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केसरिया रंग प्यार का

केसरिया रंग प्यार का

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मैं अपने काम के सिलसिले में बाहर थी। इसी बीच मुझे खबर मिली कि मेरी सहेली मीता की शादी पक्की हो गई है। मैंने उसे फ़ोन पर बधाईयाँ दी और उसे उसकी शादी की फोटो भेजने के लिए कह दिया, इस पर मीता ने कहा,” यार शादी की कुछ तस्वीरें तो मैं भेज दूंगी, पर तेरे जीजा जी की नहीं”। उनसे तो तुझे आकर ही मिलना होगा। या तो तू अभी आ, या बाद में आकर मिल लेना”। मैंने कहा,” ठीक है, जैसी तेरी मर्जी, अभी तो मैं काम में व्यस्त हूँ”। मैं कुछ दिनों के बाद आती हूँ। कुछ दिन साल में बदल गए और देखते हीं देखते पांच साल गुजर गए। मैं अपना काम पूर्ण कर अपने घर लौट आई। तो सबसे पहले मीता से मिलने का प्लान बनाया। उसे लाल और सफ़ेद गुलाब बहुत पसंद थे, इसलिए उसके बुके बनवाकर और साथ में टैगोर जी की पुस्तक लेके, मैं उसके यहाँ पहुँच गई। मैं उसे सरप्राइज देना चाहती थी, इसलिए दबे पांव मैं उसके कमरे में पहुँची हीं थी, कि मैंने देखा मीता को वह कुर्सी पर बैठी थी और अपने हाथों में तस्वीर लेकर उससे बातें कर रही थी। मैंने सोचा यहीं रुककर इंतजार कर लेती हूँ।

मीता उस तस्वीर से कह रही थी,”याद है अजय, आज ही के दिन हम मिले थे” हमारी मुलाकात कितनी फिल्मी थी न, हम आए तो थे मंदिर में मन्नत का धागा बांधने, पर दिल के धागे कब एक हुए, और प्रेम रूपी मोतियों ने अपनी जगह बना ली, हमें पता हीं नहीं चला। तुम तो मुझे पहली नज़र में ही भा गये थे। हमने अपना पहला वैलेंटाइन डे भी कितने अच्छे और अलग तरीके से मनाया था। हम दोनों सुबह हीं वृधाश्रम पहुँच गये थे और वहां के हर लोगों के साथ खूब आनंद मनाया था।सबने हमें कितनी दुआए दी थी। मेरे जीवन का वह सबसे सुखद पल था, बेहद खास, अप्रतिम....। उस दिन तुम्हारे एक और रूप से मेरा दीदार हुआ था, जब कुछ लोगों ने हमें पश्चिमी सभ्यता का हितैषी बताकर परेशान किया था, तब तुमने हीं उन्हें भारतीय सभ्यता सिखाई थी, उसका आदर करना सिखाया था। कितनी बहादूरी से तुमने उन्हें समझाया था, वाह...अजय।

जब भी तुम्हारी पसंद की केसरिया रंग की साड़ी पहनती थी, तब तुम मेरी तारीफ किये नहीं थकते थे और कहते थे तुम पर तो सारे रंग खिलते हैं पर केसरिया तो तुम पर लाजवाब है। मैंने तो तुम्हारे साथ कितने ख्वाब संजोए थे, पर... हर ख्वाब पूरा हो, ऐसा नहीं होता। तुम्हें मातृ-भूमि ने पुकारा था, भारत माँ ने अपनी लाज की रक्षा के लिए आवाज़ लगाई थी और भारत माँ का बेटा होने के नाते तुम्हारा फ़र्ज़ था कि तुम उन्हें अपवित्र होने से बचाओ। यही तुम्हारा धर्म था और कर्तव्य भी, क्योंकि तुम एक जाबांज सैनिक थे, जो दुश्मनों से डटकर मुकाबला करते हैं। जब तुम्हारी शहादत की खबर आई, तब मुझे अत्यंत पीड़ा हुई पर गर्व भी हुआ कि तुम अमर हो गये। जाते वक़्त ही तुमने कहा था,”कि मैं जा रहा हूँ । शायद लौटकर न आऊं, पर तुम अपनी जिंदगी जीना, क्योंकि तुम में मैं हूँ और मुझ में तुम”। उस पल जब हम दोनों गले मिले थे, तो तुम्हारी धड़कन से सिर्फ “भारत माता की जय” की गूंज आ रही थी।

मैं अब भी वही खड़ी थी और इतना सब कुछ सुनने के बाद मेरी आँखें भर आईं और मैं बिलकुल स्तब्ध-सी खड़ी थी मेरे रोने की आवाज़ सुनकर जब मीता पीछे मुड़ी, तो आकर मुझे गले से लगा लिया, वह पल सिर्फ दो सहेलियों का था। मैंने उससे पूछा,”इतना सब कुछ हो गया और तुमने मुझे खबर तक नहीं होने दी, क्यों? इसपर मीता ने कहा,”नहीं, मैं किसी के भी आगे कमज़ोर नहीं होना चाहती”।”अजय के जाने के बाद मैंने खुद को सशक्त बनाया है। अजय प्रत्यक्ष रूप से भले हीं यहाँ न हो, पर वो मेरे हीरो हैं । पूरे भारत के हीरो हैं जिन्हें दिल से नहीं निकाला जा सकता। प्यार ऐसी चीज, जो इतनी ताकत देती है, इतनी हिम्मत देती है, कि कोई भी कमज़ोर पड़ ही नहीं सकता। उनकी याद है मेरे साथ”। मैं अस्पताल में काम करती हूँ, जहाँ हर घायल सैनिक का इलाज और देखभाल किया जाता है। मैं पूरे लग्न से अपना काम करती हूँ, ताकि भारत माँ की रक्षा करने वाले सुपुत्र सलामत रहें, उनका परिवार खुश रहे। अजय बहादुर सैनिक थे, जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक दुश्मनों से लोहा लिया, उनकी जिंदगी बड़ी थी लम्बी नहीं।

मुझे अपनी सहेली की हर एक बात, बहुत अच्छी लग रही थी। प्यार ने मेरी सहेली को कितना मजबूत बना दिया था। जैसे पतझड़ के मौसम में सारे पत्ते पेड़ से गिर जाते हैं, पर फिर भी कुछ पत्ते डालों पर रह जाते हैं। जो अब भी अपनी जिंदगी जीना चाहते हो, उन्हें किसी बात की परवाह नहीं है। वह अपने प्रेम की ताकत से डटें रहते है। मुझे भी मेरी सहेली उसी पत्ते के तरह लग रही थी, जो अब भी अपने प्यार के विश्वास से संघर्षरत है। न की हताश या निराश, सचमुच प्यार के कई रंग हैं। इसे जिस रंग में रंगों, अगर भाव निश्छल और पवित्र है, तो रंग भी निखर के हीं आएगा। जय भारत माता।


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