खुशी
खुशी
"माँ चरणस्पर्श !"
कहते हुऐ सुबोध ने माँ के पैर छुए। माँ ने आशीर्वाद देते हुऐ उसे खटिया पर बैठने के लिए कहा।
थोड़ी देर इधर-उधर की बात करने के बाद सुबोध ने कहा:
"माँ आप यहाँ अकेली रहती हो हम चाहते हैं आप हमार साथ ही मुम्बई में रहो।"
माँ ने कहा:
"बेटा यहाँ तेरे पिता जी की यादें जुड़ी है बेटा मुझे यही रहने दे।"
इसी के साथ माँ की आँखो के आगे एक चलचित्र चल गया।
"उसके पति रमाकान्त के देहान्त के बाद वह सुबोध के साथ मुम्बई गयी थी। तब सुबोध की पत्नी संध्या ने बीस दिन बाद ही ऐसी खरीखोटी सुनानी शुरू की कि:
"सुबोध तुम कुछ समझते नहीं हो अरे वन बीएचके में उन्हे कैसे रखेंगे और फिर अपना तो होता नहीं उनका भी करना पड़ेगा। "
इस तरह उसका वहाँ रहना दुभर हो गया और वह वापिस आ गयी थी।"
इस बीच शादी के पाँच साल हो गये थे लेकिन संध्या माँ नहीं बन पाई थी।
खैर माँ ने ही बात बढ़ाई:
"बेटा संध्या कैसी है।"
संध्या का नाम आते ही अब सुबोध की आँखो के चलचित्र चल गया:
"संध्या बधाई हो आप माँ बनने वाली हैं।"
डाक्टर ने कहा तो संध्या की खुशी का पारावार नहीं रहा। लेकिन आप अपने पति को बुलाइए थोड़ी बात करना है। सुबोध आया तो डाक्टर ने कहा:
"इतने दिनों बाद और इलाज के बाद संध्या माँ बनने जा रही है इसलिए इन्हें खास देखभाल और आराम की जरूरत है अच्छा हो कोई घर का व्यक्ति हो आगे आप जैसा ठीक समझें।"
इसके बाद ही माँ को लाने का विचार हुआ था।
"बेटा कोई खुशखबरी है।"
अब सुबोध ने कहा:
"हाँ माँ आपके आशीर्वाद से खुशी आई है लेकिन संध्या को देखभाल और आराम की जरूरत है अब आप चलती तो !"
माँ को अब पूरी कहानी समझ आ गयी थी।
लेकिन सब कुछ समझते हुए भी अनजान बनते हुए माँ ने अपना सामान समेटना शुरू कर दिया यह सोचते हुए:
"अब मेरी तो जिंदगी ही कितनी बची है, बच्चों की खुशी ही उनकी खुशी है यह जानते हुए भी इनका स्वार्थ पूरा होने बाद वह फिर तिरस्कृत कर दी जाएगी।"