फेसबुक वाला प्यार
फेसबुक वाला प्यार
आज मालती बहुत खुश थी और हो भी क्यों ना। उसका लाडला बेटा राधे जो घर आने वाला था आज हॉस्टल से। उसने रमेश को तीन घंटे पहले ही भेज दिया था सुल्तानपुर स्टेशन राधे को लाने के लिए। सुल्तानपुर से राधे का गांव किसनपुर यही कोई 15 किलोमीटर पड़ता है। मालती को फ़िक्र हो रही थी बच्चा साल भर बाद आ रहा है, अकेला परेशान ना हो और अंधेरा भी तो होता जा रहा था इसीलिए अपने पति रमेश को लाने भेज दिया था। रमेश भी बेटे से मिलने को आतुर हो रहा था सो ना जाने क्या क्या सोचता कब सुल्तानपुर पहुंच गया पता ही नहीं चला। स्टेशन पर पता चला ट्रेन आधे घंटे लेट आ रही है।
रमेश बेटे की उधेड़बुन में खोया था कि अचानक किसी ने कंधे पर हाथ रख कर पूछा अरे रमेश बाबू आप यहां। रमेश ने पलटकर देखा तो काशी महतो खड़ा था वहां। दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे। बातों बातों में पता चला उनके कोई रिश्तेदार आ रहे हैं उसी ट्रेन से। इतने में ट्रेन भी आ गई। दोनों अपनों को साथ ले चल दिए घर की ओर।
रास्ते में रमेश राधे से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछ रहा था और रास्ते में आनी वाली गांव ढाणियों के बारे में भी बता रहा था। घर पहुंचे तो मालती दरवाजे पर ही खड़ी थी। राधे ने मां को प्रणाम किया और अन्दर चला गया कपड़े बदलने। इतने में मालती ने आवाज लगा दी खाना तैयार है खा लो। पिता पुत्र ने खाना खाया और कुछ औपचारिक बातों के बाद सोने को चले गए।
राधे को गांव आए तीन दिन हो चुके थे लेकिन वो बाहर निकलने की बजाय अपने फोन पर ही लगा रहता था पूरे दिन। मालती को यह अजीब सा लगा। बेटा छुट्टियों में गांव आया है और किसी से मिलने के बजाय पूरे दिन फोन पर लगा रहता है। आखिर रहा नहीं गया तो उसने रमेश से पूछ ही लिया
ए जी, सुनते हो। ऐसा क्या है इस फोन में जो पूरा दिन टुकुर टुकुर देखता रहता है इसको।
रमेश ने बात को वही थामते से कहा - होगा क्या, करते होंगे अपने दोस्तों से बातचीत, और क्या।
राधे ने कुछ महीने पहले ही फोन पर फेसबुक में नया खाता खोला था और वहीं लगे रहता था सारा दिन। इसी दौरान नयना नाम की किसी लड़की से उसकी दोस्ती भी हो गई थी। अब राधे पूरा दिन उसी से चैट चैट खेलता रहता था। नयना का नशा सा हो गया था उसको।
ये फेसबुक की आभासी दुनियां किसी वास्तविक दुनियां से कम थोड़ी है। कई सारे मित्र मिल जाते हैं वहां जो उसकी तस्वीरों पर नाइस पिक लिखकर उसकी हौसला अफजाई करते थे। वास्तविक दुनियां में ये सब कहां। यहां तो जो भी मिलता बस यही पूछता पढ़ाई कैसी चल रही है, कितने दिन आए हो, आगे का क्या सोचा है वगैरह लेकिन आभासी दुनियां इससे अलग थी। वहां उसकी तस्वीरों की तारीफ होती, उसकी बातों की तारीफ होती और कोई उसको पढ़ाई लिखाई के बारे में कुछ ना पूछता।
मालती राधे के इस व्यवहार से काफी परेशान थी लेकिन क्या करती। नए जमाने के बच्चे किसी की सुनते भी तो कहां है। थक हारकर उसने रमेश से कहा तो रमेश ने राधे को बुला समझाना शुरू किया। बेटा इस फोन की दुनियां में कुछ नहीं रखा है। ये दोस्त कभी काम नहीं आने वाले। इस आभासी दुनियां से निकलकर बाहर आ जाओ। हकीकत का सामना करो लेकिन राधे सुन कर भी अनसुना कर गया।
एक दिन नयना ने राधे को मिलने के लिए बुलाया और सुल्तानपुर का कोई पता दिया। राधे भी रमेश की मोटरसाइकिल ले रवाना हो गया नयना से मिलने। मन में कई तरह के अरमान पाले। आज उसकी कई हसरतें पूरी होने वाली थीं।
सुल्तानपुर पहुंच राधे ने नयना को कॉल किया तो उसने होटल रॉयल पैलेस के पास बुलाया। वहां पहुंच राधे ने देखा तो एक अठारह साल की नवयुवती वहां दिखाई दी। राधे मन ही मन फुले नहीं समा रहा था। अरे ये है नयना। देखते ही राधे लपक कर नयना की ओर चला। नयना उसे वहां से साथ ले किसी सुरक्षित जगह का बोल अपने साथ ले चली।
राधे जितने अरमानों के साथ चला था उसके वो अरमान उस पर कितने भारी पड़ने वाले है उसे पता भी नहीं था। वो एक हनी ट्रैप वाले गैंग के हाथों में फंसता जा रहा था। भविष्य से अनजान राधे नयना के पीछे पीछे आखिर एक सुने से मकान में पहुंच गया और उन लोगों के हत्थे चढ़ गया। उसे पता भी नहीं चला कि कब उसका वीडियो बना लिया गया है नयना के साथ। अचानक किसी की आहट सुन राधे बाहर निकला तो पांच सात आदमी खड़े थे बाहर। राधे ने भागने कि कोशिश कि लेकिन पकड़ा गया और उसके बाप रमेश को फोन करके बुला लिया वहां।
राधे मार खाकर मुंह लटकाए बैठा था और रमेश सिर झुकाए। सुल्तान और उसके गैंग के लोग दस लाख रुपए मांग रहे थे वीडियो को डिलीट करने और राधे को छोड़ने के। आखिरकार बात सात लाख में तय हुई।. रमेश ने अपनी कई वर्षों की जमा पूंजी उनके हवाले की और बेटे को लेकर घर को रवाना हुआ। अब राधे को समझ में आ रहा था कि जो नयना उससे ऑनलाइन प्यार जता रही थी वो दरअसल उसके पिता के पैसों के लिए बिछाया गया जाल था।. अब वो समझ पा रहा था कि उसने जो अपनी निजी जानकारियां फेसबुक पर शेयर की थी वो कितनी भारी पड़ी।. पिता की सारी जिंदगी की कमाई एक झटके में ही ख़तम और इज्जत गई सो अलग। रमेश भी चुपचाप गाड़ी लेकर घर पहुंच गया बेटे के साथ। मालती भी बहुत घबराई सी बैठी थी घर पर। घर आते ही राधे सीधे अपने कमरे में गया। अपने कर्मों पर आज उसे बहुत पछतावा हो रहा था और इसी आत्मग्लानि में फांसी खा कर मर गया। आज उस आभासी दुनिया ने वास्तविक दुनिया के एक हंसते खेलते परिवार को नष्ट कर दिया था।