Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Divik Ramesh

Children

2.1  

Divik Ramesh

Children

लूलू की सनक

लूलू की सनक

9 mins
22.1K


लूलू अपना हर काम ख़ुशी -ख़ुशी  करता। सब उसकी प्रशंसा करते। माँ ख़ुश होती। आँखें छलछला उठतीं। भगवान को धन्यवाद देती। लूलू को सब प्यार करते। लूलू को अब जेबख़र्ची भी अच्छी-ख़ासी मिलती। टोका-टोकी भी कम होती। लूलू भी ख़ुश हो जाता।

 

सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। पता नहीं कैसे लूलू को हर वक़्त चिप्स खाने की लत लग गई। जब देखो तब चिप्स ही खाता। चिप्स की टोह में ही लगा रहाता। जेब ख़र्ची भी चिप्स पर ही ख़र्च करने लगा। माँ अच्छा-अच्छा पौष्टिक खाना बनाती। पर लूलू को तो उसे देखने तक का मन न होता। उसे तो बस चिप्स की ही रट लगी रहती। वह भी मसालेदार चिप्स की। माँ समझाती पर हार कर उसे चिप्स ही देने पड़ते। कुछ तो खाऐ। शायद ठीक हो जाऐ । कुछ दिन तो ऐसा चलता रहा लेकिन अब माँ की चिन्ता बढ़ने लगी। एक दिन फिर माँ को लूलू को अच्छे से समझाने की कोशिश की, " देख लूलू मैं तुझे चिप्स खाने से रोकती नहीं। पर हर वक़्त चिप्स खाना सेहत के लिऐ ठीक नहीं। सबकुछ खाना चाहिऐ। हर चीज़ के कुछ न कुछ गुण होते हैं।" लूलू सुनता लेकिन माँ की बात को कोरा उपदेश मानकर अनसुनी कर देता। माँ को कुछ समझ नहीं अता। बस परेशान रहती। और सोच में पड़ी रहती।

 

स्कूल जाता तो भी लूलू लड़ झगड़ कर चिप्स ही ले जाता। लंच के लिऐ। माँ ने कई बार कुछ और देने की कोशिश की पर वह उसे वैसा का वैसा वापिस ले आता। मुँह तक नहीं लगाता। माँ समझाती, "लूलू तेरे लिऐ कितने प्यार से बनाया है। तू खाकर तो देख। न अच्छा लगे तो मत खाना।" पर लूलू के कान पर तो जूँ तक नहीं रेंगती। माँ की बात को अनसुनी कर देता। माँ ज़्यादा कहती तो रोने लगता। रूठ जाता। उसे तो बस चिप्स ही चाहिऐ थे। ऊबता भी नहीं था। अब तो उसकी सेहत पर भी बुरा असर पड़ने लगा था। माँ परेशान हो गई। चिप्स तो और बच्चे भी खाते थे और स्कूल भी ले जाते थे पर कभी-कभार।

 

एक दिन तो स्कूल से भी शिकायत आ गई। लिखा था कि लूलू अपने चिप्स खाकर और बच्चों के भी चिप्स चट कर जाता है। कभी चुराकर तो कभी छीनकर। ‘हे राम!’ - माँ के मुँह से निकला। इस शिकायत ने तो माँ को हिला ही दिया। वह सोचती कि लूलू को किसी की बुरी नज़र लग गई है। पुराने विचारों की जो ठहरी। उसे  कहाँ मालूम था कि बुरी नज़र-वजर कुछ नहीं होती।

     

इस बार वह ख़ुद टीलू की माँ के पास गई। अपनी सारी परेशानी बताई। टीलू की माँ भी चिन्ता में पड़ गई। पर थोड़ी देर को ही। वह मुस्कराई और उसकी आँखों में चमक भी आ गई। लूलू की माँ समझ गई। ज़रूर टीलू की माँ को कोई तरक़ीब सूझ गई है। बात सही भी निकली। टीलू की माँ ने लूलू की माँ को उसके कान में एक तरक़ीब बताई। लूलू की माँ ख़ुश हो गई।

 

अगले दिन लूलू की माँ भी लूलू के साथ उसके स्कूल गई। अकेले में टीचर जी से मिली। उन्हें टीलू की माँ की बताई तरक़ीब बताई। टीचर जी भी ख़ुश हो गई। माँ घर लौट गई।

 

लंच का समय हुआ। लूलू ने अपना टिफिन बॉक्स खोला। यह क्या! वह तो खाली था। उसमें तो एक भी चिप्स नहीं था। लूलू का माथा चकराया। उसे अच्छी तरह याद था कि उसकी माँ ने तो ढ़ेर सारे चिप्स दिऐ थे। उसने खाऐ भी नहीं। फिर कहाँ गायब हो गऐ।

 

