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छत और छाता

छत और छाता

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"अरे ईशा तू। कैसी है। कितने सालों के बाद मिल रही है।" जैसे ही ईशा पर नजर पड़ी रीना उत्साह से उसकी ओर हाथ हिलाकर बोली।

"मैं ठीक हूँ रीना, तू कैसी है।" ईशा भी उसे देखते ही बहुत खुश हो गयी। वो अभी-अभी रेस्टोरेंट में जूस पीने के लिए अंदर आयी ही थी कि रीना को देखकर उसकी तरफ बढ़ गई।

दोनों कॉलेज की सखियाँ थीं। आर्डर देकर एक ही टेबल पर बैठकर बातें करने लगी। रीना के साथ उसका दो साल का बेटा भी था। 

"बस इसके लिए कुछ कपड़े और सामान लेना था तो मार्केट आयी थी। और तू बता, शादी की, जीजाजी क्या करते हैं, कहाँ है आजकल?" उत्साह में रीना ने ढेरों सवाल कर डाले।

"तूने तो सवालों की झड़ी लगा दी यार। मैं भी शॉपिंग करने ही आयी थी। यहीं हूँ जिस कम्पनी में जॉब करती थी वहीं हूँ।" ईशा ने बताया।

बैरा जूस के गिलास रख गया।

"और तेरे पति, वो क्या करते हैं?" रीना ने फिर पूछा।

"मैंने शादी नहीं कि यार। तू तो जानती है मैं बंधन पसंद नहीं करती। और फिर जरूरत भी क्या है। मेरा बॉस संजय मेरी हर जरूरत का ध्यान रखता है। न पैसे की कमी न किसी दूसरी बात की।" ईशा ने बेझिझक बताया।

"तू बोल्ड है शुरू से वो तो ठीक है, लेकिन तुझे नहीं लगता कि ऐसा अनैतिक सम्बन्ध..." रीना का मन खिन्न हो गया था।

"छोड़ यार, क्या फर्क है तेरे मेरे बीच। प्यार तो प्यार है, मैं और संजय एक दूसरे से प्यार करते हैं, अच्छी म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग है हमारे बीच। संजय हर प्रॉब्लम में छाता बनकर मुझे ढँक लेता है न, बस।" ईशा लापरवाही से बोली।


"फर्क पड़ता है ईशा, बहुत फर्क पड़ता है। मेरे सर पर छत है और तेरे सर पर छाता। घर-परिवार छत के नीचे बनता है छाते के नीचे नहीं। तेज़ हवा में छाता उड़ जाता है लेकिन छत नहीं" रीना ने अपने बेटे को सीने से लगाया और उठकर रेस्टोरेंट के बाहर आ गई।

ईशा हतप्रभ सी सन्नाटे में बैठी रह गई।



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