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अधूरी प्रेम कहानी

अधूरी प्रेम कहानी

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करीब दस साल बाद उसको देख एक बार तो पहचान नहीं सका। सोचता रहा कि ये वही हँस मुख अजित है जो कॉलेज में खुद भी हँसता और दूसरो को भी हँसाता था।

दिमाग पर मुझे ज्यादा जोर नहीं देना पड़ा। वो मेरे पहचान मेरे पास आया और मेरे पैर छुए।

"गुरु जी मैं अजित आपका छात्र आपने शायद नहीं पहचाना। पहचानोंगे भी कैसे ...??

उसके गम्भीर स्वभाव को मैं समझ नहीं सका।

हम कुछ देर के लिए पास ही एक बगीचे में बैठ गए।

उसने जो अपने बारे में बताया उसके बाद मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

आइये मैं आपको घर छोड़ देता हूँ। "

घर आ अपने कमरे में किसी को न आने का कह चला गया आराम करने।

पर दिल बेचैन हो तो कैसे आराम हो सकता है।

अतीत मुझे अपने संग पुरानी यादों में ले आया।

अच्छे से याद है मुझे वो मेरा पहला कॉलेज का दिन जब मैंने नई नई नोकरी जॉइन की।

अजित ही था जिसने प्रिंसिपल साहब के कमरे तक मुझे छोड़ा।

उसने मेरे लिए घर देखा मुझे इस शहर से परिचित करवाया। आज जो भी उसने अपने बारे में बताया वो रह रह कर याद आ रहा था। उसने बताया .........

मेरे मिलनसार स्वभाव से ही तो अंजना आकर्षित हुई थी। हमारी पहली मुलाकात कॉलेज के एक प्रोग्राम में हुई जब कुछ लड़के उसको ओर उसकी सहेलियों को परेशान कर रहे थे उनको जगह नहीं दे रहे थे। तब मैंने उनकी मदद करी।

उस दिन के बाद हम जब भी आमने सामने होते तो देख मुस्कराते। धीरे-धीरे ये मुस्कराहट बात में बदली। बातें मुलाकात में, मुलाकात प्यार में।

हमको प्यार कब हुआ हमको भी नहीं मालूम। घण्टों साथ बिताते वो समय आ गया था कि बिना कहे हम एक दूसरे को पढ़ लेते। दोनो ने अपना कैरियर भी एक ही चुना। हमारे प्यार के लिए कुछ और लिखा था भगवान ने...

एक दिन अचानक अंजना ने कहा, "तुम मुझे कितना प्यार करते हो ?

उसके अचानक से किये इस सवाल जिसका जवाब वो अच्छे से जानती थी, मुझे परेशान कर गया।

फिर भी जवाब दिया, "इस जहाँ में सबसे ज्यादा, तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।"

"अजित शायद हमारा प्यार सच्चा नहीं है, कुछ कमी है इसमें...

कल माँ से मैंने बात की तुम्हारी मेरी शादी की तो वो मुकर गई। तुम करो अपने माता पिता से बात, कि वो हमारी शादी की बात मेरे माता-पिता से करे।

"अंजना ...आज मैं भी तुमसे यही बात कहने वाला था कि मेरी माँ ने भी इस रिश्ते को मना कर दिया।"

"चलो, हम भागकर शादी करते है।"

"जब सब ठीक हो जाएगा हम आ जाएंगे।"

"नहीं, अजित,नहीं हमने भाग कर शादी की तो खुशी हम दोनों को मिलेगी लेकिन ग़म दोनों के परिवारों को।

इसके ग़म पर क्या हम अपनी खुशी मना पाएंगे।"

"नहीं, कभी नहीं...

"बोल सही रही हो और तुम्हारे अलावा किसी और से शादी का मैं नहीं सोच सकता।"

"मुझे तो करनी होगी अपने माता पिता के लिए, उनकी खुशी के लिए, नहीं तो तो वो मर जायेंगे।"

कुछ देर की खामोशी के बाद...

"ठीक अंजना तुम अपना फर्ज निभाओ। मैं अपने प्यार के साथ जिंदगी बिताऊँगा।" आज ये आखरी मुलाकात है।"

अजित तेज़ी से वहाँ से निकल लेता है। अंजना मजबूरी में शादी करती है, सर्फ माता-पिता की खुशी के लिए।

भगवान का खेल न्यारा उसकी शादी के दो साल बाद ही उसका पति गम्भीर बीमारी से चल बसा। रह गई अंजना अकेली।

वो अपने माता-पिता के पास आ गई और कमाने लग गई। बदकिस्मती से दोनों को सब मालूम है, दोनों नहीं मिले पहले की तरह...

एक विधवा बन जी रही...

एक अपने प्यार के साथ...

उनकी इस हालत का जान मुझे बेचैनी हो गई। दो मासूम बच्चे हालात का शिकार मैं उनका गुरु फिर भी असहाय। सोचते हुए आँखों में चमक आई ओर चल दिया दोनों से मिलने उनके घर।


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