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Unknown Writer

Crime Horror Thriller

3.0  

Unknown Writer

Crime Horror Thriller

मिस्ट्री ऑफ़ सीरियल किलिंग्स

मिस्ट्री ऑफ़ सीरियल किलिंग्स

17 mins
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अमावस्या की काली-अंधेरी रात थीं, इसलिए आसमान में चाँद नजर आने का तो सवाल हीं नहीं पैदा होता था, लेकिन बरसात का मौसम होने और आसमान में काले बादल छाए होने की वजह से तारे भी नजर नहीं आ रहे थे। आसपास के जंगलों से सुनाई देनेवाले सियारो का करूण रूदन, आसपास के गड्डो के पानी में पैदा हुए बरसाती मेंढकों की टर्रर-टर्रर और पेड़-पौधों के पत्तों की खड़-खड़ की आवाजें आपस में मिलकर इस डरावने माहौल को और अधिक डरावना बना रही थीं।

अचानक आसमान में कुछ पलों के लिए चमकने वाली बिजली ने जैसे सामने करीब तीन सौ मीटर की दूरी पर मौजूद पुराने किले के दर्शन कराए, वैसे ही अपनी टीम के साथ घनी झाड़ियों के बीच छुपा लखन काँप उठा।

"क्या हुआ भाई ?" लखन से सटकर खड़े रामनरेश को उसके बदन की कम्पन का अहसास हुआ तो उसने सवाल किया।

"भ...-भाई, मुझे बिजली की रोशनी में उस किले के सामने एक भूत नजर आया।" लखन ने कपकपाते स्वर में जवाब दिया।

"भूत तो मुझे भी नजर आया।" रघुवीर की बात सुनकर लखन के बदन की कपकपी बढ़कर मलेरिया बुखार के रोगी तरह हो चुकी थीं।

"रघुवीर, ये वैसे ही डरा हुआ हैं, इसे और मत डरा।"

"अरे, इसे इतना डर लगता हैं तो पुलिस विभाग में भर्ती हीं क्यों हुआ ? मजे से अपने बाप की हेयर सैलून पर बैठकर लोगों के बाल के साथ-साथ उनकी जेब भी काटता।" उस टीम के चौथे और आखिरी मेम्बर बलवंत ने रामनरेश की बात पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।

"भाईयों, ये भूत-प्रेत और हेयर सैलून की बात छोड़ो और ये बताओ कि हम लोग पिछले पाँच मिनट से सड़क से करीब ढाई सौ मीटर दूर इन झाड़ियों में छुपकर किसका इंतजार कर रहे हैं ?" रघुवीर ने सवाल किया।

"तुझे नहीं पता क्या ?" जवाब में रामनरेश बोला।

"कैसे पता होगा यार, मैं मदन के साथ मिलानपुर से एक मुलजिम पकड़कर थाने पहुँचा हीं था कि बड़े साहब ने मुझे पकड़कर पुलिस वेन में तुम लोगों के साथ बिठाया और यहाँ उतारकर नौ-दो-ग्यारह हो गए।"

"कोई बात नहीं, मैं तुझे बता देता हूँ कि हम लोग यहाँ किस मकसद से छुपकर इस भुतिया किले और उसके सामने वाली सड़क पर नजर रख रहे हैं। तुझे इस क्षेत्र में पिछले पाँच-छः माह से हर अमावस्या की रात को पति-पत्नी या प्रेमी प्रेमिका के एक जोड़े के इसी सड़क से गायब होने और दूसरे दिन उनके सिरकटी लाश इस सड़क पर मिलने की तो जानकारी हैं न ?"

