पति पत्नी व प्रेम
पति पत्नी व प्रेम
•॥ "प" एकम "पति", "प" दूनी "पत्नी", "प" तिया "प्रेम", "प" चौके "प्रतारणा" ॥•
मेरे एक मित्र हैं, बहुत सम्पन्न भरा पूरा परिवार है। पति-पत्नी दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं, एक जिस्म दो जान टाइप।
उन दोनों के विचारों में ग़ज़ब का सामंजस्य है सूत बाई सूत सभी विचार मिलते हैं, सोच एक जैसी,पसंद एक जैसी,स्वाद एक जैसा। हर पार्टी या जलसे की ये जान होते हैं, बेहद ज़िंदादिल कपल है।
किंतु मैं जब भी उनके घर जाता तो देखता कि उनके बीच बहस चल रही है, वे किसी भी बात पर अकारण ही लड़ पड़ते। और फिर कुछ देर के बाद दोनों सज धज के हँसते खिलखिलाते हुए निकल पड़ते, कभी फ़िल्म देखने, कभी बाहर खाना खाने, कभी यूँ ही लॉंग ड्राइव पर।
उनके झगड़े की तीव्रता देख मैं घबरा जाता।
एक दूसरे से इतनी मोहब्बत होने के बाद उनकी बहसबाज़ी, सम्बंध टूटने की हद तक होने वाला उनका आपसी झगड़ा और हफ़्ते में एकाध बार झूमाझटकी तथा महीने में एक बार थपाड़ों का आदान-प्रदान मुझे चक्कर में डाल देती !
मैं आश्चर्य में पड़ जाता की ये दोनों बुरी तरह इतना लड़ने झगड़ने के बाद भी एक छत के नीचे कैसे रह रहे हैं ? मुझे समझ नहीं आता कि इनके पास प्रेम, पैसा, सुविधा, शिक्षा सब कुछ प्रचुर मात्रा में होने बाद भी इनके बीच में झगड़ा किस बात का है ?
कोई ज्ञात कारण स्पष्ट ना दिखाई देने पर मैंने पूर्व जन्म के ऋणानुबंध जैसे अज्ञात कारणों पर भी विचार किया, कि हो सकता है पिछले जनम की कुछ लगी फंसी रह गई हो, जिसका निपटारा इस जनम किया जा रहा हो ? क्योंकि हमारे यहाँ विवाह सिर्फ़ एक जन्म का मसला नहीं बल्कि सात जन्मों का मामला बताया जाता है। चूँकि मैं इन दोनों को ही स्कूल के समय से जानता था, दोनों की ज़िंदादिली, सुलझे हुए व्यक्तित्व का मैं हृदय से सम्मान करता था, वे भी मेरे प्रति सदभाव व अशर्त प्रेम से भरे हुए थे इस कारण मुझे इनके इस आपसी व्यवहार को लेकर बहुत चिंता रहती।
एक दिन मैंने दोनों से बात की कि परमात्मा का दिया सब कुछ है तुम लोगों के पास, तुम दोनों ही पढ़े लिखे उद्यमी लोग हो, ख़ुशमिज़ाज हो, लोग तुम दोनों को अपना आदर्श मानते हैं। तुम लोग दूसरों के पारिवारिक झगड़ों को सॉल्व करने के फ़ोर्मूले देते हो, तो फिर एक दूसरे के साथ इस तरह व्यवहार करके आप लोग अपना जीवन नर्क क्यों बना रहे हैं ?? कोई समस्या है तो उसे शांति से बैठ के बात करके उसका समाधान निकाल लो। कमाल है !! ज़माने भर की तमाम समस्याओं को सॉल्व करते हैं लेकिन अपनी नहीं ?? और यदि मैं तुम दोनों के लिए कुछ कर सकता हूँ तो निश्चिन्त होकर मुझसे कहो ? लेकिन भगवान के लिए प्लीज़ ऐसा मत करो मुझे बड़ी घबराहट होती है।
उनका जवाब सुनके मैं सन्न रह गया ..
