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Mohanjeet Kukreja

Drama Others

4.9  

Mohanjeet Kukreja

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"विष्णु का प्रतीक"

"विष्णु का प्रतीक"

10 mins
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【मूल कहानी - "दि मार्क ऑफ़ विष्णु"

मूल लेखक - "खुशवंत सिंह"

अंग्रेज़ी से अनुवाद - "मोहनजीत कुकरेजा"】

●【नोट : यह कहानी ( जिसमें लेखक ने अंधविश्वास को बड़ी ख़ूबसूरती से अपना निशाना बनाया है, अपने मूल रूप, अंग्रेज़ी में (दि मार्क ऑफ़ विष्णु), हाई-स्कूल के पाठ्यक्रम का हिस्सा थी; और इससे प्रभावित हो कर उन्हीं दिनों मोहनजीत ने इसका हिंदी में अनुवाद कर लिया था.

इसके प्रख्यात लेखक, स्वर्गीय खुशवंत सिंह ने इसे देखकर स्वयं मोहनजीत को लिखा था कि इसको किसी हिंदी पत्रिका में प्रकाशनार्थ भेज दिया जाए, क्यूँकि वे ख़ुद हिंदी नहीं पढ़ते थे!】●●●


"यह काले नाग के लिए है," गूंगा राम दूध को कटोरी में डालते हुए बोला, "रोज़ रात को मैं इसे दीवार के साथ वाले बिल के पास रखता हूँ, और सुबह यह कटोरी ख़ाली मिलती है."

"हो सकता है कोई बिल्ली हो," हम बच्चों ने विचार व्यक्त किया.

"बिल्ली?!" गूंगा राम उपेक्षा से बोला, "बिल के पास कोई बिल्ली फटकती भी नहीं. वहाँ काला नाग रहता है, और जब तक मैं उसे दूध देता रहूँगा वो इस घर में किसी को नहीं काटेगा. तुम लोग जहाँ चाहो, नंगे-पाँव घूम सकते हो, खेल सकते हो."


हम बच्चे गूंगा राम की बातों से कभी उत्साहित नहीं हुए!


"तुम एक मूर्ख ब्राह्मण हो," मैंने कहा, "क्या तुम्हे इतना भी नहीं पता कि साँप दूध नहीं पीते हैं... कम से कम एक साँप हर रोज़ कटोरी-भर दूध नहीं पी सकता है. हमारे अध्यापक ने हमें बताया है कि साँप कई दिन में एक बार भोजन करता है. हमने एक साँप देखा था जिसने एक मेंढक निगल लिया था, वो मेंढक उसके गले में एक गोले की तरह अटक गया था और उसे नीचे उतर कर हज़म होने में कई दिन लग गए थे. हमारे स्कूल की लैब, मतलब प्रयोगशाला, में दर्ज़नों साँप मेथिलेटेड स्प्रिट में सुरक्षित पड़े हैं!


पिछले महीने हमारे मास्टर जी ने किसी सपेरे से एक ऐसा साँप खरीदा था जो दोनों तरफ़ चल सकता था. उसकी पूँछ पर भी एक सिर और दो आँखें थीं! काश तुमने देखा होता... कितना मज़ा आया था, उसे कांच के एक घड़े में डालने में! प्रयोगशाला में कोई घड़ा ख़ाली न होने की वजह से उसे एक रस्सल्स वाइपर (एक विषैला साँप) वाले घड़े में डाल दिया गया था. मास्टर जी ने उसके दोनों सिर एक चिमटे से पकड़ कर उसे घड़े में डालते ही ढक्कन बंद कर दिया. उसके अन्दर जाते ही घड़े में जैसे तूफ़ान आ गया हो; और यह तूफ़ान तब तक शांत नहीं हुआ जब तक इस नए साँप ने उस सड़े-गले वाइपर के टुकड़े-टुकड़े नहीं कर दिए..."


गूंगा राम ने धर्मनिष्ठ भय से अपनी आँखें मूँद लीं, "तुम्हे एक दिन इस का हिसाब चुकाना होगा. हाँ, हाँ, ज़रूर चुकाना होगा!"