"ये बात तो इस इलाके का बच्चा-बच्चा जानता हैं, इसलिए तो इस इलाके का कोई व्यक्ति अमावस्या की रात को इस सड़क से कितना जरूरी काम क्यों न हो, सफर करना पसंद नहीं करता।"

"हाँ, लेकिन हर अमावस्या की रात को दूसरे इलाके के कोई न कोई पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका का जोड़ा हमारे विभाग की एडवायरी जारी करने और इस सड़क की कड़ी निगरानी करने के बावजूद उस अगवा करके सिर काटने वाले गिरोह के hath चढ़ हीं जाता हैं।

"तो क्या हम लोग उस सिर काटने वाले गिरोह को पकड़ने के लिए खड़े हैं ?"

"नहीं, हम सिर्फ उस गिरोह के दस-पंद्रह मिनट बाद एक प्रेमी जोड़े को सामने वाली सड़क से अगवा करने पर उस गिरोह का पीछा करते हुए उनके ठिकाना तक पहुँचने और उनके ठिकाने की लोकेशन बड़े साहब को बताने के लिए यहाँ छुपे हुए हैं।"

"बड़े साहब को इतना यकीन कैसे हैं कि दस-पंद्रह मिनट बाद यहाँ एक प्रेमी जोड़ा पहुँचेगा और उसे यहीं से अगवा करने की कोशिश भी की जाएगी ?"

"प्रेमी जोड़े के दस-पंद्रह मिनट बाद यहाँ पहुँचने का यकीन इसलिए हैं, क्योंकि प्रेमी जोड़े के पहुँचने की व्यवस्था बड़े साहब ने ही की हैं और यहीं से उनका अपहरण होने का यकीन इसलिए हैं क्योंकि इससे पहले गायब हुए सभी छः जोड़ों की आखिरी मोबाइल लोकेशन इसी किले के आसपास मिली और उनके वाहन व मोबाइल भी इस किले के आसपास से हीं बरामद हुए।"

"यदि बड़े साहब ने जिस प्रेमी जोड़े के यहाँ पहुँचने की व्यवस्था की हैं, उससे पहले हीं कोई दूसरा प्रेमी जोड़ा या पति-पत्नी का जोड़ा यहाँ पहुँच गया तो ?"

"नहीं पहुँचेगा, क्योंकि सड़क के दोनों तरफ डेढ़-डेढ़ किलोमीटर दूर पुलिस ने बैरीकेट्स लगाकर ट्रैफिक रोक रखा हैं, इसलिए किसी भी दिशा से छोटे साहब की बाइक के अलावा कोई गाड़ी नहीं आ सकती।"

"यानि, उस गिरोह का चारा हमारे थाने का जेम्स बांड सब-इंस्पेक्टर ऋषभ खुद बना हैं ?"

"हाँ।"

"और उस चाॅकलेटी ब्वाय की प्रेमिका बनकर उसकी बाइक पर कौन आ रही हैं ?"

"हमारे थाने की नई एएसआई मोनिका शर्मा।"

"अरे यार, आज तो मुझे एसआई ऋषभ की किस्मत से बहुत जलन हो रहीं हैं। इतनी जलन तो मुझे कभी उसके एसआई और मेरे सिर्फ हैड कांस्टेबिल होने पर भी कभी नहीं हुई।"

"यानि तुझे मोनिका मैडम के साथ उस सिर काटने वाले गिरोह का चारा बनने का मौका मिलता तो तू बन जाता ?"

"ना बोलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। मोनिका मैडम को बाइक पर अपने पीछे बिठाकर सफर करने के लिए तो उस सिर काटने वाले गैंग का चारा बनना तो बहुत छोटी बात हैं, इसके लिए मैं मौत का भी चारा बनने के लिए तैयार हो जाऊँगा।"

"तो तू एक काम कर, यहाँ से सीधा भवानी मंदिर वाले मोड़ पर पहुँच जा, वहीं पर छोटे साहब, बड़े साहब की टीम के साथ मोनिका मैडम को लेकर खड़े होंगे। मैं उन्हें काॅल करके बता देता हूँ कि तू चारा बनने के लिए तैयार हैं तो वे तेरे वहाँ पहुँचने तक रूक जाएँगे। वैसे भी छोटे साहब चारा बनने की जगह उस गिरोह का पीछा करने वाली बड़े साहब की टीम में शामिल होना चाहते थे और बड़े साहब भी उन्हें अपनी टीम में रखना चाहते थे, लेकिन हमारे स्टाॅफ का कोई दूसरा आदमी चारा बनने के लिए तैयार नहीं हुआ इसलिए उन्हें हीं चारा बनना पड़ा। लगाऊँ उन्हें काॅल ?"

