चीनू और मीनू
चीनू और मीनू
आज चीनू जब से अपने दोस्त मयंक के घर से खेल करआया था , कुछ गुमसुम सा था । मीनू ने सोचा कि कुछखेलते हुए अपने दोस्तों से कुछ झगड़ा हो गया होगा । अभी कुछ देर बाद वो ठीक हो जाएगा । परन्तु जब कुछ देर बाद भी वो गुमसुम ही रहा तो मीनू उसके पास आकर बोली "चल चीनू बाहर चल कर झूलाझूलें ।" वो लेटे लेटे ही मुंह तकिए में गडा कर ना में सिर हिलाया । मीनू ने सोचा ये तोहर वक्त झूला झूलने को तैयार रहता है पर अचानक आज क्या हो गया । मीनू को कुछ समझ नहीं पा रही थी।
तभी उसके दिमाग में एक आइडिया आया ।
मीनू झट से बाहर आई और अमरूद के पेड़ पर चढ़ कर दो पके अमरूद तोड़े उन्हें रसोई में जाकर काटा फिर नमक लगा कर प्लेट में रख कर चीनू के पास गई । उसके आंखों को बंद कर बोली "देख चीनू मुंह खोल मैं तेरे लिए क्या लाई हूं ।" चीनू अपने आंखों से हाथ हटाते हुए बोला "जाओ दीदी मुझे परेशान मत करो ।" पर मीनू ना मानी उसे जबरदस्ती उठा कर बैठा दिया और बोली "नहीं मैं तुम्हें ऐसे नहीं देख सकती , बता मेरे भाई क्या बात है ।" पहले तो ना नुकर करता रहा चीनू । फिर बोला "दीदी आज मैं
मयंक के घर खेलने गया था । उसके ताऊजी उसके लिए शहर से फोन लाएं हैं । दीदी वो फोन बहुत अच्छा है । उसेएक तरफ कान में दूसरी तरफ से कोई बोलता है तो सुनाई देता है । पहले तो वो मेरे साथ खेल रहा था । बड़ा मज़ा आ रहा था पर जब राजू अपनी चाभी वाली कार लेकर आ गया तो मयंक ने मुझसे अपना फोन छीन लियाफिर मुझे भगा कर राजू के साथ खेलने लगा । वो दोनों मेरे ऊपर हंस रहे थे कि इसके पास तो कोई खिलौना हीं नहीं है। "
चीनू उठकर बैठ गया और अपने आंसू भरे आंखों से मीनू की ओर देखकर प्रश्र किया "दीदी हमारे भी पापा होते तो मेरे लिए खिलौने लाते । भगवान जी ने पापा को क्यूंअपने पास बुला लिया ।" इतना कह कर चीनू रोने लगा ।
मीनू ने चीनू को अपने से चिपका लिया और आंसू पोंछ कर बोली "नहीं मेरे भाई रोते नहीं, हमारे पापा बहुत अच्छे थे ना और भगवान जी को अच्छे इंसान की जरूरत थी इसलिए अपने पास बुला लिया । पर तू क्यूं दुखी होता हैमैं हूं ना । मैं तेरे लिए खिलौने लाऊंगी । "
चीनू ने आश्चर्य से पूछा पर दीदी "अपने पास पैसे कहां है ।" मीनू चुटकी बजाकर बोली "यही तो है तेरी दीदी का कमाल । चल फटाफट उठ जा चल मेरे साथ । मैं तुम्हें मयंक से अच्छा फोन बना कर दूंगी ।" चीनू खुशी से बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया । बोला चलो दीदी । दोनों भाई बहन बाहर आ गए ।
मीनू ने चीनू को लेकर स्टोर रूम की तरफ गई । वहां अदर जाकर सभी सामानो से से अपने काम की चीज ढूंढने लगी । जिससे फोन बनाया जा सके । काफी तलाशके बाद उसने दो छोटे छोटे पेंट के डब्बे चुने ।फिर पतली पाइप पर उसकी निगाह पड़ी । इन दोनों चीजों को लेकर वो चीनू के साथ बाहर आ गई । अब वो खुद डिब्बे
को साफ करने लगी और चीनू को पाइप साफ करने की जिम्मेदारी सौंप दी । कुछ ही देर में वो डिब्बा साफ हो कर चमकने लगा । इधर चीनू भी जी जान से जुटा था उसनेे भी पाइप
चमका कर साफ कर दिया ।
अब बारी थी डब्बे में छेद करने की । मोटी कील और हथौड़े की मदद से डब्बे में छेद भी हो गया । मीनू ने पाइप के दोनों छोर को डब्बे के अंदर बांध दिया । अब फोन तैयार हो गया था । एक सिरा चीनू के कान में लगा कर दूसरी ओर से वो हैलो हैलो बोलने लगी । आवाज कान में पड़ते ही चीनू खुशी से झूम उठा । दीदी ऐसे ही तो मयंक के फोन से भी आवाज सुनाई दे रही थी । कभी चीनू हैलो बोलता कभी कभी मीनू । दोनों भाई बहन बेहद खुश
थे ।