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दया

दया

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तीस साल की शन्नो फटे चिथड़े कपड़े पहने थी। उसकी गोद में एक दुबला पतला बीमार सा बच्चा था। जो भी उसे देखता उसका दिल दया से भर जाता। शन्नो सड़क के किनारे बैठी सूनी आँखों से इधर उधर देख रही थी। 

जैसे ही गाड़ियां लाल बत्ती पर रुकीं शन्नो अपने बच्चे को गोद मे उठा कर भागी। वह कार के शीशो पर थपथपा कर भीख मांग रही थी। बाहर चिलचिलाती धूप थी। बच्चा भूख से बिलख रहा था। इस दृश्य ने कई लोगों के मन में शन्नो और उसके बच्चे के लिए दया पैदा कर दी। जिसे जितना सही लगा उसे दे दिया। शाम तक इसी तरह भीख मांगने के बाद शाम को वह अपने डेरे पर लौटी। बच्चे को एक तरफ पटक कर वह दिन भर की कमाई का हिसाब लगाने लगी। बच्चा बहुत भूखा था और ज़ोर ज़ोर से रो रहा था।

"चुप हो जा कमबख़त सारी गिनती भुला दी।" 

शन्नो खीझ उठी। उसने आवाज़ लगाई। 

"कहाँ मर गई पम्मी, इसे अफीम चटा दे। रात भर शांत रहेगा।"

अपनी बात कह कर वह फिर पैसे गिनने लगी।


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