"रहने दे यार, खामख्वाह आॅपरेशन डिले हो जाएगा।"

"आॅपरेशन दस-पंद्रह मिनट डिले होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"

"अरे, पर मैं मोनिका मैडम को बाइक पर बिठाने के लिए मौत का चारा बन गया तो मुझे तो फर्क पड़ेगा न। कल तुम्ही लोग मुझे दो भागों में डिवाइड देखकर कहोगे कि ये बेवकूफ आदमी सिर्फ एक ब्यूटी क्वीन को पाँच-सात मिनट के लिए अपने पीछे बाइक पर बिठाने के चक्कर में कुत्ते की मौत मारा गया।

"साला बहुत हीं शातिर हैं, ब्यूटी क्वीन को बाइक पर घुमाने का शौक भी पालता हैं और जान भी जोखिम में नहीं डालना चाहता हैं।"

"भाई, इंसानों के चंगुल में हीं फँसने का जोखिम होता तो मैं चारा बनने के लिए तैयार हो जाता हैं, पर मुझे ये मामला वैसा बिलकुल नजर आ रहा हैं, जैसा बड़े साहब और एसआई ऋषभ समझ रहे हैं क्योंकि अचानक इस जगह से बिना कोई सुराग छोड़े लोगों को गायब कर देना इंसानों के बस का काम नहीं हो सकता। यहाँ से लोगों के गायब होने के बाद न सिर्फ कुछ लोगों के पैरों के निशान किले की ओर जाते हुए मिलते हैं और किले के अंदर कुछ नहीं मिलता हैं। बिना किसी वाहन के किसी को इस तरह तो कोई रूहानी ताकत हीं गायब कर सकती हैं।"

"मुझे भी ऐसा हीं लगता हैं।" लखन ने काँपती आवाज में रघुवीर की बात का समर्थन किया।

"पर मुझे ये काम किसी तांत्रिक का लगता हैं जो अपनी कोई सिद्धि प्राप्ति के लिए हर अमावस्या को एक पुरुष और एक महिला की बलि दे रहा हैं।" रामनरेश ने उन दोनों से अपना अलग ही मत व्यक्त किया।

"मुझे भी ऐसा ही लगता है कि ये किसी तांत्रिक का ही काम हैं जो अपनी किसी खास तंत्र साधना के लिए लोगों का अपहरण कराकर किले में ले जाता हैं और किले में मौजूद किसी गुप्त सुरंग से अपने तंत्र साधना स्थल तक ले जाता हैं, इसलिए गायब हुए लोगों का कोई सुराग नहीं मिलता हैं।" बलवंत ने रामनरेश की बात का समर्थन करने के साथ हीं एक नई थ्योरी बता दीं।

"वाह भाई, तू तो सिर्फ पाँच-छः माह तक ऋषभ सर की शागिर्दी करके उनसे भी आगे पहुँच गया हैं। इस एंगल से तो अभी तक ऋषभ सर भी नहीं सोच पाए। लगता हैं कि मुझे भी ऋषभ सर के साथ रहना पड़ेगा।"

"रामनरेश, मुझे लगता हैं कि एसआई ऋषभ और मोनिका मैडम की बाइक किले के सामने आ रही हैं।"

"नहीं भाई, ये किसी और की बाइक हैं क्योंकि ऋषभ सर और मोनिका मैडम उस दिशा से नहीं आनेवाले थे। वे लोग तो भवानी मंदिर के तरफ से आनेवाले थे।" रामनरेश की बात पूरी होते हीं कुछ पलों के लिए आसमान में बिजली चमकी तो किले के साथ आसपास नजर आनेवाला पूरा इलाका कुछ पलों के लिए रोशनी से जगमगा उठा।

...........

