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इण्डियन फ़िल्म्स - 1.4

इण्डियन फ़िल्म्स - 1.4

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जब मैं हो जाऊँगा...


जब मैं बीस साल का हो जाऊँगा, तो वेरोनिका से मिलूँगा और हम शादी कर लेंगे। फिर धीरे-धीरे मैं एक इम्पॉर्टेन्ट आदमी बन जाऊँगा और तीस साल की उम्र में ज़रूर डाइरेक्टर बन जाऊँगा। ये बहुत पहले से चल रहा है, इसलिए बचोगे कैसे? मुझे सही-सही तो नहीं पता। कि वो कैसा काम होगा, जिसका डाइरेक्टर मैं बनूँगा, मगर काम बेहद ज़िम्मेदारी का होगा, कोई ऐसा-वैसा, फ़ालतू काम नहीं होगा। मैं अपनी कैबिन में बैठा करूँगा, टेलिफ़ोन पे बातें किया करूँगा, खिड़की के बाहर बहुत बड़ा कम्पाऊण्ड होगा, जिसमें बहुत सारे ट्रक्स, कन्टेनर्स, और ड्राइवर्स होंगे, और मुझे, चाहे कुछ भी हो जाए, पालिच को तीन बजे से पहले ल्वोव भेजना होगा, और वलेरा को – एलाबूगा भेजना है, इसी पल। मगर वलेरा को, पता है, एलाबूगा ले जाने के लिए कुछ भी नहीं है, वो बेकार खड़ा है! और, मैं टेलिफोन पर डाँट पिलाऊँगा:

 “आप समझ रहे हैं, जॉर्ज ल्वोविच, मुझे इस बात में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है, कि आपके पास काम पे कौन आया है और कौन नहीं! मुझे बस इतना चाहिए, कि विश्न्याकोव को एग्रीमेंट के हिसाब से मिलना चाहिए!”

फिर मैं, पापा की तरह, डांटने लगूँगा, और पालिच फ़ौरन नोरील्स्क जाएगा, वालेरा – एलाबूगा, और मैं अपनी सेक्रेटरी वीका से शिकायत करूँगा कि सब के सब बेवकूफ़ हैं, एक सिर्फ मैं ही नॉर्मल हूँ – हाँ, हाँ।

वीका हर बार मेरी हाँ में हाँ मिलाती रहेगी, अगर वो किसी बात में मुझसे सहमत नहीं हो, तो भी, मगर एक बार पता चल जाएगा, कि मैं बेहद गुस्सैल हूँ, और मैं उससे कहूँगा, कि अगर वो सहमत ना हो, तो साफ़-साफ़ कह दे, न कि कुछ अनाप-शनाप सोचने लगे।

“मैं कभी सोचती भी नहीं हूँ,” वीका आहत हो जाएगी, “सेर्गेइ व्लादिमीरोविच, मैं सचमुच में ऐसा सोचती हूँ कि आपके चारों ओर सब लोग बेवकूफ़ हैं, सिर्फ आप अकेले ही सामान्य हैं। और सबके साथ प्यार से पेश आते हैं, काफ़ी ज़्यादा प्यार से!”

अब बताइए, ऐसी सेक्रेटरी कहाँ मिलेगी? और, अगर उसे मेरी हाँ में हाँ मिलाना अच्छा लगता है, तो क्या किया जा सकता है?

जब मैं चालीस साल का हो जाऊँगा , तो मेरी डाइरेक्टरशिप की दसवीं एनिवर्सरी मनाई जाएगी।

सम्माननीय सहयोगियों, दोस्तों और कई सारी महिलाओं के बीच मैं क्षेत्रीय रेस्तराँ ‘इंद्रधनुष्य’ में भोज वाली मेज़ पर बैठूंगा,स्नैक्स खाते हुए लोगों की शुभकामनाएँ और भाषण सुनूँगा, और मेरी दोस्ती और मेरे प्रति सम्मान का इज़हार किया जाएगा।

" वैसे सिर्योझा,” मेरे डेप्युटीज़ में से एक कहेगा। “साधारण लड़का है , मगर जहाँ तक योग्यताओं का सवाल है, वो सबसे बिरला इन्सान है! वो टेलिफ़ोन का रिसीवर उठाता है और सिर्फ पाँच सेकण्ड्स में किसी को भी मना लेता है,जिससे समय पर सामान चढ़ाया और उतारा जा सके।”

बोलने वाले के अंदाज़ से ज़ाहिर हो रहा होगा कि उसके लिए मेरा अधिकार, मेरा प्रभुत्व सुदृढ़ और सर्वोच्च है,और मुझे ख़ुश करना – उसकी हार्दिक इच्छा है। मगर एक विरोधाभासी और कभी-कभी सनकी व्यक्ति होने के कार, मैं अचानक अपने साथी को बिठा दूँगा और कहूँगा:

 “ठीक है, एफ़्रेमोव, कुछ न कहो। बेहतर है कि तुम स्नैक्स उठाओ, और फिर हम साथ मिलकर ‘कराओके’ गाएँगे। इस समय मेरी बगल में बैठी हुई वेरोनिका मुस्कुराएगी और मुझसे कहेगी:

“कितने जंगली हो तुम!” और डान्स करने चली जाएगी।

और जब मैं समारोह से घर लौट रहा होऊँगा, तो मेरे साथ-साथ प्रसन्न वेरोनिका चल रही होगी।

 “क्या पार्टी थी!” वह कहेगी।

और मुझे न जाने क्यों ल्योशा रास्पोपव की याद आ जाएगी।

वाकई में वो पूरे कम्पाऊण्ड का सबसे अच्छा लड़का था!

जब मैं साठ साल का हो जाऊँगा, तो मेरे पोते और पोतियाँ होंगे। वो अपने दादा से बेहद प्यार करेंगे, अच्छे नम्बर लाकर उसे ख़ुश करते रहेंगे और हमेशा मनाते रहेंगे कि मैं उनके साथ खेलूँ।

“मैं थक गया हू,” मैं टी।वी। का चैनल बदल कर कराहते हुए कहूँगा, “मुझे आराम करने दो, शैतानों!”

और तब मेरी पोती मरीना मुझे गले लगा लेगी और खूब खूब मनाते हुए कहेगी, कि मैं उनके साथ बाहर जाकर ‘स्नो-मैन’ बनाऊँ।

 “बस, अब ‘स्नो-मैन’ बनाना ही बाकी रह गया है!” मैं बेवकूफ़ों जैसे कहूँगा। मुझे मालूम है कि मेरे बस थोड़ा आवाज़ बिगाड़ने की देर हैै , मरीना हँसते-हँसते लोट पोट हो जाएगी। “ये-ए,” मैं बिगाड़ी हुई आवाज़ में कहूँगा,आया है बूढ़ा ठूँठ बाहर सड़क पे और बना रहा है ‘स्नो-मै-ए-न। इत्ती रात हो गई है, सारे बच्चे और उनके मम्मा-पापा अपने अपने बिस्तर पे जा चुके हैं, मगर, डैम इट, मरीना का नानू बना रहा है स्नो-मै-ए-न।”

मरीना को तो जैसे दौरा पड़ जाएगा,और मैं कहता रहूँगा:

“सुबह तक स्नो-मैन अचानक तालियाँ बजाएगा और नानू के चारों ओर दौड़ने लगेगा। त्रा-ता-ता! त्रा-ता-ता! बच्चे मेरी और स्नो-मैन की बगल से स्कूल जा रहे होंगे और कहेंगे:‘चौदह नम्बर के क्वार्टर वाला (ये हमारा क्वार्टर है) बूढ़ा बिल्कुल सठिया गया है। पूरी रात सोता नहीं है!” मगर फिर हमारे प्रदेश में ज़ोरदार हवाएँ चलेंगी, बड़े बड़े तूफ़ान आएँगे , मगर मैं चाहे कहीं भी क्यों न छुप जाऊँ, मैं स्नो-मैन की हिफ़ाज़त करता रहूँगा।”  

“बस हो गया, नानू!” मरीना चिल्लाने और चिंघाड़ने लगेगी, मगर मैं कहता रहूँगा:

“और हवा मेरे साथ-साथ स्नो-मैन को भी धरती से हमेशा के लिए उड़ा ले जाएगी। ऐसा न हो, इसलिए, मेरी प्यारी पोती, मुझे अपने साथ स्नो-मैन बनाने के लिए मत कहो।”

इस तरह मैं बर्फ से कुछ भी बनाने के लिए नहीं जाऊँगा, और बच्चों के साथ खेलता रहूँगा।

जब मैं करीब अस्सी से कुछ ऊपर हो जाऊँगा, तो मेरी अंतिम घड़ी निकट आ जाएगी। मगर इस कठिन पल में भी मैं ख़ुश मिजाज़ बना रहूँगा। पोते-पोतियों को अपने पास बुलाऊँगा और कहूँगा:

“बच्चों, मेरी अंतिम घड़ी आ पहुँची है। तुम्हारा नानू हर पल मौत के करीब जा रहा है। जल्दी से चाय और सैण्डविचेज़ लाओ - आख़िरी बार खा लें।

