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Shishir Mishra

Abstract

4.9  

Shishir Mishra

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सुबह का भूला सदैव भूला

सुबह का भूला सदैव भूला

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आज से तेरा इस घर में आना हुआ तो मैं भूल जाऊंगा कि तु कभी इस घर का सदस्य हुआ करता था।

ये थे वो आखिरी शब्द जो राज के पिता ने उसको घर से बाहर निकालते हुए कहे थे, उस वक़्त उसका चेहरा पूरी तरह मजबूरी और पश्चाताप से भरा हुआ था, और उसके दिल से बस यही आवाज़ निकल रही थी कि पिता जी मुझे माफ़ कर दीजिये लेकिन उसकी गलती और मनमानी उसके मुँह से कोई बात निकलने नहीं दे रही थी। उस दिन गांव के लोगों की प्रतिक्रिया ही अलग थी,

जो लोग शिव प्रसाद को बात-बात पर ताने मारते सही-गलत का पाठ पढ़ते थे वो आज बेटे के निकाले जाने पर उस रौद्र रूप को देख पत्थर की तरह चुप थे। शिव ने भी अपने आप को कितना जड़ बनाया होगा कितना, सोचा-विचारा होगा, कितनी ही बार गिरते आँसू पोछे होंगे तब जाकर कहीं उस इंसान को खुद से दूर भगा पाया जिसमे कभी उसकी जान निवास करती थी। 

ये उस समय की बात है जब गांव में आगे बढ़ने की इतनी होड़ भी नहीं थी और ना ही लोगों को ज़रूरत, सभी अपनी-अपनी ज़िंदगी में आ रहे कठिनाइयों का सामना बिना किसी हथियार करते थे, लोगों में एक दूसरे के प्रति लगाव था। गांव में सबसे ज्यादा मेहनत करने वाले दो किसान सबसे ज्यादा मशहूर थे एक शिव प्रसाद और दूसरा बेचूँ। दोनों की लागत एक जैसी थी और दोनो ही चाहते तो ऐश की ज़िंदगी काटते लेकिन दोनो एक दूसरे और गांव की गरीबी को समझते थे शायद इसी लिए दोनो ने रोटी कपड़ा मकान के बाद गांव का उद्धार चुना।

दोनों अपनी अपनी कमाई का आधा हिस्सा गांव के लिए खर्च कर देते। सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि इसी बीच बेचू की साँसे एक तूफान की चपेट से बच नहीं पाई और उसने अपनी आँखे बंद कर ली। लोग कहते हैं कि किसी डाकू ने उसकी हत्या की थी, लेकिन जो भी हो लोग अब शिव पर ही आश्रित रहकर और भी ज्यादा रोने लगे, क्या करे लोगों का काम ही रोना रह गया था। वो भी अपने दोस्त की मौत के सदमे में ज्यादा दिन खुद को रोक नहीं सका और जितनी जल्दी ठीक उतनी जल्दी अपनी कटाई-बुआई में लग गया। 

सब कुछ सही चल रहा था कि तभी लोगों ने उसकी जबरन शादी करवा दी, अब उसके खुले हाथ घर के जीवन में भी बंधने लगे, और गांव के चाल-चलन में थोड़ी बीमारी भी आने लगी। जोरू ठीक तो थी लेकिन पहले अपने परिवार की खुशी देखती थी, वो अपने जीवन की हरियाली को किसी आलसी या हवसी गांव को काटते नहीं देख सकती थी, जो शिव के बिल्कुल उल्टा था। 

दिन भर खेत-खलियान में खटने के बाद जब शिव थका हारा घर वापस आता तो उसे बहस के लिए भी थोड़ा समय ज़रूर निकालना पड़ता। वो लोगों की खुशाहाली के लिए अपना सुख त्यागना चाहता था और उसकी पत्नी अपने सुख और मेहनत के बीच किसी तीसरे को नहीं आने देना चाहती थी। गांव का विकास धीमा हो गया, और कुछ-कुछ ठीक चल रहा था कि शिव के बेटे की किलकारी घर में गूँजने लगी। अब उसका भार बहुत ज्यादा बढ़ चला था, और रोज़ रोज़ के झगड़े भी। लोगों की ख्वाईशें भी बढ़ती गयी और एक दिन सब कुछ त्याग कर शिव ने अपने गांव में माफ़ करियेगा।

घर में एक नई परंपरा शुरू कर दी, वो अपने बेटे को स्कूल भेजने लगा। सब बीवी के कहने पर लेकिन वो अभी भी अंदर से जैसे डरा हुआ था कि उसने अगर छोड़ा तो गांव का क्या होगा, उसके अंदर अभी जैसे ये प्रश्न बना हुआ था कि जो कुछ वो कर रहा है वो उसे गलत ना साबित कर दे, उसके मरने में दखल डाले। 

बच्चे की प्रारंभिक पढाई तो स्थानीय स्कूल से हो गयी लेकिन आगे की पढाई और रोजगार के लिए उसे शहर जाना था, शिव का मन बिल्कुल नहीं था कि वो उसे कहीं दूर भेजे। क्योंकि शिव तो मात्र शरीर था हाड़ मांस का उसकी जान तो उसके बेटे में रहती थी। उसके लिए उसने वो खिलौने लाकर दिए थे जो उस गांव तो क्या ग्राम सभा के किसी बाप ने अपने बेटे को दिखाये भी नहीं थे, उसने उसे वो तोह्फा भी दिया जिसका नामो निशान पूरे क्षेत्र में नहीं था और वो थी शिक्षा, और आज वही शिक्षा उसको उससे दूर कर रही थी।