"ऋषभ, अपनी बाइक छोड़ों और हमारे साथ वेन में आओ। हमारी किले के सामने मौजूद टीम ने हमें इन्फार्मेशन दी हैं कि हमारी बेरीकेटिंग के बावजूद कहीं से कोई बेवकूफ जोड़ा बाइक से उस किले के सामने पहुँच गया था, जिसे कुछ लोग पकड़ कर किले के भीतर ले गए हैं। मिस मोनिका, आप भी हमारे साथ आइए।" कहकर इंस्पेक्टर विनायक भदोरिया पुलिस वेन में आगे की सीट पर बैठ गया।

"आइए मिस मोनिका।" कहकर ऋषभ अपनी बाइक छोड़कर पीछे का गेट खोलकर एक तरफ खड़ा हो गया और जब मोनिका वेन में बैठ गई, तब ऋषभ ने वेन में बैठकर दरवाजा बंद कर लिया।

"मिस मोनिका, आपको ऐसा नहीं लगता है कि दाल में कुछ काला हैं ?"

"नहीं सर, मुझे तो ऐसा कुछ नहीं लग रहा हैं।" मोनिका ने ऋषभ की बात के जवाब में मुस्कराते हुए कहा।

"पर, मुझे ऐसा क्यों लग रहा हैं कि हमें भटकाया जा रहा हैं ?"

"क्योंकि आप खुद भटक चुके हैं।"

"व्हाट डू यू मीन ?"

"मैंने आपकी पर्सनल डायरी का वो चैप्टर पढ़ चुकी हूँ, जिसमें आपने लिखा हैं कि मैं उस खूबसूरत हसीना के प्यार में भटक चुका हूँ जिसका नाम मोनिका हैं।"

"ओ गाॅड।"

"ओ गाॅड नहीं, थैंक्स गाॅड बोलिए, क्योंकि उनकी

कृपा से मैंने वो डायरी पढ़ ली, अदरवाइज बड़े-बड़े मिस्ट्री साॅल्व करने वाले इस सत्ताईस साल के बच्चे में इतनी हिम्मत तो हैं नहीं कि अपनी चाहत का हाथ थामकर कह सकें कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।"

"मिस मोनिका, ऐसा कुछ नहीं हैं, जैसा आप समझ रही हैं।"

"तो क्या हैं रिषु ?"

"आप मुझे रिषु क्यों कह रही हैं ?"

"क्योंकि आप आज से मेरे रिषु हैं।"

"ओह गाॅड, ये क्या मुसीबत हैं ?"

"इस मुसीबत के बारे में आपने अपनी डायरी में उसके बारे में लवली-लवली बातें लिखने से पहले सोचना था।"

"अरे, लेकिन मैंने आपसे कुछ कहा क्या ?"

"बट अपनी डायरी में अपनी पहली और आखिरी प्रेमिका के रूप में तो मेरा नाम लिखा हैं न ?"

"पर वो डायरी तो मेरी अपनी हैं न ?"

"हाँ, पर उसमें लिखा नाम तो मेरा हैं न ?"

"पर ये भी सच हैं न कि मैं आपका सीनियर आॅफिसर हूँ और मेरी बात मानना ड्यूटी हैं ?"

"आपकी आधी बात तो सच हैं कि सीनियर आॅफिसर कीई बात मानना मेरी ड्यूटी हैं पर आपकी आधी बात गलत हैं कि आप मेरे सीनियर आॅफिसर हैं क्योंकि मैं रजिग्नेशन का ई-मेल इंस्पेक्टर भदोरिया को भेज चुकी हूँ।"

"मतलब ?"

