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सच हो गए ख्वाब सुनहरे

सच हो गए ख्वाब सुनहरे

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सुहानी आज खुशी से फूली नहीं समा रही थी।

आज वह बहुत खुश थी। खुश क्यों न हो आज उसकी बचपन की ख्वाहिश जो पूरी हो गई थी। उसे कला टीचर की नौकरी जो मिल गई थी। वह भी उस स्कूल में जहां वह पढ़ी थी। यह सब हुआ था अनीता मैम की प्रेरणा से।

सुहानी को आज भी वह दिन याद है जब वह पहली बार स्कूल आई थी। घर में दो भाई और दो बहनें थीं। वह अपना काम सोच-समझ कर करती थी। इसलिए वह काम करने में देर भी करती थी। सभी उसे फिसड्‍डी कहते थे। कक्षा में घुसते समय सुहानी डरी हुई थी कि यहां भी बच्चे और टीचर उसे फिसड्डी न समझ लें। स्कूल में उसे बहुते सारे बच्चे मिले, जिनमें से कई उसके कई दोस्त भी बने। धीरे-धीरे वह सभी से घुल-मिल गई। इसके बावजूद फिसड्डी होने का ताना उसे अंदर ही अंदर साल रहा था।

वह जब भी स्कूल से घर पहुंचती तो घर का कोई न कोई सदस्य उसे फिसड्डी होने का ताना दे ही देता। इससे सुहानी अंदर ही अंदर दुखी रहती थी। इससे वह तनाव में भी रहती थी। कला की टीचर अनीता मैम से उसका यह दर्द छिपा नहीं रह सका। उन्होंने सुहानी से पूछा तो उसने सब बात बता दी। अनीता मैम ने कहा कि हर किसी में अलग प्रतिभा होती है। तुम कला में बहुत अच्छी हो। तुम प्रकृत्ति की पेंटिंग बनाओ। पेंटिंग में अपना श्रेष्ठ काम दो। अनीता मैम के दिशा-निर्देशन में सुहानी ने बहुत अच्छी पेंटिंग बनाई। इसके बाद अनीता मैम ने सुहानी के परिवार के लोगों को स्कूल बुलाया। स्कूल में आने पर उनको वह पेंटिंग दिखाई। अनीता मैम ने जब यह बताया कि यह पेंटिंग सुहानी ने बनाई है तो परिवार के सभी सदस्य हैरत में पड़ गए। वह सोचने लगे कि जिसको हम फिसड्डी समझते हैं, उस सुहानी ने इतनी अच्छी पेंटिंग बना दी।

तब अनीता मैम ने कहा कि हर बच्चे की सोचने और समझने की अलग-अलग क्षमता होती है। हर बच्चा कुछ खास प्रतिभा रखता है। जरूरत केवल उसे समझने और सही राह दिखाकर उसे बढ़ाने की है। सुहानी में एक अच्छा कलाकार छिपा है। उसे इसी दिशा में काम करने दीजिए। वह एक दिन परिवार का नाम रोशन करेगी। वह फिसड्डी नहीं है। इसके बाद परिवार के लोगों ने सुहानी को फिसड्डी कहना छोड़ दिया है। वह दिन और आज का दिन। सुहानी कला टीचर बन गई है। साथ ही वह राज्य की एक प्रख्यात चित्रकार भी है। सोच में डूबी सुहानी की आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे। साथ ही, यह सोचकर दिल दुखी हो गया कि अनीता मैम जिंदा रहती तो कितना खुश होतीं। वह आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके दिखाए राह पर चल कर मेरी एक नई पहचान बन गई है, थैंक्यू मैम।


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