आँखों में आँसू भरे पोती मरीना सैण्डविचेज़ बनाने के लिए जाएगी, और गंभीर पोते (वो, ख़ैर,तब तक बड़े आदमी बन चुके होंगे) पत्थर जैसे चेहरों से सोफ़े पर बैठेंगेे, और ज़िंदगी उन्हें बोझ प्रतीत होगी।

औ, जब मैं उनकी तरफ़ देखूँगा,तो मुझे जैसे छोटा सा शैतान काट लेगा।  

“दुखी हो गए, बच्चों?” मैं पूछूँगा। “बेहतर है कि मेरी नसीहत सुनो। डेनिस, तुझे मैं नसीहत देता हूँ और सिर्फ दोस्ताना अंदाज़ में सलाह देता हूँ कि तू तेरी फ़र्म में डाकुओं के बीच काम करना छोड़ दे और ईमानदारी से रहना और काम करना शुरू कर। और तुझे, एल्बर्ट, मैं कोई सलाह नहीं दूँगा, क्योंकि तू ख़ुद ही समझदार है। एक ही बात, जो मैं कहना चाहता हूँ, वो ये है, कि कभी भी ऐसा चेहरा मत बनाना, जैसा तूने अभी बनाया है। मैं समझ सकता हूँ, कि मेरी मौत दुखदायी है, मगर अपनी ज़िंदगी का क्या करेगा?” –और मैं नाक सुड़क लेता हूँ।

इसी समय मरीना हमारे लिए चाय और सैण्डविचेज़ लाएगी, मगर अब मेरा मन नहीं है और मैं अपने पोतों से चाय पीने के लिए कहता हूँ।

“चलो, एलबर्ट और डेनिस, मेरी सुखद यात्रा के लिए!”

 “नानू, चाय पीने का मन नहीं है।।।” दाँत किटकिटाते हुए, डेनिस और एल्बर्ट कहेंगे और जो हो रहा है, उसे बर्दाश्त न कर सकने के कारण मुट्ठियाँ भींच लेंगे।

 “खाओ, कहता हूँ खाओ!!!” मैं बेतहाशा चिल्लाऊँगा, जैसे जवानी में चिल्लाया करता था।

और, जैसे ही वे बढ़िया सैण्डविचेज़ को मुँह लगाएँगे - जैसे मरीना हमेशा बनाती थी, मेरी रूह छत की ओर उड़ेगी, फिर खिड़की से बाहर निकल जाएगी, घर के ऊपर तैरेगी और जल्दी ही ख़ुदा के घर पहुँच जाएगी।

“त,” ख़ुदा कहेग, “बेकार में इधर उधर न डोल। ये कपड़ा उठा और धूल झाड़ जैसे बाकी सब कर रहे हैं। वर्ना तो यहाँ जन्नत जन्नत नहीं बल्कि जहन्नुम बन जाएगी।”

और मैं धूल साफ़ करने लगूँगा, जिससे जन्नत जन्नत ही रहे, और।।।वगैरह, वगैरह। 

एक समय ऐसा भी आएगा, जब मैं बिल्कुल ही नहीं रहूँगा।                      

गाँवों के रास्तों पे शिशिर की बारिश की झड़ी लगेगी, कम्पाऊण्ड्स में चीरती हुई हवाएँ चलेंगी, और मेरा पैर क्यारियों पे कभी नहीं पड़ेगा, मेरे हाथों की ऊँगलियाँ कभी नहीं चटखेंगी, मेरा मुँह कभी चेरी-जूस नहीं पिएगा और मेरा दिल कभी ख़ुशी से नहीं भर उठेगा। नए लोग जनम लेते रहेंगे । वो अपनी-अपनी ज़िन्दगी जिएँगे, मेरे अनुभव से कुछ भी न लेते हुए।

मगर, हो सकता है, वो कभी मेरी छोटी सी किताब पढ़ लें। वो पढ़ें, कि कैसे मैं और वेरोनिका गैस-स्टेशन पे घूमा करते थे, और जहाँ वो लोग रहते हैं, वहाँ भी गैस-स्टेशन्स होंगे। हमारे यहाँ तो गैस-स्टेशन्स हमेशा घरों के आस-पास ही होते हैं!

लीज़ा स्पिरिदोनोवा जैसी दुष्ट सुंदरियाँ भी, फूल फेंकेंगी और मुस्कुराएँगी, इस बारे में बिल्कुल भूल जाएँगी कि उनसे भी ख़ूबसूरत कोई और है।

 “हो-हो!” तब ऊँचे आसमान से मैं उनसे कहूँगा।

और तब, हल्की बारिश शुरू हो जाएगी। वो अपने अपने घरों में भागेंगी चाय पीने के लिए और टी।वी। देखने के लिए, जहाँ कई शामों को लगातार दॉन किहोते के बारे में फ़िल्म दिखा रहे होंगे।


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