गूंगा राम से उलझना फ़िज़ूल था. वह एक धार्मिक प्रवृति वाले हिन्दू की भांति ब्रह्मा (विधाता), विष्णु (सरंक्षक) और शिव (विनाशक) में अटूट विश्वास रखता था. वैसे इनमे से वह विष्णु का ही परम भक्त था. अपने देवता की प्रसन्नता के लिए हर सुबह अपने माथे पर वह चन्दन के लेप से V चिन्ह बनाता था. एक ब्राह्मण होते हुए भी वह अनपढ़ और अन्धविश्वासी था. उसके लिए सभी प्राणी - भले ही कोई साँप, बिच्छू या कनखजूरा हो - पूजनीय थे.


कोई भी जीव दिखने पर वह उसे ढकेल कर भगा देता था ताकि हम उसे मार न दें. वह उन ततैयों की सेवा-सुश्रुषा करता था जो हमारे छिक्कों से अधमरे हुए होते थे. इस प्रयास में वह कई बार डंक भी खा चुका था, परन्तु उसकी आस्था थी कि टूटती नहीं थी! जितना अधिक कोई जीव ख़तरनाक होता, उतनी ही ज़्यादा श्रद्धा गूंगा राम की उसके प्रति होती. यही कारण था कि वह साँपों से इतना प्रेम करता था - कोबरा को इतना महत्व देता था. वही काला नाग था.


"हमें अगर काला नाग दिख गया तो हम उसे मार डालेंगें."

"मैं तुम्हे कदापि ऐसा न करने दूंगा... उसने पूरे सौ अंडे दिए हैं, और अगर तुम लोगों ने उसे मार दिया तो पूरा घर उन अंडों से निकले काले कोबरा साँपों से भर जाएगा. तब तुम लोग क्या करोगे?"

"हम उन्हें ज़िन्दा पकड़ कर मुंबई भेज देंगें. वहाँ उन्हें दूह कर उनसे साँप के काटने की ज़हर-नाशक दवा तैयार की जाती है. वे लोग एक साँप के दो रुपये देते हैं, और इस तरह हम सीधे दो सौ रुपये कमा लेंगें."

"तुम डॉक्टरों के थन होते होंगें! मैंने आज तक किसी साँप के तो देखे नहीं... किन्तु तुम लोग इस काले नाग को छूना भी मत. मैंने ख़ुद उसे देखा है, वो एक फनियर है, कोई तीन हाथ लम्बा, और उसका फन - अपनी दोनों हथेलियाँ खोले, इधर उधर लहराता हुआ वह बोला - ऐसा है! तुम कभी उसे घास पर धूप सेकते देखो तो पता चले..."

"बस, इसी से तुम्हारे झूठ का पता चलता है. फनियर साँप एक नर होता है, और एक नर ने अंडे दिए ही नहीं हो सकते... हाँ, यह हो सकता है वो अंडे तुम्हीं ने दिए हों!"

हमारी पूरी टोली के कहकहे गूँज उठे, "हाँ, गूंगा राम के ही अंडे होंगें, और अब जल्दी ही हमारे पास सौ गूंगा राम हो जाएंगें!"


गूंगा राम परास्त हो गया था. एक नौकर होने के नाते उसे अक्सर हार माननी पड़ती थी, परन्तु बच्चों द्वारा यूँ मज़ाक उड़ाया जाना काफ़ी बड़ी बात थी. अपने नित-नए विचारों से बच्चे उसे हमेशा अपमानित करते रहते! हम बच्चों ने कभी अपनी धर्म-पुस्तकें नहीं पढ़ी थीं, और न ही महात्मा गाँधी का अहिंसा का पाठ! अगर कुछ सीखा था तो पक्षियों को मार गिराना... और साँपों को मेथिलेटेड स्प्रिट में डुबोना.


गूंगा राम ज़िन्दगी की पवित्रता के अपने विश्वास पर अडिग था. वह साँपों को इसलिए खिलाता-पिलाता था कि पृथ्वी पर भगवान की सृष्टि में साँप दुष्टतम जीव है. ऐसे किसी प्राणी को मारने की बजाय उस से प्यार करना उसके उसी विश्वास की पुष्टि करता था...


मगर असल में गूंगा राम पता नहीं क्या साबित करना चाहता था, जिस के लिए वह 'रात को दूध की कटोरी साँप के बिल के पास रख, सुबह उसे ख़ाली पाना' पर्याप्त समझता था.


फिर एक दिन हमने काला नाग देखा!