"मेरा डेढ़ साल में ही इस नौकरी से मन उचट चुका था, बट मैं इस नौकरी को सिर्फ इसलिए झेल रही कि मैं अपने सपनों के राजकुमार के मिलते तक अपने मम्मी-पापा के मुझ पर अपनी शादी के लिए बनाए जा रहे प्रेशर से बच सकूँ, बट अब मेरा वो मकसद पूरा हो चुका हैं। मुझे जिस टाइप के हमसफर की तलाश थी, वो मुझे मिल चुका हैं।"

"कौन हैं वो ?"

"वो आप हैं।"

"अरे, मिस मोनिका.....।"

"कम आॅन, सब लोग जल्दी से उतरकर किले की ओर चलिए।" इंस्पेक्टर भदोरिया की बात सुनकर ऋषभ ने अपनी बात अधूरी छोड़कर वेन से नीचे उतर गया।

..........

"सर, वेन में बैठने के पहले से मेरे दिमाग में ये बात आ रही हैं कि दाल में कुछ काला हैं।" किले के अंदर तलाशी लेते हुए एसआई ऋषभ ने अपने सीनियर आॅफिसर को समझाने का प्रयास किया।

"ऋषभ, मुझे तो कहीं और हीं दाल में काला नजर आ रहा हैं।" इंस्पक्टर भदोरिया ने किले में मौजूद एक पत्थर की बनी खाली अलमारी चेक करते हुए जवाब दिया।

"मतलब ?"

"मतलब ये हैं कि मैं वेन में तुम्हारी और मिस मोनिका के बीच में हुई सारी बातचीत सुन चुका हूँ और ये जानने के बाद मुझे लगता हैं कि तुम्हारे मिस मोनिका के प्यार में पड़ जाने की वजह से तुम्हारी बुद्धि भृष्ट हो चुकी हैं।"

"ये गलत हैं सर।"

"क्या, ये कि तुम्हें प्यार हो गया हैं ?"

नो सर, ये कि मेरी बुद्धि भृष्ट हो चुकी हैं।"

"इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें प्यार होने वाली बात सच हैं ?"

"यस सर, नो सर, आई मीन आई डोंट नो सर।"

"सर, मुझे सुरंग का रास्ता मिल गया हैं।" बलवंत ने आकर जानकारी दी तो इंस्पेक्टर भदोरिया की खुशी का ठिकाना न रहा।

"गुड, आओ ऋषभ।" इंस्पेक्टर भदोरिया ने कहा और वो तेजी से बलवंत के पीछे चलने के लिए मुड़ गया।

"सर, एक मेरी बात सुन लीजिए।"

"ऋषभ, मुझे नहीं लगता कि तुम अब कोई काम के रहे।"

"सर, प्लीज एक मिनट रूककर मेरी बात तो सुन लीजिए।"

"जल्दी बोलो...?"

"सर, ये सोचिए कि हमने सड़क के दोनों तरफ बेरिकेटिंग कर रखी हैं, फिर ये प्रेमी जोड़ा यहाँ कहाँ से आया ?"

"हो सकता हैं कि हमारी बेरिकेट्स के बीच में पड़ने वाली किसी पगडंडी से वे लोग बाइक लेकर आ गए हो।"

"पगडंडी से आए यानि लोकल लोग हैं और लोकल लोगों का इतने दहशतभरें माहौल में किले के सामने से गुजरने की कोशिश करना और भी ज्यादा एबनार्मल एक्टीविटी हैं क्योंकि इस इलाके में सभी को पता हैं कि इस किले के सामने से अमावस्या की रात को गुजरने का जोखिम उठाने का अंजाम क्या होता हैं।"

"हाँ यार, ये तो वाकई सोचने वाली बात हैं, पर तुम कहना क्या चाहते हो ?"

