हत्यारे
हत्यारे
अख़बार खोलते ही जिस समाचार पर नजर पड़ी उसने घोर सदमे में डाल दिया। मेरा स्टूडेंट अमन अब इस दुनिया में नहीं रहा। रह - रह कर उसका चेहरा आंखों के आगे नाच रहा था। मैंने उसे दसवीं में हिंदी पढ़ाया था। उसके अक्षरों से ही समझ में आता था कि वह बेहद कल्पनाशील था। तीक्ष्ण दिमाग और लिखने की गति में असहयोग होने से अक्षर अच्छे ना बनते थे उसके। मैं अक्सर स्टाफ रूम में बुलाकर उससे कुछ लिखवाया करती। उसने कभी भी बहाना नहीं किया। जहां और बच्चे टीचर्स को देख कर भागते थे वहीं वह शालीनता के साथ हमारे बोलने की प्रतीक्षा करता।
उस जैसे बच्चे को भला क्या परेशानी हो सकती थी। बचपन से हर कक्षा में प्रथम आना जैसे उसका आधिपत्य हो। स्वभाव में शीलता, व्ययहार में विनम्रता ये सब उसके चरित्र में शामिल था। फिर क्या हुआ था आखिर ?
जब अपने ही दूसरे विद्यार्थी को फोन मिलाया तो उसने एक नहीं अनेकों ऐसी बातें बताई जो कईयों को कटघरों में खड़ा करती थीं। उसने शहर के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज की छत से छलांग लगाई थी। उससे ठीक एक घंटे पहले इंटर्नशिप के लिए विदेशी अतिप्रतिष्ठित कंपनी का एंट्रेंस फार्म भरा था। पिछली छुट्टियों में भी घर ना जाकर पढ़ाई करता रहा। दोस्तों में घूमना, मज़े करना इत्यादि उसका स्वभाव ना था। आखिर क्या वजह हो सकती है उसके असमय तिलांजलि की। सोच - सोच कर मेरी रूह कांप जाती है। कैसे किसी मां का लाल धरती में समा जाता है। आखिर इन प्यारे मासूमों का हत्यारा कौन है ?
उसको अकेले घूमता देख कर भी किसी ने ना सोचा कि वह बेहद तनाव में था। जीनियस बच्चे यूहीं अकेले रहते हैंशायद साथियों ने ये सोचा। दोस्तों में घूम कर समय बर्बाद नहीं करता अध्यापकों ने ये सोचा। घर ना आकर बेटा पढ़ रहा है अभिभावकों ने ये सोचा। आख़िरकार वो या उस जैसे ब्रिलियंट बच्चे जब किन्हीं कारणों से दुनियाँ छोड़ देते हैं तो हर जानकार यही कहता है कि आज जिंदा होता तो देश का कितना नाम करता। बड़े - बड़े काम करता। गौर करें,
"बेटा हमारा बड़ा काम करेगा !"
हमारे लाडले-लाडलियों पर अतिरिक्त दबाव तो नहीं बना रहे हैं ?
शायद यही सोच, यही दवाब, यही जिम्मेदारी उनके मौत का कारण बनती है। उसकी या उस जैसे बच्चों के हत्यारे हम और हमारी यही सोच है।