रात को ही बारिश हुई थी, और वर्षा कालिक पवन (मॉनसून) अपने पूरे क्रोध के साथ जैसे फट पड़ी थी. जो धरती सूर्य की चिलचिलाती गर्मी से बिलकुल सूखी और निर्जीव पड़ गई थी, अब जीवन से भरपूर नज़र आ रही थी. छोटे-मोटे तालाब बने-खड्डों में मेंढक टर्रा रहे थे. कीचड़ से भरी ज़मीन रेंगते हुए कीड़ों, कनखजूरों, इन्द्रगोप इत्यादि से अटी पड़ी थी. घास तथा केले के पत्ते हरे होकर दमक रहे थे.


बारिश से काले नाग की बिल में पानी भर गया था, और अब वो खुले में घास पर बैठा था. उसका चमकीला, काला फन धूप में और भी चमचमा रहा था. काफ़ी बड़ा साँप था - क़रीब छ: फुट लम्बा, और काफ़ी मोटा - मेरी कलाई जितना!


"लगता है, यही कोबरा-राज है, चलो इसे पकड़ें."

उसे बचने का ज़्यादा अवसर नहीं मिला; ज़मीन पर फ़िसलन थी, और सब छोटे-बड़े छेद और बिल पानी से भरे पड़े थे. गूंगा राम भी उसकी मदद के लिए घर पर न था!


इससे पहले कि काला नाग खतरे का आभास कर पाता, बाँस की लम्बी छड़ियाँ हाथों में लिए हमने उसे घेर लिया था. हमें देख कर उसकी आँखें लाल-सुर्ख़ हो आयीं थीं. उसने चारों ओर घूम कर फुंकारना व ज़हर उगलना शुरू कर दिया था. फिर वो बिजली की सी तेज़ी से पास के केले के पेड़ों के झुण्ड की तरफ़ लपका!


कीचड़ कुछ ज़्यादा ही था, और वो ज़मीन पर फ़िसलता जा रहा था. उसने मुश्किल से पांच गज़ का फासला तय किया होगा कि एक लाठी के प्रहार ने उसकी कमर तोड़ दी. उसके बाद तो लाठियों-छड़ियों की बौछार ने उसे ख़ून और कीचड से सने एक काले-सफ़ेद गुद्दे में बदल दिया. लेकिन उसका सिर अभी भी सलामत था!


"इसके फन को चोट नहीं पहुँचाना," हम में से कोई चिल्लाया, "इसे हम अपने स्कूल ले चलेंगें..."

अंत: हमने बाँस की एक छड़ी उसके पेट के नीचे सरकाई और एक सिरे से साँप को उठा लिया. बिस्कुट के एक बड़े ख़ाली कनस्तर में उसे डाल कर ऊपर से रस्सी बाँध दी. उस डिब्बे को हमने एक बिस्तर के नीचे छिपा दिया.


रात को मैं गूंगा राम के इर्द-गिर्द चक्कर काटता रहा - उसके कटोरी में दूध भरने के इंतजार में...

"क्या आज तुम काले नाग को दूध नहीं पिला रहे?"

"हाँ, पिला दूंगा! पर तुम जा कर सो जाओ." वह क्रुद्ध होकर बोला.

इस विषय को लेकर शायद वह और किसी वाद-विवाद में नहीं पड़ना चाहता था!

“अब उसे तुम्हारे दूध की कोई ज़रुरत नहीं पड़ेगी."

गूंगा राम एकदम थम गया, "क्यूँ?"

"ओह, कुछ नहीं, ऐसे ही! आसपास इतने सारे मेंढक हैं - उनका स्वाद तुम्हारे दिए दूध से तो अच्छा ही होगा. और फिर तुम उसमें शक्कर भी तो नहीं मिलाते!"


अगली सुबह गूंगा राम दूध से भरी कटोरी वापिस उठा लाया... वह नाराज़ तथा संदेहशील लग रहा था.

"मैंने कहा था ना साँप दूध से अधिक मेंढक पसंद करते हैं!"


फिर जब हम कपड़े बदल कर नाश्ता कर रहे थे, गूंगा राम हमारे पास मंडराता रहा. स्कूल-बस आ गई और हम वो कनस्तर उठाए मुश्किल से ही बस में चढ़ सके. बस के चलते ही हमने वो कनस्तर ऊपर उठा कर गूंगा राम को दिखाया और चिल्लाए, "यह रहा तुम्हारा काला नाग. इस डिब्बे में सुरक्षित! हम इसको स्प्रिट में डालने के लिए ले जा रहे हैं."