"यही कि इन पाँच-छः माह से अमावस्या की रात को की जानेवाली हत्याओं का मकसद वो नही हैं जो हम समझ रहे हैं। इन हत्याओं का एकमात्र उद्देश्य ये हैं कि वीरपुर पुलिस स्टेशन की सारी फोर्स इन हत्याओं की मिस्ट्री को सुलझाने में उलझ जाए और ये रहस्यमयी ढंग से हत्या करने वाले अपने किसी बड़े मकसद में कामयाब हो जाए। अभी हम यदि किसी सुरंग में चले गए तो सुबह तक वापस नहीं निकल पाएँगे क्योंकि इस तरह के किले और महलों से सुरंगे बनाने का मकसद दुश्मन से घिर जाने पर इन सुरंगों की सहायता से सुरक्षित स्थान पर निकल जाना होता था, इसलिए ये सुरंगें बहुत लम्बी होती हैं। दूसरी बात ये हैं कि हमारे सुरंग में जाने के बाद हमारे मोबाइल काम करना बंद कर देंगे और ये लोग वीरपुर थाना क्षेत्र में ऐसी कोई बड़ी वारदात को अंजाम देकर आसानी से निकल जाएंगे, जिसके लिए उन्होंने करीब छः माह से हमारे लिए ये जाल बिछाया हैं।"

"आई सी, क्या तुम्हें पता हैं कि वो किस बड़ी वारदात को अंजाम देनेवाले हैं ?"

"नहीं, लेकिन मुझे यकीन हैं कि उस वारदात के बारे में हमारे थाने के हैड कांस्टेबिल बलवंत को जरूर पता होगा।"

"तुम्हारे इस यकीन की वजह ?"

"सर, जिस इंसान को थाने में रखी एक फाइल तक नहीं मिल पाती, उसे इस किले में वो सुरंग मिल पाना, जो मुझे, आपको और मिस मोनिका को कई बार की जानेवाली तलाशी के बावजूद नहीं मिली थीं, इस यकीन के लिए काफी ठोस वजह हैं।"

"यू आर एब्सॅल्यूटली राइट। बलवंत, भागने की कोशिश मत करों। मिस मोनिका, उसे पकड़िए।" इंस्पेक्टर भदोरिया की बात सुनकर मोनिका ने लपककर बलवंत की शर्ट पकड़ ली।

जिसके बाद उस पर इंस्पेक्टर भदोरिया का एक झन्नाटेदार झापड़ पड़ा तो उसने बिना पूछे हीं सबकुछ उगलना शुरू कर दिया- "सर, यहाँ से किसी तंत्र साधना के लिए लोगों को गायब नहीं किया जाता था, बल्कि इसलिए किया जाता था कि कभी वीरपुर थाने की पूरी पुलिस फोर्स इन रहस्यमयी हत्याओं के कातिल को पकड़ने के लिए इस किले से होकर जानेवाली बीस किलोमीटर लंबी सुरंग में उलझ जाए और तब तक इन कातिलो का गिरोह वीरपुर के सारे बैंक लूटने में कामयाब हो जाए। आज उस गिरोह के जो दो आदमी जिस जोड़े को लेकर इस सुरंग में घुसे हैं, उस जोड़े के आदमी और औरत इन्हीं के साथी हैं। आज ये उन्हीं के आदमियों के अपहरण का नाटक इसलिए किया गया क्योंकि एसआई ऋषभ और एएसआई मोनिका का अपहरण भारी पड़ सकता था।"

"आस्तीन के साँप बलवंत, उस गैंग को इन दोनों का अपहरण न करना और भी भारी पड़ गया। मिस मोनिका, कल से आप एसआई ऋषभ के साथ गृहस्थी बसाने के लिए स्वतंत्र हैं पर आज हमें हमारे सारे जाँबाज आफिसर और सिपाहियों की जरूरत हैं इसलिए आज आपका इस्तीफा मंजूर नहीं किया जाएगा। एनी प्राॅब्लम ?"

