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यादों के धागे

यादों के धागे

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जब से सूरज थोड़ा गर्म होने लगा है और ठंड जाने लगी है ऊनी कपड़ों को पहनने का मन नहीं होता है तो सोचा चलो ऊनी कपड़ों को धूप दिखाकर बक्से में बंद कर दिया जाए। बक्सा क्या है पूरी यादों की पिटारी है खोलते ही उसमें दादी के हाथ की बनी पूजा की आसनी, बड़ी मौसी के हाथ का सूती धागों से बुना हुआ दोरंगा सुन्दर कलाकारी वाला ब्लाउज, ददिया सास की शादी के समय के लहंगा चोली के साथ संभाल कर रखी पुराने खतों की पोटली नजर आ गई। फैले हुए कपड़ों के बीच बैठ कर खत खोलकर पढ़ने के लोभ से खुद को रोक नहीं पाई। मन पाखी यादों के सफर पर चल पड़ा। अरे यह क्या यह तो उस आदिवासी बान्धवों के पत्र हैं जिनके लिये हम लोगों को समझाया गया था कि "सभी को जवाब देना। क्योंकि ये दिल के सच्चे और भोले लोग होते हैं आप लोगों के जवाब ना देने से उनके दिल टूट जाएंगे और आगे से वहां कोई जाएगा तो उसको अध्ययन में यह लोग कोई मदद नहीं करेंगे।" लंबे समय तक जवाब दिया भी खतों का आदान-प्रदान भी चला लेकिन वही समय के अंतराल के बाद धीमे-धीमे सब बंद हो गया और यह क्या यह तो पुरानी सहेलियों के खत हैं जिनमें जाने कितनी दिलों की बातें भरी हुई हैं। वह भी क्या दिन थे शुक्रगुजार हूं नयी तकनीक के फेसबुक का जिसने इतने समय बाद फिर से पुराने दोस्तों को मिला दिया। खत तो कभी पुरानी होते ही नहीं उनको जब भी पढ़ो तो फिर से नई ताजी यादों के साथ हाज़िर हो जाते हैं तभी खतों को पलटते हुए एक पुरानी शैली में लिखे खत पर नजर पड़ी "अरे यह तो दादी के हाथ का लिखा खत है जो उन्होंने पापा को लिखा था। कितनी घर परिवार की बुआ चाचा से जुड़ी बातें भरी हुई है खत में। अरे यह क्या यह तो नानी का खत है इसमें मेरे जन्म की खबर पा कर नानी ने बधाई संदेश भेजा है। मन खुशी से मुस्कुराने लगा। कितनी सुहानी यादें जुड़ी है इन खतों के साथ में। आज के समय में लिखना ज़रूर खत्म हो गया है लेकिन इन पुराने खतों के साथ यह सुनहरी यादें कभी खत्म नहीं होने वाली सोंचने लगी मैं और फिर तभी "अरे यह क्या शाम ढल गई चलो सब रखती हूं उठा कर।" फिर से यादों धागों को समेट दोबारा स्वंय देखने व भविष्य के नौनिहालो को दिखा कर यादें ताजा करने के लिए पोटली में बांध दिया ।



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