वह अवाक खड़ा दूर जाती बस को घूरता रहा...


स्कूल में काफ़ी उत्तेजना थी.

हम चार भाई थे... और अपनी निष्ठुरता के लिए माने हुए. आज फिर से हमने यह साबित कर दिखाया था.."कोबरा - साँपों का राजा!"

"छ: फुट लम्बा!!"

"फनियर!!!"


कनस्तर विज्ञान के अध्यापक के सुपुर्द कर दिया गया.


अब वो उनकी मेज़ के ऊपर पड़ा था और हम उसके खोले जाने के इंतजार में थे ताकि अध्यापक महोदय हमारे 'शिकार' की प्रशंसा करें. परन्तु मास्टर जी भी पूरी कोशिश कर रहे थे इस ओर से उदासीन दिखने की! उन्होंने हमें कुछ कठिन प्रश्न हल करने को दे दिए. फिर बड़ी सतर्कता से उन्होंने एक चिमटी और एक कांच का घड़ा उठाया, जिसमे पहले से ही एक करेट (एक तरह का साँप) स्प्रिट में गठड़ी बना पडा हुआ था. उन्होंने गुनगुनाते हुए कनस्तर की रस्सी को खोलना शुरू किया.


रस्सी ढीली होते ही ढक्कन मास्टर जी की नाक के बिलकुल नज़दीक से होकर उछला. अन्दर काला नाग मौजूद था. उसकी ऑंखें अंगारों के समान दहक रही थीं, और उसका तना हुआ फन पूर्णतया सही-सलामत था. एक ज़ोर की फुंकार के साथ वो मास्टर जी के चेहरे की तरफ़ लपका. उन्होंने ख़ुद को पीछे धकेला और कुर्सी के ऊपर से होकर पीछे ज़मीन पर लुढ़क गए. अब एक बुत की तरह वहाँ पड़े हुए फटी और भयभीत आँखों से वे उस नाग को घूर रहे थे. लड़के अपने-अपने डेस्कों के ऊपर चढ़ चुके थे, और डर से हिस्टीरिया के रोगियों की तरह चिल्ला रहे थे.


काले नाग ने रक्त-रंजित निगाहों से स्थिति का निरिक्षण किया. उसकी शूल सी जीभ आवेश में मुंह के अन्दर-बाहर हो रही थी. उसने प्रचंडता से थूक कर अपने आज़ाद होने का उपक्रम किया. फिर पूरा ज़ोर लगा कर वो छपाक की आवाज़ करते हुए कनस्तर में से निकल फर्श पर गिर पडा. उसकी कमर जगह-जगह से टूट चुकी थी; असहनीय पीड़ा से उसने ख़ुद को दरवाज़े की तरफ़ घसीटा. दहलीज़ के पास पहुँचते ही एक और ख़तरे से दो-चार होने के लिए उसे अपना फन उठा कर दोबारा खड़ा होना पड़ा...


कक्षा के बाहर हाथ में एक कटोरी और दूध से भरा जग लिए गूंगा राम खड़ा था!

साँप के थोडा पास आते ही वह अपने घुटनों पर झुका और कटोरी में दूध डाल कर दहलीज़ के पास रख दिया. फिर याचना के से अंदाज़ में हाथ बाँधे गूंगा राम ने क्षमा मांगते हुए अपना सिर ज़मीन पर झुकाया. अत्याधिक क्रोध से कोबरा फुंकारा, और गूंगा राम के सिर पर काट लिया!

फिर बड़ी कठिनाई से पूरा यत्न कर, अपने शरीर को घसीटते हुए, एक जलमार्ग (गटर) में घुस कर दृष्टि से ओझल हो गया...


गूंगा राम हाथों से अपना चेहरा ढके हुए धरती पर गिर पड़ा. वह दर्द से चिल्ला रहा था. विष ने उसे तत्काल अंधा कर दिया था!कुछ ही पलों में वो नीला-पीला पड़ गया, और उसके मुंह से झाग बहने लगी. उसके माथे पर ख़ून की छोटी-छोटी बूँदें नज़र आ रही थीं. मास्टर जी ने अपने रुमाल से उन्हें पोंछ दिया...


नीचे माथे पर काले नाग के विषैले दांतों से बना विष्णु का प्रतीक, V चिन्ह, अंकित था....!!


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