बच्चे अपना-अपना लंच खा रहे थे। ख़ूब मज़े से। लूलू बस ताक रहा था। बेचारा लूलू! क्या करे वह? वह उठा और टीचर जी के पास गया। वह भी लंच खा रही थीं। लूलू ने कहा, "टीचर जी मेरा टिफिन खाली है। पता नहीं मेरे चिप्स कहाँ गायब गऐ।" टीचर ने रूखे स्वर में कहा, "तो मैं क्या करूँ?" "मुझे बहुत भूख लगी है।" - लूलू ने रुआँसा होकर कहा। "ठीक है, मैं बच्चों से पूछती हूँ ।" - टीचर ने कहा और बच्चों से पूछा, "क्या तुमने लूलू के चिप्स लिऐ हैं?" "नहीं मैम। लूलू तो खुद चोर है। कभी कभी हमारे चिप्स छीन भी लेता है। देख लीजिऐ हमारे टिफिन। हमने तो चिप्स लाने ही छोड़ दिऐ ।" - बच्चों ने कहा। "सुन लिया लूलू।" - मैडम ने कहा।

 

लूलू को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। भूख थी कि उसे तड़पा रही थी। बहुत ही बेचैन कर रही थी। उसने टीचर से फिर कहा, "मुझे बहुत भूख लगी है टीचर जी! मैं क्या करूँ?" "देखो लू लू, मैं भी क्या करूँ? तुम तो बस चिप्स ही खाते हो और यहाँ  किसी के पास चिप्स नहीं हैं। अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ ? हाँ मेरे पास यह गोभी का पराठा है। चाहो तो यह खा सकते हो।" - लाचारी के स्वर में टीचर ने गोभी का पराठा उस की ओर बढ़ाते हुऐ  कहा कहा। सब बच्चे चुपचाप देख रहे थे। लूलू की एक बार तो नाक-भौंह सिकुड़ गई। लेकिन भूख के आगे उसका वश नहीं चल रहा था। सो पराठा ले लिया और खाने लगा। यह क्या? पराठा खाकर तो उसे मज़ा आ गया। उसने सोचा तक न था कि पराठा इतना स्वादिष्ट हो सकता है। कितनी ही बार तो उसकी माँ ने गोभी का पराठा खिलाने की कोशिश की थी पर वह तो मुँह तक नहीं लगाता  था। उसे कहाँ पता था कि आज वाला गोभी का पराठा भी उसकी माँ ही ने बनाया था, जिसे माँ ने ही टीचर को दिया था। टीचर ने देखा लूलू ने पूरा पराठा खा लिया था। लूलू ख़ुश भी नज़र आ रहा था। टीचर अपनी तरक़ीब पर ख़ुश थी। लेकिन थोड़ा उदास होकर बोली, "लूलू आज तो तुम्हें गोभी के पराठे से ही काम चलाना पड़ा न?" "हाँ मैडम। लेकिन मुझे बहुत मज़ा आया। अब तो मैं रोज़ बस गोभी का पराठा ही खाया करूँगा।" - लूलू ने कहा। बच्चे हैरान थे।

 

घर जाकर लूलू ने बस्ता रखते ही माँ से कहा, "माँ कल से मैं चिप्स नहीं ले जाऊँगा। मुझे गोभी का पराठा ही देना। अब मैं रोज़ गोभी का पराठा ही खाऊँगा। वह बहुत अच्छा होता है।" माँ ने ख़ुश होकर कहा, "ठीक है, ठीक है, पर तुझे गोभी का पराठा कहाँ से याद आ गया। तब लूलू ने स्कूल की पूरी बात बता दी - चिप्स गायब हो जाने से गोभी के पराठे तक की। माँ का तो ख़ुशी  का ठिकाना न रहा। टी लू की माँ की बताई तरक़ीब काम जो आ गई थी।

 

अगले दिन माँ ने गोभी का पराठा बना कर दिया। बच्चों ने देखा लूलू बहुत ख़ुश था। एक-दो बच्चे जो चिप्स लाऐ थे उनके चिप्स न तो चोरी हुऐ और न ही लूलू ने उन्हें छीना।

 

माँ को फिर परेशानी हुई। लूलू अब गोभी के पराठे के सिवा और कुछ नहीं खाता था। स्कूल में भी वह गोभी का पराठा ही ले जाता। माँ को फिर स्कूल जाना पड़ा। टीचर को बताया। सुनकर टीचर मुस्कुराई। बोली, “आप चिन्ता मत कीजिऐ । अब तो हमारे पास तरक़ीब है ही।" माँ घर चली आई।

 

अगले दिन लूलू ने जब अपना टिफिन बॉक्स खोला तो वह खाली था। लूलू को पक्का याद था कि माँ ने गोभी का पराठा उसके सामने रखा था। बाक़ी सब बच्चे मज़े-मज़े से खा रहे थे। किसी के पास भी गोभी का पराठा नहीं था।  मतलब किसी ने उसका पराठा चुराया भी नहीं था। फिर कहाँ गया। उसका तो सिर ही चकरा गया। क्या करे वह? भूख तो ज़ोर से लगनी ही थी, सो लगी। पेट में चूहे भी कूदने लगे।