"नो सर।" मोनिका ने जवाब दिया।

"कम आॅन एवरीबडी।" कहकर इंस्पेक्टरभदोरिया किले से बाहर निकल गया और उसके पीछे पूरी पुलिस फोर्स भी बाहर निकल गई।

............

"अब कैसा लग रहा हैं ?" ऋषभ के आँखें खोलते हीं पलंग पर उसके पैरों के पास बैठी मोनिका ने पूछा।

"पहले से बेहतर लग रहा हैं।" ऋषभ ने लेटे-लेटे हीं जवाब दिया।

"आपको पता हैं, कल रात को आपको जिस बदमाश के रिवाल्वर से चली गोली लगी थीं, वो इस इलाके का मोस्ट वांटेड क्रिमिनल था और उस पर पुलिस ने पाँच लाख रुपये का इनाम रखा था ?"

"यानि, वो बब्बन धारपुरिया था ?"

"हाँ।"

"वो अरेस्ट तो हो गया न ?"

"किसी की डैड बाॅडी को अरेस्ट करने के लिए पुलिस फोर्स आॅथोराइज्ड होती तो उसे जरूर अरेस्ट कर लिया जाता, पर पुलिस को ऐसी अथार्टी नही हैं, इसलिए उसे उसके सात साथियों की तरह अरेस्ट न करके उसके बाईस साथियों की तरह पीएम के लिए भेज दिया गया।"

"आप सीधी तरह से भी तो बता सकती थीं न कि वो रात को एनकाउंटर में मारा गया ?"

"हाँ, बट मुझे टेढ़े लोगों के साथ रह-रहकर टेढ़े-मेढ़े ढंग से बात करने की आदत पड़ चुकी हैं।"

"आप किसकी बात कर रही हैं ?"

"उनकी, जिन्होंने बब्बन का एनकाउंटर करते समय उसकी गोली से जख्मी हो जाने के बावजूद उसके सीने में एक गोली उतारकर उसे यमलोक पहुँचा दिया।"

"और ये बब्बन के सीने में गोली उतारी किसने ?"

"तो क्या आपको ये याद नहीं हैं कि आपने बेहोश होकर गिरने से पहले एक गोली सीधे बब्बन के हार्ट पर मारी थीं ?"

"मुझे ये तो याद हैं कि मैंने अपनी चेतना खोने से पहले मेरे कंधे पर गोली मारनेवाले शख्स के बाये सीने को टाॅरगेट करके फायर किया था, पर मेरी उस लास्ट फायरिंग का नतीजा क्या हुआ, ये मुझे नहीं पता था क्योंकि मैं फायर करते हीं अपनी चेतना खो चुका था।"

"तब तो आपको ये भी याद नहीं होगा कि आपके अचेत होकर गिरते समय मैंने जाकर अपनी बाँहों थाम लिया था ?"

"नहीं ।"

"यानि, दोनों तरफ से हो रही ताबड़-तोड़ फायरिंग के बीच जाकर आपको सम्भालने का मुझे कोई बेनीफिट नहीं मिला ?"

"बेनीफिट क्यों नहीं मिला ?"

"क्या बेनीफिट मिला ?"

"अब तो मैं जान गया हूँ न कि मुझे बचाने के लिए आपने अपनी जान जोखिम में डाल दीं थीं।"

"अरे हाँ, बट आफ्टर आल मुझे इसका बेनीफिट क्या मिला ?"

"इसका आपको बेनीफिट ये मिला कि आपकी च्वाइस की कोई एक मनपसंद गिफ्ट मुझ पर ड्यू हो गई।"

"रियली ?"

