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नमक बेईमानी का

नमक बेईमानी का

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अरोड़ा साहब का कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का दिल्ली में बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो चीन के व्यापारियों से संपर्क करके उनसे कपड़ों के एक्सपोर्ट का आर्डर लेते, फिर अपनी फैक्ट्री में कपड़ों को बनवा कर चीन भेज देते। इस काम में अरोड़ा साहब को बहुत मुनाफ़ा होता था। उनकी इंपोर्ट और एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट में बहुत बड़ी पहुंच थी। अरोड़ा साहब इस बात का बराबर ख्याल रखते कि दिवाली या नए वर्ष के समय एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट के सरकारी कर्मचारियों के पास बख्शीश समय पर पहुंच जाए। ये अरोड़ा साहब की दिलदारी का ही प्रभाव था कि उनके एक कॉल के आते ही सरकारी कर्मचारी उनकी फाइल को आगे बढ़ा देते थे। इस कारण से अरोड़ा साहब अपने बिजनेस में काफी आगे निकल गए। उनके आगे बढ़ने में कुछ विश्वस्त कर्मचारियों का भी बहुत बड़ा योगदान था। उनका मैनेजर नीरज और क्लर्क सुभाष उनके प्रति बहुत ही वफ़ादार थे। अरोड़ा साहब भी अपने मैनेजर नीरज और अपने क्लर्क सुभाष पर बहुत विश्वास करते थे।

यह बात जग जाहिर है कि जब भी कोई व्यापारी अपने व्यापार में आगे बढ़ाना चाहता है कुछ गैर कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। अरोड़ा साहब की प्रगति से यह बात तो बिल्कुल साफ थी कि अरोड़ा साहब भी कुछ गैर कानूनी तौर तरीकों का इस्तेमाल करते थे। इंपोर्ट एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट में इस बात का बराबर ध्यान रखा जाता था कि किसी एक व्यापारी की धाक न चले। सरकार की तरफ से इस बात का दिशा निर्देश दिया जाता था कि सारे व्यापारियों को बराबर का मौका मिले। इधर अरोड़ा साहब अपनी पहुंच का इस्तेमाल अपनी सारी फाइलों को आगे बढ़ाने में बराबर कर रहे थे। जब भी उनकी एक फाइल आगे बढ़ जाती तो अपनी बाकी और फाइलों को अपनी आगे बढ़ी हुई फाइल के साथ लगवा देते। इस तरीके से एक ही बार में बहुत सारा काम करवा लेते।

अपनी इस तरह की क्रिया-पद्धति का इस्तेमाल करते हुए और अरोड़ा साहब ने अपने बिजनेस को बहुत ज्यादा फैला लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कपड़ों के व्यवसाय में उनके जितने भी प्रतिस्पर्धी थे उनको अरोड़ा साहब से जलन होने लगी। अरोड़ा साहब के प्रतिस्पर्धीयों ने एक्सपोर्ट इम्पोर्ट डिपार्टमेंट में कंप्लेंट कर दिया। अरोड़ा साहब के प्रतिस्पर्धीयों ने यह तर्क दिया कि एक बार में 10-12 फाइलें इकट्ठे आगे करा कर अरोड़ा साहब गैरकानूनी काम कर रहे हैं। साहब के लिए मुश्किल की घड़ी आ गई। किसी ने अरोड़ा साहब को बताया कि कोई एक सरकारी नोटिफिकेशन है जिसके हिसाब से यदि कोई संबंधित फाइलें हैं तो उन सारी संबंधित फाइलों को इकट्ठा लगाया जा सकता है। लेकिन मुश्किल बात यह थी कि वह नोटिफिकेशन लगभग 15 साल पहले आई थी। वो कब आई थी इसका पता लगाना मुश्किल था। अरोड़ा साहब के लिए उस नोटिफिकेशन का मिलना बहुत जरूरी था, लेकिन ये काम था बहुत कठिन। खैर इस काम को किसी भी हाल में होना ही था। अरोड़ा साहब को नीरज और सुभाष पर बहुत भरोसा था। उन्होंने अपने इस काम के लिए अपने मैनेजर नीरज और अपने क्लर्क सुभाष को लगाया। अरोड़ा साहब ने उन दोनों को काफी हिदायत दी यह बात किसी को भी मालूम नहीं चलनी चाहिए।

ये नीरज और सुभाष के लिए भी परीक्षा की घड़ी थी। सवाल ये था कि काम की शुरुआत कैसे की जाए? वह नोटिफिकेशन जो कि लगभग 15 साल पहले आया था, उसके बारे में तहकीकात कैसे की जाए? उन दोनों ने दिमाग लगाया। सबसे पहले रिकॉर्ड रूम जाकर जितनी फाइलें सरकारी डिपार्टमेंट में थी , उसकी तहकीकात शुरू करनी चाहिए। नीरज ने जाकर रिकॉर्ड रूम के इंचार्ज से उस नोटिफिकेशन के बारे में पूछा। रिकॉर्ड रूम के इंचार्ज ने कहा कि तकरीबन 7 साल पहले की सारी फाइलें और नोटिफिकेशन यहां से हटा दी जाती हैं। रिकॉर्ड रूम के इंचार्ज अहमद ने कहा कि आप जाकर फाइलिंग डिपार्टमेंट में पता कीजिए वहां पर हो सकता है कि आप तो कोई जानकारी मिल सके।

