डॉक्टर डूलिटल - 2.8
डॉक्टर डूलिटल - 2.8
लेखक : ह्यू लॉफ्टिंग
स्वैर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
अव्वा को तोहफ़ा मिलता है
डॉक्टर त्यानितोल्काय की पीठ पर बैठकर गाँव में आया.
जब वह मुख्य सड़क से गुज़र रहा था तो सब लोग झुक-झुककर उसका अभिवादन कर रहे थे और चिल्ला रहे थे :
“स्वागत है, डॉक्टर डूलिटल !”
चौक पर गाँव के स्कूली बच्चों ने उसका स्वागत किया और उसे ख़ूबसूरत फूलों का एक गुलदस्ता भेंट दिया.
इसके बाद एक बौना बाहर निकला, उसने झुककर डॉक्टर का अभिवादन किया और कहा :
“मैं आपके अव्वा से मिलना चाहता हूँ.”
बौने का नाम था बाम्बूको. वह इस गाँव का सबसे बूढ़ा चरवाहा था. सब लोग उसका सम्मान करते थे और उससे प्यार करते थे.
अव्वा भागकर उसके पास पहुँचा और अपनी पूंछ हिलाने लगा.
बाम्बूको ने जेब से एक बेहद खूबसूरत कुत्ते का पट्टा निकाला.
“कुत्ते अव्वा!” उसने समारोहपूर्वक कहा. “हमारे गाँव के लोग तुम्हें यह ख़ूबसूरत पट्टा उपहार में देते हैं, क्योंकि तुमने मछुआरे को ढूंढ़ निकाला, जिसे डाकू ले गए थे.”
अव्वा ने पूंछ हिलाई और कहा:
“चाका!”
आपको, शायद, याद होगा कि जानवरों की भाषा में इसका मतलब होता है ‘धन्यवाद!’
सब लोग ग़ौर से पट्टे को देखने लगे. उस पर बड़े–बड़े अक्षरों में लिखा था :
"सबसे होशियार और बहादुर कुत्ते अव्वा को."
पेन्ता के माता-पिता के पास डॉक्टर डूलिटल तीन दिन रहा.
वक़्त बड़ी ख़ुशी से गुज़रा. त्यानितोल्काय सुबह से रात तक मीठे हनी-केक्स चबाता रहता. पेन्ता वॉयलिन बजाता और ख्रू-ख्रू और बूम्बा डान्स करते. मगर, जाने का समय आ गया.
“अलबिदा!” डॉक्टर ने मछुआरे और मछुआरन से कहा, वह त्यानितोल्काय की पीठ पर बैठा और अपने जहाज़ की ओर चल पड़ा.
पूरा गाँव उसे बिदा देने आया था.
“बेहतर है कि तुम हमारे यहाँ रुक जाते!” बौने बाम्बूको ने उससे कहा. “फिलहाल समुन्दर में समुद्री-डाकुओं का ख़तरा है. वे तुम पर हमला कर देंगे और जानवरों समेत तुम्हें कैद कर लेंगे.”
“मैं समुद्री-डाकुओं से नहीं डरता!” डॉक्टर ने उसे जवाब दिया. “मेरे पास बहुत तेज़ जहाज़ है. मैं पाल खोल दूँगा, और समुद्री-डाकू मेरे जहाज़ तक पहुँच नहीं पाएँगे!”
इतना कहकर डॉक्टर किनारे से दूर हटा.
सबने रुमाल हिलाकर उसे बिदा किया और चिल्लाए, “हुर्रे!”