"हाँ ।"

"तो आप मुझे मेरी च्वाइस के गिफ्ट के रूप में पूरे लाइफटाइम के लिए अपना हाथ दे दीजिए।"

"मिस मोनिका, हमारी कन्ट्री में लड़की, लड़के का हाथ नहीं माँगती बल्कि लड़का, लड़की का हाथ माँगता हैं।"

"जानती हूँ बट ये परम्परा तोड़ना मेरी मजबूरी हैं, क्योंकि यदि मैंने ये परम्परा नहीं तोड़ी तो मुझे लाइफटाइम के लिए कुँवारी रहना पड़ सकता हैं।"

"मोनिका जी, आप मुझे लाइटली लेने की सीरियस मिस्टेक कर रही हैं। जरा आप मेरे काॅलेज टाइम के दोस्तों से मिलकर पूछिए, तब आपको पता चलेगा कि मैं इश्क के मैदान का कितना बड़ा खिलाड़ी हूँ।"

"मुझे आपकी आशिकी के किस्से जानने के लिए किसी से मिलने की जरूरत नहीं हैं, क्योंकि मैं आपके काॅलेज टाइम के आशिकी के किस्से भी आपकी डायरी में पढ़ चुकी हूँ। आपने अपनी डायरी के पेज नम्बर फिफ्टी सेवन पर लिखा हैं कि आपको एक दिन अंकिता नाम की एक लड़की के वेलेनटाइन डे पर आपको प्रपोज करने की बात पता चली तो आप वेलेनटाइन डे पर काॅलेज हीं नहीं गए और आपने पेज नम्बर सिक्स्टी थ्री पर लिखा हैं कि आपके काॅलेज की निधि नाम की एक लड़की आपके पीछे पड़ गई थीं तो आपने रक्षाबंधन के दिन उसे एक पाॅर्क में कोई सरप्राईज देने की बात कहकर बुलाया और कहा, 'निधि, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, इसलिए मैं चाहता हूँ कि हम दोनों एक ऐसे रिश्ते की डोर से बँध जाए कि कोई हमें जुदा न कर पाए। क्या तुम भी यही चाहती हो ?' इसके बाद जब उस लड़की ने 'हाँ' कहा तो आपने अपनी जेब एक राखी निकालकर उसकी हथेली पर रखते हुए कहा, 'तो लो ये राखी और बाँध दो मेरी कलाई पर ताकि हम दोनों के कभी न टूटने वाले भाई-बहन के रिश्ते की डोर में बँध जाए।' ये सुनने के बाद उस लड़की ने वो राखी आपके मुँह मारकर आपको खूब सारी गालियाँ दी और पैर पटकती हुई चली गई। और कुछ किस्से याद दिलाऊँ या इतने काफी हैं ?"

"इतने हीं काफी हैं।"

"और अब आपका इश्क के मैदान के बड़े खिलाड़ी होने के बारे में क्या कहना हैं ?"

"यही कि 'हमें तो अपनी किश्ती ने डुबोया, दूसरों में कहाँ दम था। अपनी डायरी मैडम के हाथ न लगी होती तो हमारा भी लम्बी-लम्बी फेंकने का मन था।' साला, मुझे आज अपनी डायरी लिखने की आदत पर बहुत गुस्सा आ रहा हैं।"

"बट मुझे आपकी इस आदत पर बहुत प्यार आ रहा हैं और .......।"

"और ?"

"डायरी लिखनेवाले पर भी। कोई इतना क्यूट और इनोसेंट हो सकता हैं, ये मैं कभी सोच भी नहीं सकती थीं। मैंने वो डायरी पढ़ते ही डिसाइड कर लिया था कि मेरा लाइफ पार्टनर तो ........।"

"क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ?" इंस्पेक्टर भदोरिया का सवाल सुनकर मोनिका ने अपनी बात अधूरी छोड़ दीं और उठकर खड़ी हो गई।

"सर, आप अंदर आने के लिए पूछकर मुझे क्यों शर्मिन्दा कर रहे हैं ?" ऋषभ की प्रतिक्रिया मिलते ही इंस्पेक्टर भदोरिया अस्पताल के उस वार्ड अंदर दाखिल हो गया।


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