 

गोभी के पराठे की महक उसके सिर में चक्कर लगा रही थी। बेचैनी बढ़ती जा रही थी। नहीं रहा गया तो जा पहुँचा टीचर के पास। रोना निकल रहा था। बोला, "मैम, मेरा टिफिन बॉक्स खाली है। माँ ने गोभी का पराठा दिया था। किसी बच्चे के पास भी नहीं है। मैं क्या करूँ?" उदास सा मुँह बनाकर टीचर ने कहा, "हाँ लूलू, गोभी का पराठा तो आज मेरे पास भी नहीं है। मैं अब क्या करूँ?" लूलू क्या बताता। चुप हो गया। पानी पिया, पर पेट के चूहे मानते तब न! उसका फिर रोना निकल आया।

 

लूलू को परेशान देखकर टीचर ने कहा, "लूलू तुम चाहो तो यह खा सकते हो।" लूलू ने देखा टीचर के हाथ में रोटी और दाल थी। एक बार तो लूलू के मन में आया कि मना कर दे। पर क्या करता। भूख जो सता रही थी। लाचार होकर रोटी और दाल ले ली। खाने लगा तो वह चौंक गया। बहुत ही स्वादिष्ट थी दाल और रोटी तो। वह तो मज़े-मज़े से पूरी खा गया। उसने सोचा अब वह रोज़ दाल-रोटी ही खाऐगा। और कुछ नहीं। टीचर ने  देखा वह बहुत ख़ुश था। टीचर भी ख़ुश हो गई।

 

घर आते ही लूलू ने माँ को दाल-रोटी खाने वाली स्कूल की सारी बात बताई। माँ ख़ुश हो गई। लूलू ने कहा, "माँ! माँ! अब से मैं बस दाल-रोटी ही खाऊँगा। मुझे बस दाल-रोटी ही देना। "अच्छा" कह कर माँ चुप हो गई। सोचा कैसा खब्ती बेटा है मेरा। पूरा सनकी है। पर बोली कुछ नहीं। दो-चार दिन तक लूलू दाल-रोटी पर ही पिला रहा। स्कूल भी दाल-रोटी ही ले जाता और मज़े-मज़े से खाता।

 

आज टीचर पहले ही से तैयार थी। जो घटना था वही घटा। लूलू का टिफिन बॉक्स फिर खाली था। और दाल-रोटी किसी के पास  नहीं थी। टीचर के पास भी नहीं। लूलू को भूख भी लगनी ही थी सो लगी। उसे टीचर से पूछना ही था सो पूछा- "अब मैं क्या करूँ?" तरक़ीब के अनुसार टीचर को लाचारी दिखानी  ही थी, सो दिखाई। बोली, "आज तो लूलू मेरे पास बस यह है - सैंडविच। खाना चाहो तो इसे खा लो।" लूलू ने सैंडविच खाया तो दंग रह गया। "इतना स्वादिष्ट होता है सैंडविच!" - उसने सोचा और पूरा का पूरा खा गया। टीचर ने उसे एक और सैंडविच दिया तो उसे भी खा गया। बहुत ही ख़ुश था वह। टीचर भी उसे ख़ुश देखकर ख़ुश हो गई। उसने अचानक कहा, "मैम मुझे तो पता ही नहीं था कि सैंडविच भी इतना मज़ेदार होता है। अब से मैं बस सैंडविच ही खा.......।" पर कहते कहते बीच में ही रुक गया। वह थोड़ा शर्मा भी रहा था और होठों से हँसी भी फूट रही थी।

 

टीचर को भी हँसी आ गई। बच्चों भी खिलखिला उठे। लूलू भी खुल कर हँस पड़ा। हँसी थमी तो टीचर बोली, "लूलू लगता है बात तुम्हारी समझ में आ गई है। दुनिया में एक से एक अच्छी चीज़ है खाने की। सबका अपना-अपना स्वाद है। सबके अपने-अपने गुण हैं। तुम एक ही चीज़ के पीछे पड़े रहोगे और दूसरी चीज़ें खाने की कोशिश भी नहीं करोगे तो कैसे पता चलेगा दूसरी चीज़ें कैसी हैं! सबकुछ खाने से ही अच्छी सेहत भी बनती है। देखो अब तुम पहले से ज़्यादा ताकतवर भी हो गऐ  हो।"

 

पता नहीं लूलू को टीचर की बात कितनी समझ में आई। पर उसे यह ज़रूर पता चल गया था कि उसे रोज़-रोज़ एक ही चीज़ खाने की ज़िद नहीं करनी चाहिऐ। चोरी करके या छीन कर भी नहीं। सब चीज़ें खानी चाहिऐ। जो भी माँ दे। माँ हमेशा अच्छी चीज़ें ही देती है। सब चीज़ें बहुत मज़ेदार होती हैं। ये बातें लूलू ने अपने एक दोस्त को भी बताई थी। चुपके से। पर मैंने भी तो चुपके से सुन ली थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Children