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Sonal Bhatia Randhawa

Romance

5.0  

Sonal Bhatia Randhawa

Romance

एक बेनाम सा रिश्ता

एक बेनाम सा रिश्ता

4 mins
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वह मेरे सामने वाले घर में रहती थीं। हर सुबह अपने छत की मुंडेर पर पढ़ते हुए मैं उन्हे देखा करता। शांत सौम्य चेहरा....काजल भरी खूबसूरत बड़ी-बड़ी आँखें...सलीके से जूड़े में बंधे बाल.....करीने से काँधे पर बंधा हुआ साड़ी का पल्लू...फुर्तीले कदमों से चलती हुई ...कभी इधर कभी उधर....यूँ लगता था हर वक़्त मसरूफ है।

बस कभी-कभी शाम के समय छत पर दिखती थीं....मुंडेर पर कोहनी टिकाये...दोनों हथेलियों में अपने चेहरे को समेटे हुए....जाने क्या देखती रहती थीं आकाश की ओर....एक अजीब सा सूनापन दिखता था उस समय उनकी आँखों में...

जब मेरी ओर कभी देखती थी अचानक..हलकी मुस्कान से मेरे अभिवादन का जवाब दे देतीं....आखिर एक दिन मुझ से रहा नहीं गया। मैंने उनसे पूछ ही लिया..."आप रोज़ आकाश में क्या ढूंढती हैं।

मुस्कुरा कर बोलीं- "मुझे उड़ते हुए पंछियों को देखना बहुत अच्छा लगता है...कितने स्वछन्द...कोई सरहद कोई बंधन कोई सीमा नहीं इनके लिए।"

फिर मुस्करा कर बोलीं- "अरे यह सब छोड़ो, तुम्हें अक्सर मैं छत पर पढ़ते देखती हूँ...कुछ परीक्षा की तैयारी कर रहे हो ?"

"जी।" चाह कर भी मैं उन्हे कुछ सम्बोधन नहीं कर पाया था...कोई रिश्ता नहीं जोड़ पाया था ...दीदी, भाभी या ऐसा कुछ।

"ओह क्या करना चाहते हो।" फिर पूछा उन्होंने।

दिल में आया कहूँ- "सच कहूँ तो आपकी उदास आँखों के कोहरे के पीछे छिपी चमक देखना चाहता हूँ, आपके शांत चेहरे के आगोश में छिपी चंचल उमंगें देखना चाहता हूँ....आपके बालों को इस जूड़े की कैद से आज़ाद करना चाहता हूँ.....करीने से बंधे हुए पल्लू को हवा से अठखेलियाँ करते देखना चाहता हूँ....इन होठों की दबी मुस्कराहट के पीछे छिपी बेपरवाह खिलखिलाहट देखना चाहता हूँ....फुर्तीले क़दमों को कुछ देर थामना चाहता हूँ......"

मगर सिर्फ इतना ही बोल पाया ..."जी एम. बी. ए. की तैयारी कर रहा हूँ।"

"ओह्हो अच्छा, विश यू सक्सेज, होप ऑल योअर विशेज् आर फुलमिलड्..."कहकर वह तो नीचे चली गयीं मगर उनके आखिरी शब्द मेरे साथ ही रह गए..,

"होप ऑल योअर विशेज् आर फुलमिलड्..तुम्हारी सब चाहतें पूरी हों...." "आमीन।"

जैसे-जैसे परीक्षा नज़दीक आ रही थी, लगने लगा था, वक़्त कहीं हाथ से छूटे जा रहा है....फिर भी कुछ लम्हे चुरा कर मैं शाम को छत पर आना नहीं भूलता था.....क्यों और किस लिए मैं भी नहीं जानता था...न जाने क्यों उन्हें देख कर दिल को एक सुकून मिलता था ....कभी कभी उनसे बात भी हो जाती...इधर उधर की...कभी पॉलिटिक्स, कभी सोसाइटी, कभी एजुकेशन और कभी फिल्मों की....बस हलकी फुलकी डिस्कशन ...एक आदत बन गयीं थी, वो मेरे लिए शायद...हर बार जाते हुए वो मुझे,

"ऑस द बेस्ट...." कहना नहीं भूलती।

परीक्षा ख़त्म हुई और मैं घर चला आया। माँ-पापा और दोस्तों में व्यस्त हो गया....दिन भर मस्ती में निकल जाता मगर रात में जब आँख बंद करता तो अक्सर उनकी सौम्य छवि मेरी आँखों में ही ठहर जाती।

रिजल्ट आया और मैं सेलेक्ट हो गया। बेहद खुश था, लग रहा था हर सपना पूरा हो गया...माँ-पापा और दीदी तो निहाल हुए जा रहे थे पर मेरा मन बहुत व्याकुल था। मैं यह ख़ुशी उनसे बाँटना चाहता था...मेरी प्रेरणा थीं वो शायद।

कुछ दिन बाद मैं वापिस गया फिर अपना सभी सामान लेने। नयी ज़िन्दगी की शुरुआत से पहले पुरानी ज़िन्दगी की कुछ यादें समेटने। पता नहीं क्यों हर कुछ देर में निगाहें सामने वाली छत पर ही ठहर जातीं....आज तो ऐसा लग रहा था दिन बहुत बड़ा है...मानो सूरज ढलना ही नहीं चाहता।

पंछियों के झुण्ड चहचहाते हुए लौट रहे थे और फिर वह मुझे वो दिख गयीं....मैं पागल की तरह हाथ हिलाता हुआ उन्हे विश करने आया मुंडेर तक...बेहद खुश हुईं वो भी ....बोलीं- "यूँ ही खुशखबरी सुनाने आये खाली हाथ...मेरी मिठाई कहाँ है।"

जाते जाते मैं बोला- "मैं अब हमेशा के लिए यहाँ से चला जाऊँगा...फिर मिलूँ न मिलूँ....पर आपको कभी भूल नहीं पाऊँगा।"

वह भी उदास हो गयीं और बोलीं- "मैं भी तुमको मिस करुँगी, ऑल द बेस्ट।"

मैंने उन्हे एक छोटा सा पैकेट थमाया और कहा- "ये आपके लिए लाया हूँ...मेरी याद समझ कर रखियेगा।"

मन कर रहा था उनसे गले लग कर जी भर कर रो लूँ जाने से पहले, मगर मुँह पलट कर तेज़ क़दमों से नीचे लौट आया।

उस दिन जो पलटा तो फिर मुड़ कर नहीं देखा....ज़िन्दगी की भाग दौड़ में धीरे-धीरे उनकी यादें कुछ धुंधला ज़रूर गयीं पर कभी मिटी नहीं....कई साल बाद काम के सिलसिले में जब उसी शहर में आया तो मन किया फिर उनसे मिलने का।

पता चला वह आज भी उसी घर में रहती हैं और काफी बीमार हैं....उनसे मिलने पहुँच गया......बिस्तर पर लेटी हुई निरीह सी वह मेरी ओर एकटक देखती रहीं। मेरी आँखों में आज आंसू नहीं थम सके और मैं बोला- "आप जल्दी ठीक हो जाएंगी।"

वह मुस्कुरा दीं और "ऑल द बेस्ट.." कहकर करवट बदल ली उन्होंने, अचानक मेरी नज़र उनके बालों पर पड़ी जो आज भी जूड़े में बंधे थे ...बस थोड़े बेतरतीब....मगर वह लाल रंग का पिन उनके जूड़े में आज भी लगा था जो कई साल पहले मेरे दिए पैकेट में से निकाल कर उन्होंने लगाया था।।


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