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Samrat Singh

Inspirational

5.0  

Samrat Singh

Inspirational

एक मुलाकात

एक मुलाकात

4 mins
373


बात कुछ साल पहले की है यानी पांच से छै साल पुरानी। जब मैं लखनऊ में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता था। आरे हा वही लखनऊ जिसे लोग नबाबों का शहर भी कहते हैं । यह शहर उत्तर प्रदेश की राजधानी और तहजीब और तमीज की जगह भी है। वैसे तो ये शहर बहुत ही खुशमिजाज है और प्रमुख वाक्य भी है "मुस्कराइए की आप लखनऊ में है"। पर मैं यहाँ लखनऊ की ख़ूबशूरती और जिंदादिली नही बल्कि अपने एक अनोखे अनुभव को बताने वाला हूँ।

तो आइए शुरू करते हैं सफर, लखनऊ का अटल चौराहा जो तब हजरत गंज चौराहा हुआ करता था। पूरे लखनऊ के सबसे व्यस्त जगहों में से एक। उसके कुछ ही दूरी पर एक पार्क है जिसे सरदार बल्लभ भाई पटेल पार्क के नाम से जाना जाता है पार्क के दोनों तरफ चौड़ी चौड़ी सड़कें हैं एक तरफ हजरत गंज चौराहा और एक तरफ बड़ा सा डाक घर एक तरफ एक चर्च और एक तरफ एक छोटा सा मंदिर जो कि पार्क से बिल्कुल लगा हुआ है। कहानी वही मंदिर के पीछे पार्क की है वैसे पार्क की हालत कुछ ठीक नही है क्योंकि वहाँ पर बहुत कम ही लोग आते है। बैठने की बेंच कही कही टूटी हुई है। बात है गर्मी के दिनों की भयंकर गर्मी पड़ रही थी बहुत कम लोग ही बाहर दोपहर में निकल पा रहे थे। बहुत ज्यादा गर्मी होने के वजह से मैं भी उसी पार्क में अनायास ही चला गया। शीतल हवा और वृक्ष की छाया भयंकर गर्मी में बहुत ही आनंददायक प्रतीत हो रहे थे।

मुझे वहाँ बैठे बस कुछ ही समय हुआ था कि करीब पांच साल का एक लड़का मेरे पास आया और बोला बाबू जूते पॉलिश कर दूं। मैंने उसे मना किया क्योंकि मैं फॉर्मल जूते नही पहना था और वह चला गया, मैं शीतल हवा के मजे लेने लगा। करीब 10 मिनट बाद वो लड़का फिर आया और उसने फिर मुझसे यही प्रश्न किया। इस बार मैं उससे बात करने के लिए उससे बात करने की कोशिश की। मैंने उससे पूछा कि ये काम क्यों करते हो ।वो नन्हा बालक मेरे सामने हिमालय सा खड़ा मेरे प्रश्नों का जबाब देने लगा।

मैं -  ये काम क्यों करते हो..?

बालक- गरीब हु न साहब इस लिए करना पड़ता है 

मैं-   पढ़ाई नही करते..?

बालक-  करता हूँ, इससे किताब कॉपी और खाना सबका खर्च चलता है।

मैं-  आज स्कूल नही गए..?

बालक- आ गया हूं स्कूल मॉर्निंग चल रहा है।

मैं-  तो पढ़ाई कब करते हो...?

बालक- रात में ।

मैं-  अच्छा कितना कमाते हो...?

बालक-  एक आदमी से 10 रुपए किस्मत अच्छी रही तो 100 नही तो किसी किसी दिन एक भी नही।

मैं-    पढ़ कर क्या करोगे...?

बालक-  मैं बड़ा हो कर एक ईमानदार पुलिस वाला बनूँगा और चोरों को पकडूँगा।

मैं-   मम्मी पापा क्या करते है...?

बालक- पापा कहाँ हैं पता नही..? मम्मी बोलती हैं कि पापा ने उन्हें घर से निकाल दिया (और लड़का भावुक हो जाता है)।

मैं फिर उससे आगे प्रश्न पूछने की हिम्मत नही जुटा पाया क्योंकि परिस्थिति बस वो लड़का उस उम्र में काम करने के लिए मजबूर है जिस उम्र में और लड़के खिलौनों के साथ खेलते हैं

किंतु उसका आत्मविश्वास हिमालय सा मजबूत, दृढ़,अविचल और टिकाऊ है। उसके माशूम आखों में कितने सपने हैं जिसे पूरा करने के लिए वह रोज सुबह स्कूल, दोपहर की दहकती धूप में नंगे पांव काम और भविष्य के सपनों के लिए रात को पढ़ाई करता है। और वो भी इतने कच्चे उम्र में उसे कितना समय ने समझदार बना दिया है।

उसको देखने के बाद मेरे मन में ये ख्याल बार बार आता रहता है कि हमारे जीवन मे कितनी सुविधा है कितना आराम है फिर भी हम कुछ न कुछ कमी निकाल कर रोते रहते हैं और एक वो बालक जिसे रोज खाने के लिए रोज कमाना पड़ता है फिर भी खुश है और अपने मे मगन है कभी किसी को कुछ भी दोष नही देता। न अपने भाग्य को न अपने पिता को न अपने माता को बल्कि वो तो अपने भाग्य को बदलने के लिए दिन प्रति दिन काम कर रहा है। 

ऐसे ही लोग मिट्टी से निकले हुए खरे सोने बनते हैं। और देश का नाम मेहनत और ईमानदारी से विश्व पटल पर रौशन करते हैं।

मैं भी उस बालक को 10 रुपये दिए और उसके भविष्य के लिए कामना किया तब तक गर्मी कुछ कम हो गई थी और मैं अपने घर वापस आ गया। उस बालक से हुई मेरी वो पहली और आखरी मुलाकात थी पर जीवन में बदलाव बहुत आए उसके मिलने के बाद।

आज भी जब कभी मैं किसी मुश्किल में रहता हूँ तो उसी लड़के की याद आती है और मुझे सहसा एक विस्वास आता है कि जो भी बुरा हो रहा वो एक न एक दिन अच्छे में जरूर बदल जाएगा। बस उम्मीद और अपने पर विश्वास रखो।


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