्थ तुम इस घर को तो अपने प्यार से सींचती गयी, मुझमें अपनी दुनिया बसाकर कब खुद के लिए जीना भूल गयी शायद पता ही नहीं चला।”
लेकिन आज जब देखा कि “अगर एक ताले को अगर हम समय रहते तेल नहीं देंगे तो वो भी जाम हो जाएगा व जिस तरह घर को सुरक्षित रखने में एक ताले की अहम भूमिका होती हैं उसी तरह तुम तो मेरा जीवन हो जिसके बिना मै शून्य हूं, मैं तुम्हे अब और बांधना नहीं चाहता, बल्कि उड़ते परिंदों की तरह अब इन बेड़ियों की जकड़न से बाहर निकल कर तुम्हें खुद के लिए भी जीना है ताकि हमारे प्यार की खुशबू से हमारी ज़िंदगी सदा महकती रहे।”
रजत की बातें सुनकर प्रीति की आंखों में से आंसू छलकने लगे मानों पुरानी प्रीति वापिस लौट रही हो।