सॉरी मां
सॉरी मां
आज बहुत दिनों बाद अमूलकी मम्मी को देखा तो उन से मिलने को मन किया। मैंने जा कर उनके घर की घण्टी बजा दी। आन्टी ने दरवाजा खोला और थोड़ा मुस्कुरा कर बोली-बहुत दिनों मेंं आए हो बेटा। कुछ काम था।
मैं बोला - नहीं आन्टी, बस आप से मिलने आ गया।आप कैसी हैं?
वो बोली-अच्छी हूँ।
मैंने पूछा-अभी भी आप पहाड़ के उस टीले पर जाती हैं ?
वो गहरी सांस लेते हुए बोली - वहाँ कैसे जाना छोड़ सकती हूँँ !
मैंने पूछा- अभी तक नगर पालिका वालों ने वहाँ बोर्ड नहीं लगाया ?
आन्टी थोड़ा परेशान होकर बोली- कहाँ बेटा। वैसे उनका कहना भी ठीक है, वो लोग कहाँ-कहाँ बोर्ड लगाते फिरेंगे। लोग तो आज कहीं भी पहुंच जाते हैं सेल्फी लेने।
बरसों से तुम लोग छुट्टियों में एक-दो बार चले ही जाते थे इस पहाड़ी पर।
मैं भरी आवाज से बोला- हम लोग कितने खुश थे। बोर्ड की परीक्षा के बाद। उस दिन सुबह-सुबह हम तीनों उस पहाड़ी पर गए। हर बार की तरह उस टीले पर चढे़ पर इस बार अमूल के हाथ मेंं फोन था। हम तीनों एक साथ खडे हुए थे और अमूल ने जेब से फोन निकाला सेल्फी लेने के लिये। हमें पता ही नहीं चला कब सेल्फी लेने के लिए वो इतना पीछे हो गया कि उसका पैर फिसल गया।हम ने उसे बस गिरते हुए देखा। ये कहते-कहते मेरा गला भर आया।
आन्टी उठ कर मेरे लिये पानी लाई। पानी का गिलास मुझे देते हुए मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली- कार मेंं जब उसका सर मेरी गोद में था तो उसने मुझे "सोरी मां " बोला फिर वो कुछ नहीं बोला।
इसलिए रोज़ ये बोर्ड लेकर जाती हूँ जो बोर्ड पर लिखा पढ़ नहीं पाते। उन्हें उस टीले पर चढने को मना करती हूँ।
तेरे अंकल बोल रहे थे इस बार सण्डे को वो वहाँ कुछ पक्का चेतावनी भरा बोर्ड लगवाएगें। हम उस पहाड़ी पर जाना नहीं छोड़ेंगे। हम नहीं चाहते कोई ओर सॉरी मां बोले। मैं उन्हें देखता रह गया।