दोनों बोले यार, ये बहस और हफ़्ते में एकाध बार झूमाझटकी ना हो तो लगता है हमारा प्रेम सूख गया है।
हम हर बात में एक दूसरे से पूरे सहमत हैं, हमारे बीच में 'मत भिन्नता या मन भिन्नता' जैसे कोई डिफ़्रेन्सेज़ नहीं हैं। लेकिन जब तक आपस में लड़ना, झगड़ना, रूठना, मनाना ना हो ? तो प्रेम कहाँ ? अपनी पत्नी की तरफ़ इशारा करते हुए बोले-इसलिए पहले मोहतरमा मेरी उसी बात पर डिसग्री होती हैं, जिस पर हम पहले से ही पूरे अग्री होते हैं। फिर हम बहस करते हैं, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं ये कहती हैं तुम पहले ऐसे नहीं थे ? अब बदल गये हो। फिर मैं इनपर आरोप लगाता हूँ, फिर हम एक दूसरे पर चिल्लाते हैं। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप, चीख़ना-चिल्लाना ये हमारे 'ना बदलने' का प्रमाण है, प्रमाण मिलते ही हम तुरंत अग्री हो जाते हैं।
प्रेम की एकदम नवीन और अजीब सी परिभाषा सुनके मैं झल्ला गया, और उसी सुर में बोला- व्यर्थ की बात मत करो !! तुम लोग पढ़े लिखे हो, आपस में ये झूमाझटकी धक्का मुक्की तुम लोगों को शोभा नहीं देती।
वे खिलखिलाते हुए बोले- जिसे आप धक्का मुक्की कह रहे हैं वह हमारे प्यार का अकाट्य सबूत है श्रीमान। हफ़्ते में एकाध बार झूमाझटकी करके हमलोग इस सबूत के ज़रिए अपने प्रेम को और पुख़्ता कर लेते हैं।
भाभी जी ने बहुत लाड़ से अपने पति की ओर देखते हुए मुझसे कहा- भैया, अधिकांश लोग इसे गंदगी समझते हैं लेकिन हमारे लिए तो ये बंदगी है। आप इसे पीटना-पिटना नहीं, प्रेम का प्रमाण मानो। ये एक क़िस्म का छोटा रीचार्ज है।
अब मेरे मित्र ने चार्ज अपने हाथ में लेते हुए प्रेम की परिभाषा को दिव्यता प्रदान करते हुए कहा- देखो भाई, हमारी शादी हुए इतने साल हो गए हैं की अब हमारे पास बात करने को कुछ बचा ही नहीं है, तो बहसबाज़ी में ही हमारी बहुत सारी बातें हो जाती हैं।
बहस के दौरान ही हम एक दूसरे के मम्मी पापा को भी शिद्दत से याद कर लेते हैं। विवाद हमें हमारे भूले बिसरे पुरखों की स्मृतियों को भी ताज़ा कर देता है। विवाद करते समय ही हम एक दूसरे के संस्कार, परिवार, सभ्यता, संस्कृति पर आलोचनात्मक दृष्टि डाल लेते हैं, अन्यथा कहाँ समय मिलता है ? इसलिए इस चिल्लाचोंट को तुम सकारात्मक दृष्टि से देखो।
भाभी जी बोलीं- शोर शराबे में ही हमें शांति मिलती है, भैया जब शोर समाप्त हो जाए तो समझ लीजिए की प्रेम मार गया। प्रेम बहुत आलसी होता है ना ख़ुद काम करता ना दूसरे को काम करने देता, हमेशा सोया रहता है- इसे जगाने के शोर मचाना बहुत ज़रूरी है भैया।
मित्र ने अपनी पत्नी के कथन की प्रामाणिकता को सिद्ध करते हुए कहा- तुमने मुर्दे को कभी हंगामा करते हुए देखा है ? नहीं ना। क्योंकि 'शांति' मृत्यु का प्रमाण है। इसलिए मृत्यु को चिरशांति भी कहा जाता है। जो प्रेम आपको शांत कर दे वो प्रेम नहीं प्रतारणा है। जो एक दूसरे की नाक में दम कर दें उसे दम्पत्ति कहते हैं, ये सब कुछ प्रमाण है हमारे सुखी दाम्पत्य जीवन का।
व्यक्ति मर जाए चलेगा भाई, लेकिन रिश्ता नहीं मरना चाहिए। विवाद रिश्ते को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी होता है। अब हम दोनों बिलकुल एक जैसे हैं इससे हमारे बीच विवाद की कोई सम्भावना ही नहीं है- इसलिए हम अकारण ही विवाद पैदा कर लेते हैं। ये हमारे लिए नरकीय यातना नहीं स्वर्गीय सुख है। महीने में एक बार दो-चार थप्पड़ों का बराबरी से आदान-प्रदान हमें एक नई ऊर्जा से भर देता है।