उसने अपने दिल पर पत्थर रखकर उसे जाने को कह तो दिया लेकिन उस दिन से उसकी आँखों में हमेशा पानी रहने लगा, कभी यादों का कभी चिंता का कभी फिक्र का कभी अपने मित्र बेचू को सोच सोचकर। लेकिन किसी को दिखाई ना दे वो छुपाने का हुनर तो उसमे बचपन से था। उसने कभी भगवान से शिकायत नहीं की। बस जीवन के साथ चलता गया और अपनी पत्नी जिसने उसको बाहर भेजने का सुझाओ दिया था, को हर रोज़ मरते देखता रहा। वो कभी कभी पैदल चालीस कोस दूर पैदल ही निकल जाता अपने बेटे को याद दिलाने कि उसका भी एक छोटा सा गांव है परिवार है एक माँ है और सबसे पहले एक उद्देश्य है। उसकी पत्नी भी जाना चाहती थी अपने बेटे से मिलने जाए लेकिन पैरों के दर्द ने उसको बांधे रखा था। एक दिन उसने शिव को अपने पास बुलाया और रोते स्वर में बोली, 'मैंने उसे शहर भेजकर गलती कर दी, आप सही बोलते थे वो शहर जाकर बदल जायेगा, आज एक सपना देखा और मैं नहीं चाहती कि वो सही हो जाए, इसलिए अगर मैं मरने लगूँ तो मुझे बचाइएगा मत। '

शिव जनता था कि उसके सपने में सच्चाई थी, वो जाता तो था मिलने अपने बेटे से लेकिन उससे कभी मिलता नहीं था, उसका बेटा हमेशा हॉस्टल से नदारद रहता था, लेकिन उसने ये बात कभी पत्नी को नहीं बताई क्योंकि वो नहीं चाहता था कि एक समय को उसके सुख, स्वाभिमान, और आज़ादी के लिए लड़ने वाली औरत की छाती भी ये सुनकर फट जाए कि तेरा बेटा तेरे भेजे रास्ते से हटकर अलग ही गुन खिला रहा है। वो ये भी जानता था कि उसको एक लाइलाज बीमारी है लेकिन उसको अंतिम दिनों में खुश रखने के लिए उसने ये बात भी उससे छुपाई और एक औरत की तरह अपनी पत्नी की सेवा करता रहा। 

वो कभी कभी बोलता, ' आज कल सुबह के भूले शाम तो क्या दूसरे दिन भी घर नहीं आते। '

लोग कभी उसके इस सांकेतिक भाषा को समझ ही नहीं पाए और ना ही उसकी पत्नी। एक दिन अंतिम क्षणों में जब पत्नी राम नाम गिन रही थी, तो झूट मूठ का वो घर से जल्दी में निकल पड़ा ये कहकर कि बेटे को बुला आऊँ। लेकिन वो कहाँ भटकता कहाँ जाता, थक कर एक पोखर के किनारे एक चबूतरे पर बैठ गया और उस रात वो इंसान जो कभी अपने बाज़ुओं के बल के लिए जाना जाता था जो कभी दूसरों पर जान छिड़कता था वो अकेला, असहाय और कमज़ोर होकर बहुत रोया। इतना कि उसकी कल्पना कोई भी नहीं कर सकता।

अगले दिन सुबह जब वो अपने घर वापस गया तो यथार्थ के मुताबिक सादा आँचल लिए एक माँ एक पत्नी एक संघर्ष साथी को ज़मीन पर पड़ा पाया। उसने वहाँ अपनी आँखें फुला ली और एक भी बूंद पानी जमीन से टकराने नहीं दिया। वो अंदर से तो टूट चुका था लेकिन उसका आत्मसम्मान अभी भी जिंदा था, वो कसम खा चुका था अब वो सिर्फ गांव के लिए ही बाकी की ज़िंदगी बिताएगा। उसकी पत्नी ने भी मरने से एक दिन पहले उससे कसम ली थी कि उसके जाने के बाद वो बेटे का इंतज़ार छोड़ गांव के अपने सपने को पूरा करेगा। 

बेटा आने वाला तो नहीं था लेकिन शायद उसको किसी मुँह से खबर मिल ही गयी होगी कि माँ अब माँ नहीं रही मिट्टी में मिल चुकी है। वो आया और आते ही एक चरण ढूँढने लगा, पहुँच तो उस चरण तक लेकिन क्या मजाल उसकी जो वो स्पर्श कर पाए, शिव ने आँखें बंद कर ली और बिजली से भी तेज गर्जना में उसको वहाँ से फ़ौरन भाग जाने को कहा। फिर भी जब बेटा ना माना तो उसने फावड़ा उठा लिया और किसी नीलगाय की तरह उसको गांव के बाहर तक खदेड़ आया। और अपने प्यार, खून, ज़ज्बात और आँसुओं को जलाता गांव वालों के सामने अपने खेत को लौट गया।

शायद उसकी मौत बहुत बुरे हालातों में हुई जो यहाँ लिख पाना मेरे लिए संभव नहीं लेकिन इतना बता सकता हूँ कि उसकी लाश के पास से एक फावड़ा एक तस्वीर जिसमे वो उसकी पत्नी और बेटा तीनो की मुस्कान कैद थी और एक धोती मात्र मिली। 

उसकी बात हमेशा से सही साबित हुई की आज कल के सुबह के भूले शाम तो क्या दूसरे दिन भी घर नहीं आते....


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