शांति टीचर
शांति टीचर
कक्षा सातवीं। संस्कृत वाली टीचर शांति के अंदर कदम रखते ही सारी कक्षा ने शांत हो कर अभिवादन किया। उनको प्रत्युत्तर देते हुए बैठने का संकेत कर स्वयं बैठ गई।
"बच्चों, आज आपको पर्चे दिए जाएंगे। आपकी गलतियों को भी मैंने रेखांकित करते हुए सही शब्द भी वहीं लिखा है। ध्यान दीजिए। अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयास कीजिए।" कहते हुए अध्यापिका छात्रों को बुला कर पर्चे देने लगीं।
"रंजन" अध्यापिका के बुलाने पर कोई नहीं आया तो उन्होंने नाम दोहराते हुए उस तरफ़ देखा, जहां वह बैठता है। बच्चे धीरे धीरे उसे पुकारने लगे। टीचर की नजर उस पर पड़ते ही वह धीरे से उठा और उनके पास आया।
"क्या हुआ, सुनाई नहीं दिया," कहते हुए उन्होंने पर्चा हाथ में दिया। उसे हाथ में लेकर बिना कुछ कहे अपनी जगह बैठ कर पर्चा खोला और अंक देखते ही वह उठ खड़ा हुआ।
"मिस, मुझे कम अंक क्यों दिए। मैंने तो सब उत्तर सही लिखे हैं।" शिकायती स्वर में बोला।
"पर्चा देखो रंजन। गलतियों के सही उत्तर भी वहीं लिखे हैं।" कहते हुए वह अपने काम में व्यस्त हो गईं।
रंजन खीझ कर अपनी जगह बैठ गया। इतने में घंटी बजी और टीचर बाहर चली गईं।
वह आधी छुट्टी का समय था और रंजन स्टाफ रूम की तरफ़ दौड़ा। उसकी मम्मी भी उसी स्कूल में अंग्रेजी की टीचर है। उसे देखते ही आरती टीचर बाहर आई और पूछा "क्या बात है, खाया कि नहीं।"
"आप ये देखो पहले," रुआंसे स्वर में बोला रंजन।
"क्या है ये, हाय राम, इतने कम मार्क्स ! तूने तो कहा, बहुत अच्छा लिखा है, पूरे मार्क्स मिलेंगे। अब पापा से क्या कहोगे। वो तो तुम्हें छोड़ने वाले नहीं हैं।" बेटे को गुस्से से देखते हुए बोली।
वह उसी रुआंसे स्वर में बोला " मैं क्या करूं, मैं ने सब कुछ लिखा, पर मिस ने सारे मार्क्स काट दिए।"
"ठीक है, तू जा, क्लास में। मैं बात करती हूं।" कहते हुए बेटे का पर्चा लेकर स्टाफ रूम में बैठते हुए बोली
"कौन है मिस, यह नई संस्कृत वाली, कुछ भी लिखो
गलत कहती है। कमाल है, नई भाषा है, बच्चे कैसे पढ लेते? पूरा पेपर रेड पेन से अंडरलाइन करती जाती। ऐसे दिखता है जैसे बच्चे ने कुछ भी सही नहीं लिखा हो। आज टाइम नहीं है, कल ज़रूर बात करुंगी।" कहते हुए घंटी बजने पर क्लास में चली गई।
बाकी टीचर्स हंसने लगे। तभी हिंदी टीचर रश्मी बोल पड़ी, "देखो, खुद तो बच्चों को मार्क्स नहीं देती, कम से कम पूछने पर भी नहीं समझाती। आज उनके लड़के को कम अंक मिले तो कैसे बोल रही है।"
साइन्स टीचर बोली, "उनके बच्चे को मार्क्स देने तक
पीछे लग जाती। नहीं दिए तो हमारी बुराई करने से भी नहीं चूकती।"
"वही अपने बच्चे को बिगाड़ रही है। उसके कारण ही
रंजन टीचर्स के प्रति आदर नहीं रखता और बच्चों पर रौब करता है।" सोशल टीचर ने कहा। इतने में मैडम को राउन्ड्स पर आते देख सब अपना काम करने लगे।
अगले दिन संस्कृत अध्यापिका शांति पर्चे वापस लेने लगी तो रंजन ने बताया कि उसकी मम्मी बात करना चाहती है।
उस दिन आधी छुट्टी के समय वह अपना काम कर रही थी कि आरती टीचर वहां आई और पेपर टेबल पर रख कर बोली "क्या मिस, कैसे मार्क्स दिए। बच्चे ने सब कुछ तो लिखा है। देखकर मार्क्स डालिए।"
शांति टीचर ने उसकी ओर देखते हुए कहा "मिस, जो
गलतियां हैं, उसके अनुसार अंक काटे हैं। रेखांकित कर सही उत्तर भी लिखे गए हैं। अब आप को और किस बात की शंका है।"
इतने में कुछ बच्चे टीचर से कुछ समझने आए
तो संस्कृत टीचर उन्हें समझाने लगी। यह देखकर आरती टीचर का क्रोध बढ़ गया " टीचर आप अपने सब्जेक्ट को महान और अपने को पंडित समझते हो
किसी की बात का कद्र नहीं करते। मैं प्रिंसिपल को कंप्लेंट करने वाली हूं। वह बोलेंगी तो तब कैसे नहीं बढाओगे, देखती हूं।"
शांति टीचर बोली "जब आपके लिए इस सब्जेक्ट का कोई महत्व ही नहीं, तो फिर मार्क्स की फ़िक्र किसलिए !"
"मेरा बेटा उसके पापा के डर से रात को खाना नहीं खाया। उसके पापा को कम मार्क्स लाना पसंद नहीं।
इसलिए पूछ रही हूं। वरना मुझे इस सब्जेक्ट में कोई
दिलचस्पी नहीं।" आरती टीचर मुंह लाल करके बोली और गुस्से से चली गई।
थोड़ी देर बाद शांति टीचर को प्रिंसिपल से बुलावा आया। शांति टीचर उनसे मिलने गई। उन्होंने टीचर से पूरी बात बताने को कहा।
शांति ने पूरी बात बताकर कहा "मिस, आप बोलें तो मैं अंक बढ़ा कर दे दूंगी, लेकिन पर्चे में अंक नहीं बढ़ा सकती।" कह कर चुप हो गई।
वे बोलीं " नहीं शांति, आप अपनी बात पर ही रहो। अंक बढ़ाने की जरूरत नहीं !" बोले।
"धन्यवाद मिस। चाहें तो मैं उस लड़के को पढ़ाऊंगी।
उसकी शंकाएं दूर करूंगी। " नम्रता से बोली शांति टीचर।
"ठीक है आप जाइए। मैं उनसे बात करूंगी। आप चिंता मत करो।" कहकर उन्होंने टीचर को भेज दिया।
शांति टीचर मन ही मन खुश हुई कि मिस ने उसकी बात को समझा।
अगले दिन रंजन पर्चा लेकर आया और टीचर से क्षमा मांगते हुए वापस किया।