श्रीमान जी, प्रेम तो ससुरा पैदा होते ही मर जाता है हम महीने में एकाध बार एक दूसरे को पीट कर इसमें प्राण फूँकते हैं, याद रखो ये पिटके ही प्रकट होता है। ठीक है थप्पड़ से शरीर को कष्ट होता है लेकिन प्रेम के लिए थप्पड़ संजीवनी का काम करता है। प्रेम को तुम पीढ़ा निवारक मत मानो, प्रेम तो पीढ़ा कारक होता है।
बड़े बड़े संत फ़क़ीर तक लिख गये "प्रेम की पीढ़ा" , "प्रेम की पीर" .. इसलिए जिससे प्रेम करो उसे पीढ़ा अवश्य पहुँचाओ। क्योंकि प्रसन्नता के क्षणों को इंसान भूल जाता है किंतु पीढ़ा हमेशा याद रहती है। याद रखो प्रेमी सब कुछ बर्दाश्त कर लेता है किंतु कोई उसे भूल जाए ये बर्दाश्त नहीं करता। प्रेम का मतलब ही है की मान सम्मान की चिंता किए बिना अपने प्रिय को हलकान,परेशान,हैरान कर दो, बदले में वो तुम्हे पदा के रख दे, पीढ़ा प्रेम के जीवित होने का प्रमाण है, ये व्यक्ति की रचनात्मकता में निखार लाता है अन्यथा लाइफ़ से बोर हो जाओगे। प्रेम हमें अचल नहीं करता, हलचल मचा देता है। परिवर्तन संसार का नियम है, इसलिए बदलाव सभी को अच्छा लगता है। लेकिन पति पत्नी या प्रेम के रिश्ते में ये सम्भव नहीं है, अगर कोई बदलना चाहे भी तो बदल नहीं सकता, इसलिए बेहतर है कि अपन- अपने पार्ट्नर के प्रति नज़रिया बदल लो इससे वो ऑटमैटिक बदला हुआ दिखाई देने लगेगा। ठीक उसी वक़्त अपन ग़ुस्से से एक दूसरे पे आरोप लगा दें कि तुम बदल गए ! पहले जैसे नहीं रहे ? आरोप का मतलब ही होता है सामने वाले पे ज़बरदस्ती अपनी भावना रोप दो, थोप दो। जिसके बोझ से वो फड़फड़ाएगा, और फड़फड़ाते हुए वो बदला-बदला सा दिखाई देगा, यही बदलाव तो हम चाहते हैं, इससे अपनी बदलाव की, बदलने की इच्छा भी पूरी हो गई और अपन बदले भी नहीं, कुछ देर के बाद अपन जैसे थे वैसे फिर से हो जाओ। और वे हें हें करते हुए हँसने लगे..
अपने पति को बेहद भावविभोर होकर देखते हुए भाभी जी बोलीं- भैया, प्रेम बर्बादी का दूसरा नाम है। आप इतिहास उठा के देख लीजिए जिसने भी प्रेम में आबाद होने की कोशिश की वो बर्बाद हो गया, और जो भी प्रेम में बर्बाद हुआ वो आबाद हो गया। इसलिए हम दोनों एक दूसरे को मिटाने की जुगत में लगे रहते हैं उसकी का परिणाम है की हमलोग आजतक साथ में बने हुए हैं। पत्नी का मतलब ही होता है "जो पति से तनी-तनी रहे", और पति का अर्थ होता है "जो प्राणों के त्राण ( घोर कष्ट ) हो।" क्यों जी मैं सही कह रही हूँ ना ? कहते हुए उन्होंने अपने पति से अनुमोदन माँगा।
अपनी पत्नी के क्यों जी ? से मेरे मित्र गदगदाये हुए से बोले- बिलकुल बिलकुल..
आई लव हर एंड शी लव्ज़ मी। हम सात जन्मों तक एक दूसरे को नहीं छोड़ने वाले।
शी वॉंट्स सेम हज़्बंड एंड आई वॉंट सेम वाइफ़ फ़ॉर सात जनम.. इफ़ गॉड हिम सेल्फ़ विल कम इन बिटवीन.. वी से- नो कॉम्प्रोमायज़ बॉस !!
मैं प्रेम के इस अनोखे स्वरूप का वर्णन सुनके भौचक हो गया। मैंने उनसे पूछा की यदि ये प्रेम है तो फिर नफ़रत क्या है ?
इसपर मेरे मित्र बड़ी ही सहजता से बोले नफ़रत ही तो प्रेम है। भाई, जहाँ प्यार है, ज़रूरी नहीं कि वहाँ नफ़रत हो। लेकिन जहाँ नफ़रत है वहाँ प्यार ज़रूर होगा। इसलिए हृदय में नफ़रत को जगाकर रखिए आपको प्यार मिलता रहेगा।
मैंने वाउऽऽ, सूपर्ब, इट्स ग्रेट कहते हुए उन दोनों को प्रेम के प्रति एक नूतन दृष्टिकोण से सम्पन्न करने के लिए धन्यवाद दिया !