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Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Horror

4.4  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Horror

हॉरर स्टोरी

हॉरर स्टोरी

3 mins
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सलोनी की आँख खुली तो सब कुछ रोज जैसा ही लगा। जल्दी से नहा धो नाश्ता कर घर से बाहर निकली तो स्तब्ध रह गयी।

कार, बसों , दोपहिया से सड़क रोज की तरह खचाखच भरी हुयी थी। पर सब वाहन खाली खड़े थे। पूरी सड़क सुनसान सी थी।

दूर दूर तक कोई इंसान, जानवर या परिंदा नज़र नहीं आ रहा था। कँहा गए सब लोग? 

ऐसा लगा मानों दिल दिमाग काम नहीं कर रहे हैं। खुद को चिकोटी काटी की कंही ये सपना तो नहीं है। 

चिकोटी से दर्द हुवा तो पूरा शरीर ठन्डे पसीने से नहा गया। एक अनजाना सा डर दिलो दिमाग को घेरने लगा। 

माँ को फ़ोन लगाया तो बस घंटी बजती रही। पसीने से लथपथ हाथों से एक के बाद एक कई नंबर मिलाये पर किसी ने फ़ोन नहीं उठाया। 

अब डर उसकी नसों को फाड़ने लगा था। दौड़ कर वापस घर गयी। बिस्तर पर बैठ फफक फफक रोने लगी। 

बड़ी मुश्किल से दिन कटा तो इस उम्मीद से सो गयी की सुबह शायद सब कुछ सही होगा।

अगली सुबह नींद खुली तो उम्मीद जगी की शायद कल का दिन एक सपना ही था। 

जल्दी से काम निपटा कर तैयार हो बाहर निकली। पर इस बार तो सड़क देख कर चीख ही निकल गयी। 

भागी भागी घर को वापस घुसी और बिस्तर में रजाई ओढ़ कर लेट गयी। साँसे बहुत तेजी से चल रही थी। 

दिल मानो शरीर से बाहर निकलना चाहता था.. अब उसे लगा की वह पागल तो नहीं हो गयी.

सड़क का नजारा भूल ही नहीं पा रही थी जंहा कारे , बसें और बाकी सब वाहन रोज की तरह चल रहे थे पर सब पर इंसानो की जगह बैठे थे --

बड़े बड़े कॉकरोच।

अब उसका चेहरा डर से सफ़ेद हो चला था। उठ कर वाश बेसिन में मुँह हाथ धोने लगी तो शीशे पर अपना प्रतिबिम्ब देख चीख पड़ी. 

उसका चेहरा भी एक कॉक्रोच के चेहरे में बदल चूका था। अब तो उसका सर घूमने लगा। 

जल्दी से नींद की तीन चार गोलियां गटक कर वह बिना कुछ खाये सो गयी।

अगले दिन उठी तो उठने से पहले ही बुरी तरह डरी सहमी हो चली। 

पता नहीं आज का दिन कैसा होगा? नब्ज तेज हो गयी, दिल घबरा गया और ऐसे लगा जैसे शरीर से अन्तड़ियां बहार आ जाएंगी। 

बिना कुछ खाये पिए वो डर डर कर धीरे धीरे घर से बाहिर आयी। 

सामने जो देखा उससे देख कर आँखें फटी की फटी रह गयी। 

चारों तरफ तितलियाँ ही तितलियाँ थी। और लोग भी थे।

डरे सहमे इधर उधर भागते लोग पर कोई नहीं बच पा रहा था। 

हर इंसान काम से काम ३०० -४०० तितलियों से ढका हुआ था और तितलियाँ सब के शरीर से खून रस की तरह पी रही थी। 

इस बार वो वापस घर नहीं जा पायी। ..उसे भी अनगिनत तितलियों ने घेर लिया था जो आहिस्ता आहिस्ता उसके शरीर का कण कण चूस रही थी..

उसकी आँखे धीरे धीरे चिर निद्रा में मुंदने लगी!!!

तभी राहत की सांस वापस आयी जब कानों में माँ की कुड़मुड़ बड़बड़ सुनाई दी। "सलोनी ओ सलोनी अब उठ भी जा ! सूरज सर चढ़ आया है। ये क्या लच्छन हैं की रात भर अनापशनाप इंग्लिश फ़िल्में देखो और दिन भर सोये रहो। हमारे ज़माने में कोई ऐसा करता तो -- "


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