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उदय भाग ३४

उदय भाग ३४

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भभूतनाथ देवांशी को लेकर पांचवें परिमाण में पहुंचे। गुफा में जाकर देखा उदय अभी भी बेहोश पड़ा था। देवांशी भी अभी होश में आई नहीं थी। भभूतनाथ ने उसे एक चटाई पर सुलाया और उसके चेहरे पर पानी छिड़का। थोड़ी देर बाद जब होश में आई तो वो इधर उधर नजर दौड़ाने लगी जब उसकी नजर भभूतनाथ पे पड़ी तो उसकी चीख निकल गई। भभूतनाथ ने उसे जैसे तैसे शांत किया और कहा "डरो मत बेटी अभी तो गिर की गुफा में हो और तुम्हें यहाँ पल्लव की जान बचाने के लिए लाया गया है।" उसकी नजर पल्लव पर पड़ी लेकिन उसके दिमाग में जो पल्लव था उससे यह थोड़ा अलग था।

देवांशी की भी अजब दास्तान थी जिस व्यक्ति से वो कभी नहीं मिली थी उसी से प्रेम करती थी और कारण था असीमानंद ने उसके दिमाग में भरी हुई यादें। जब असीमानंद देवांशी बनकर उदय से मिला था उस वक़्त की सारी यादें उसने देवांशी के दिमाग में डाल दी थी।

वो पल्लव के नज़दीक गई और काफी देर उसे ताकने के बाद कहा "पल्लव को क्या हुआ है? और उसे ममी की तरह क्यों बांधा है ?" भभूतनाथ ने कहा की "उस पर जानलेवा हमला हुआ था और शहर ले जाने का समय नहीं था इसलिए उसे आयुर्वेदिक दवाई का लेप लगाकर पट्टियां बांधी और नींद में बार बार तुम्हारा नाम बड़ बड़ा रहा था इसलिए तुम्हें यहाँ ले आये और हमारे गुरु का आदेश है की यहाँ का रास्ता किसी को पता नहीं होना चाहिए इसलिए तुम्हें बेहोश करके लाना पड़ा उसके लिए मुझे माफ़ कर देना।" देवांशी ने जैसे ही उदय का हाथ अपने हाथ में लिए मानो चमत्कार हुआ उसके शरीर से जैसे करंट दौड़ रहा हो वैसे वो कांपने लगा। दो पल के लिए तो देवांशी भी डर गई लेकिन उसने उदय का हाथ नहीं छोड़ा। उदय के शरीर में शक्ति प्रवाहित हो रही थी। थोड़ी देर बाद उसने आँखें खोली तो देवांशी को अपने करीब देखा।

उसके अगल बगल बांधा हुआ वस्त्र फट चुका था पट्टियां खुल चुकी थी। वो तुरंत खड़ा हो गया और देवांशी से कहा की "कहाँ थी मैं कितने समय से तुम्हारा इंतजार कर रहा था।" फिर वो भभूतनाथ की तरफ घूम कर कहा "असीमानंद रेगिस्तान में युद्ध की तैयारी कर रहा है आप उसका सामना कीजिए और मैं तब तक जाकर अपने बाकी भाइयों को छुड़ा कर लाता हूँ।" उदय के मुँह से ऐसा सत्तावहि स्वर सुनकर भभूतनाथ समझ गए की उदय शंकरनाथ अपने पूर्व स्वरूप में आ गया है। वो बिना कोई सवाल किये वहां से निकल गए ।

उदय का शरीर चमक रहा था अब वह उदय शंकरनाथ बन गया था वो देवांशी की तरफ मुड़ा और उससे कहा की "तुम मेरा यही इंतजार करो मैं अपना अधूरा युद्ध पूर्ण करके आता हूँ, आने के बाद तुम्हारे सरे प्रश्नों का उत्तर तुम्हें दूँगा।" देवांशी के मन में काफी प्रश्न घुमड़ रहे थे लेकिन वो कुछ पूछ न सकी। उदय उस गुफा से निकल कर रेगिस्तान से उलटी दिशा में चला गया। तब तक भभूतनाथ रेगिस्तान में पहुंच चुके थे और उनके हाथ में उनका प्रिय हथियार फरसा था। सामने उनको एक विशाल सेना दिखी, उन्होंने अपने फरसे की धार पर ऊँगली घुमाई और तेज आवाज़ में कहा "असीमनाथ अब बस करो तुम एक दिव्य पुरुष हो तुम सत्य की तरफ आ जाओ, ये सब तुम्हें शोभा नहीं दे रहा। असीमानंद ने कहा "कौन असीमनाथ मैं तो असीमानंद हूँ और कैसा सत्य , जो महाशक्ति बताए वो, उसने सिर्फ हमारा उपयोग किया है अपने कार्यो को सिद्ध करने के लिए। हमें शक्ति दी है लेकिन उसके उपयोग करने का अधिकार नहीं। हम दिव्य पुरुष नहीं कठपुतली है महाशक्ति के हाथ की। कर्म के नाम पर हमें बहकाया जाता है, और कर्म क्या वो जिन्हे कहे उनको मारना है। क्या गुनाह किया था रावण ने यही न की वो राम की पत्नी को उठा लाया, उस वक़्त तो हर राजा करता था, फिर भी उसने कभी सीता को हाथ नहीं लगाया। मेरी नजर में गुनहगार था ही नहीं फिर भी हमें युद्ध में शामिल होना पड़ा कर्म के नाम पर कितने ही सैनिकों को मारना पड़ा। क्या गुनाह किया था दुर्योधन ने, पिता की गद्दी पर पुत्र का अधिकार होता है, अगर उसने राजगद्दी का दावा किया तो गुनहगार, और एक स्त्री के साथ पांच लोग शादी करते है फिर भी पवित्र, जुए में उसे और राजपाट हार जाते है फिर भी पवित्र। दासियों के साथ उस वक़्त कैसा व्यवहार होता था वो आप जानते है फिर वस्त्र हरण कौन सी बड़ी बात थी। क्या गुनाह था हिटलर का अपने देश और देशवासिओ के साथ हुए अन्याय का बदला ले रहा था। पहले विश्वयुद्ध के बाद क्या किया था बड़े देशों ने उनके साथ याद नहीं आपको ? हमें सिर्फ आदेश दिया जाता था इनको मारो, उनको हराओ। सिर्फ जिम्मेदारियां, अधिकार कोई नहीं अरे प्रेम करने तक का अधिकार नहीं।

क्या गुनाह किया था विएतनाम के लोगो ने अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे थे, और हमें कहा गया की उनको हराओ इसलिए मैंने पहली बार मना किया और उन्हें जीतने में मदद की। आज मैं स्वतंत्र हूँ, मैं किसी का कठपुतली नहीं, मैं किसी का गुलाम नहीं। मेरे पास शक्ति है जो मुझे शासन का अधिकार देती है। मैं इसका उपयोग करके सत्ताधीश भी बनूँगा, कोई मुझे रोक नहीं पायेगा, महाशक्ति की कठपुतलियाँ भी नहीं, मैं तो कहता हूँ तुम मेरे साथ आ जाओ , हम इस दुनिया का सुन्दर और सुशासित बनाएँगे, जवाब दो भभूतनाथ क्या तुम तैयार हो ?"

भभूतनाथ के पीछे से एक आवाज़ आयी "इसका जवाब मैं दूँगा।"


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