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नास्तिक-लघु प्रेम-कथा

नास्तिक-लघु प्रेम-कथा

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यूँ तो वो घोषित नास्तिक था, पर बिछोह की आशंका, नीरू की मनोदशा और उसकी ज़िद के चलते वो भी बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए मंदिर जाने को तैयार हो गया ।
दोनों ने एक पंडा की दुकान पर जूते-चप्पल उतरे, हाथ धोऐ और पानी मिले दूध का कलश, दो फुनगी मदार, एक धतूरे का फूल और एक फल, ११ बेलपत्र लेकर मंदिर की गली में लगी लम्बी लाइन में लग गए ।
सावन का सोमवार होने की वजह से लोगों की श्रद्धा बाबा के लिए कुछ ज्यादा ही उमड़ आई थी. भगवा चोला पहने, गाँजे का दम लगाये कई युवा परम श्रद्धालुओं की टोलियों की भी कमी नहीं थी ।सारा सामान सँभालते, परम श्रद्धालुओं के वांछित स्पर्श से नीरू को बचाते और एक दूसरे का हाथ ज़ोर से पकड़े ज्यूँ ही दोनों मंदिर के करीब पहुँचे, एक पुरुष कांस्टेबल ने ज़ोर से आवाज़ लगायी "पुरुष इस लाइन में और महिलाये उस लाइन में जल्दी-जल्दी"! ये बोलते-बोलते उसने लगभग जबरदस्ती ही दोनों को अलग कर दिया ।
अनायास ही उसके मुँह से निकल पड़ा, " हमें तो भगवान भी साथ देखना नहीं चाहता", और नीरू विमूढ़ सी देखती रही ।


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