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प्यार की दोबारा शुरूआत

प्यार की दोबारा शुरूआत

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मैंने और बरखा ने साथ ही ग्रेजुएशन किया था। हम दोनों अच्छे दोस्त थे। मैं बरखा को पसंद करता था। बरखा भी शायद मुझे पसंद करती थी, पर कभी कहा नहीं। उसके घरवाले अब बरखा की शादी करना चाहते थे। पर उस समय मेरे पास जॉब नहीं थी तो उसके घर वाले शादी के लिये तैयार नहीं हुए।

उसकी शादी कहीं और कर दी। तकलीफ बहुत हुई उसे खोने की, पर खुशी थी कि उसका पति सरकारी जॉब में है। वो अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ गई और मैं अपनी जिंदगी में।


कभी मैंने सोचा नहीं था कि हमारी दोबारा मुलकात होगी। आज शादी के तीस साल बाद मैं शाम के टाईम पार्क में टहल रहा था और अपने बेटे नमन से बात कर रहा था। अचानक मुझसे एक औरत टकराई, वो मुझे सॉरी बोली, मैंने जैसे ही पलट कर देखा। बरखा को देख मैं हैरान था। आज भी वो उतनी ही सुन्दर लग रही थी जैसे पहले लगती थी।


"बरखा यहाँ कैसे?"


उसने बताया कि वो अक्सर इस पार्क में आती है शाम को।


उसकी शादी के बाद मैंने उसे देखा नहीं था। मैंने उसके परिवार के बारे में पूछा तो बताया उसकी एक बेटी है। जिसकी शादी हो चुकी है और पति के बारे में पुछा तो बताया दस साल पहले उसने तलाक दे दिया। बेटी के ससुराल जाने के बाद अकेली रह गई है। तो अक्सर पार्क में आती हूँ। उसने मेरे परिवार के बारे में पूछा।


मेरा एक ही बेटा है नमन जो अपनी फैमिली के साथ लंदन में शिफ्ट हो गया है। दो साल पहले मेरी पत्नी रोमा हम सब का साथ छोड़ कर चली गई। उसे कैंसर था, जब हम सब को पता चला तब तक बहुत देर हो गई थी। हमने लाख कोशिश की पर हम बचा नहीं सके। मेरी आँखें डबडबा गई, मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। वो मुझे समझती थी, जब से गई है मेरी जिंदगी अधूरी लगती है। बेटे ने बहुत कहा कि मैं लंदन आ जाऊं पर मेरा मन करता ही नहीं जाने का।


बरखा मुझे सान्त्वना देने लगती है। कुछ देर हम लोग बैठ, बातें की, फिर वो अपने घर चली गई और मै अपने घर चला आया। आज उससे बात कर के मन को अच्छा लगा था। शाम को सोचा थोड़ा बरखा का हाल चाल लूँ पर याद आया कि मैं तो उससे नंबर लेना ही भूल गया। मन बड़ा पछता रहा था कि हम दोनों ने इतनी देर बात की पर नंबर ही नहीं लिया।


अगले दिन शाम को मैं फिर पार्क पहुंचा जहाँ हम लोग कल बैठ कर बात किये थे, आज वही बैठ उसका इंतजार कर रहा था।

एक घंटा हो गया बैठे, लग रहा था कि वो आयेगी नहीं। मै भी उठ कर जाने लगा, तभी वो मुझे सामने से आती दिखी, मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा, वैसे जैसे उसे पहले देख कर धड़़कता था। वो आकर मेरे पास रुकी और कहने लगी


"वो... मै कल नंबर लेना भूल गई थी। इधर से जा रही थी सोचा अगर मिलोगे तुम तो नंबर मांग लूंगी। अंबर अपना नंबर दे दो", मेरे मन की बात कह दी थी उसने।


हम साथ में निकले। मैं उसे उसके घर छोड़ा तो उसने अंदर आने का आग्रह किया। मैं अंदर गया, उसे आज भी याद था कि मैं चाय मे अदरक नहीं पीता।


"तुम्हे याद था कि मैं अदरक नहीं पीता?"


"नहीं घर में अदरक खत्म हो गई थी" कह कर किचन में चली गई। मैं कुछ बना देती हूँ खाने के लिये।


"नहीं बरखा आज नहीं, कभी और। मैं अभी चलता हूँ", कहते हुए किचन में गया तो मेरी नजर अदरक रखी टोकरी पर पहुँच गई। उसे याद था, पर जताना नहीं चाहती थी। मैंने भी कुछ कहा नहीं, मैं वहां से चल दिया।


अब हमारी अक्सर बातें मुलाकातें होने लगी। धीरे-धीरे प्यार की दोबारा शुरूआत होने लगी थी। एक दिन मौका देखकर मैंने उसे शादी का प्रस्ताव रखा। "बोलो बरखा क्या है तुम्हारा फैसला?"


"पचास की उम्र में शादी! लोग क्या कहंगे? मेरी बेटी के ससुराल वाले क्या कहेंगे?"


"लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह नहीं मुझे, बस तुम क्या चाहती हो?"


"मैं चाह कर भी शादी नहीं कर सकती, मुझे माफ कर दो"


ये सब बातें बरखा की बेटी ने दरवाजे पर खड़ी सुन ली थी।


"माँ मेरे ससुराल वाले क्या कहेंगे इसकी चिन्ता मत कीजिये। मैं समझा दूंगी अपने ससुराल वालों को, मै खुद चाहती हूँ कि आप फिर से शादी कर लो। अंकल तो आपके पुराने दोस्त भी हैं और आप पसंद भी करती हैं" अंदर आते हुए शुभी ने कहा। "माँ मैंने आप दोनों की बाते सुन ली है"


"पर तुम्हारे पापा?"


"पापा ने कभी आपके बारे में सोचा ही नहीं, वो दूसरी शादी कर लिये हैं"


"क्या?"

 

"सॉरी माँ, मैने आपको बताया नहीं कि आपको तकलीफ होगी। एक बार गई थी मैं उनसे मिलने तो मुझे मिलाया था, पर मैंने आपको बताया नहीं"


"जो इंसान मेरी जिंदगी में है ही नहीं वो कुछ भी करे मुझे तकलीफ नहीं होगी", कहते हुए उसकी आँखें डबडबा गईं।


"बस अब मैं तुम्हारी माँ की आँखों में एक आंसू नहीं आने दूंगा, मेरा वादा है"


पचास की उम्र में जाकर मैंने और बरखा ने शादी रचाई। मेरे बेटे बहू भी मेरे फैसले से खुश थे।


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