नीरज के पास कोई और उपाय नहीं था। वह फाइलिंग डिपार्टमेंट में गया। वहां जाने पर पता चला कि फाइलिंग डिपार्टमेंट का इंचार्ज अभी तक आया नहीं है। तकरीबन दिन के 11:30 बज गए थे और उस समय भी फाइलिंग डिपार्टमेंट का इंचार्ज नहीं आया था। सुभाष ने कहा; साहब इस डिपार्टमेंट का हाल भी हमारे ऑफ़िस के महेश जैसा है। नीरज भी हंसने लगा। उसके ऑफ़िस में महेश कभी भी 11:00 बजे से पहले नहीं आता था। नीरज ने खिसियाती हुई हंसी में कहा ; भाई महेश जैसे आदमी केवल हमारे ऑफ़िस में ही नहीं बल्कि हर जगह है। कामचोर लोगों की कोई कमी नहीं है। खैर अब काम आगे कैसे किया जाए?

सुभाष ने नीरज को सलाह दी कि फाइलिंग डिपार्टमेंट के किसी और क्लर्क से बातचीत की जाए। उन दोनों के पास कोई और उपाय नहीं था। वह दोनों फाइलिंग डिपार्टमेंट में दूसरे क्लर्क के पास गए और अपनी समस्या के बारे में बताया। उस क्लर्क ने कहा कि आप जो भी समस्या लेकर आए हैं उसका समाधान तो फाइलिंग डिपार्टमेंट में नहीं है। आपको लिस्टिंग डिपार्टमेंट में जाना चाहिए।

नीरज और सुभाष के सामने आशा की किरणें क्षीण होती जा रही थी। वह दोनों लिस्टिंग डिपार्टमेंट में गए। वहां पर जाकर तकरीबन 15 साल पहले आए नोटिफिकेशन के बारे में पूछताछ की। वहां पर उन लोगों को यह ज्ञात हुआ कि रिकॉर्ड डिपार्टमेंट में ही आदिल नाम का बहुत पुराना मुलाज़िम रहता है। वह आदिल ही उनकी सहायता कर सकता है।

दोनों वापस फिर रिकॉर्ड रूम में गए। उस रिकॉर्ड रूम में फाइलों के ढेर के पीछे आदिल मिला। आदिल से उन लोगों ने तकरीबन 15 साल पहले नोटिफिकेशन के बारे में पूछा। आदिल ने कहा कि वह यहां पर लगभग 12 साल से है। इस कारण से वह उन फाइलों के बारे में तो नहीं बता सकता है। हाँ इतना तो ज़रूर बता सकता है कि वह फाइलें लिस्टिंग ब्रांच में ही हो सकती है। आदिल ने बताया कि लिस्टिंग ब्रांच में ही इंटरनेट का नया ब्रांच खुला है। इंटरनेट ब्रांच में जितनी भी बंद हो चुकी फ़ाइलें हैं ,उनका साइबर रिकॉर्ड मौजूद है।

दोनों के सामने आशा की किरणें दिखाई पड़ने लगी। दोनों जाकर लिस्टिंग ब्रांच के साइबर सेल के बारे में तहकीकात करने लगे। साइबर सेल का ब्रांच दूसरी बिल्डिंग में था। सुभाष को रास्ता पता था। सुभाष के पीछे पीछे नीरज चलने लगा। वहां पर जाकर गेटकीपर ने बताया कि साइबर सेल तीसरी मंज़िल पर है। नीरज जाकर तीसरी मंज़िल पर साइबर सेल के बारे में पता किया, वहां पर ज्ञात हुआ कि वह दूसरी मंज़िल पर है। नीरज और सुभाष काफी चिढ़ गए थे। खैर जब दोनों दूसरी मंज़िल पर गए और साइबर सेल के बारे में तहकीकात की तो वहां पर एक महिला कर्मचारी मिली। उस महिला ने दुपट्टे नहीं डाल रखे थे। उसके कपड़ों के नीचे से उसका सारा बदन दिख रहा था। उस महिला कर्मचारी ने नीरज और सुभाष को बताया कि तीसरी मंज़िल पर ही पिछले साइड में छोटा सा साइबर सेल खुला है आप वहां जाकर तहकीकात कर सकते हैं। नीरज और सुभाष को ऐसा लगने लगा था कि शायद उन्हें वह नोटिफिकेशन मिल नहीं पाएगा। उस पर से उस महिला कर्मचारी की निर्लज्जता ने दोनों को और परेशान कर दिया। पता नहीं क्यों इन सरकारी डिपार्टमेंट में कोड ऑफ ड्रेस नहीं हैं। इस तरह तो मर्दों के ध्यान काम पर क्या खाक लगेगा? वो तो इन मैडम लोगों को निहारने में हीं लगे रहेंगे। सुभाष भी खिन्न हो चुका था। उसने खीजते हुए कहा, हम इतनी कोशिश कर रहें हैं फिर भी कुछ पता नहीं चल पा रहा है। किस तरह का डिपार्टमेंट है ये? किसी को ठीक से पता हीं नहीं है नोटिफिकेशन के बारे में? सारे के सारे लोगों का ध्यान तो बदन दिखाने और बदन निहारने में हीं लगा हुआ है। काम पे ध्यान क्या खाक लगेगा। पता नहीं किसी को नोटिफिकेशन के बारे जानकारी है भी या नहीं ? हताश हुए सुभाष को ढांढस बढ़ाते हुए नीरज ने कहा, कोई बात नहीं, हमारे हाथ में तो कर्म ही है। हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश ही कर सकते हैं। इतनी कोशिश कर ली, तो चल के बाहर ऊपर भी देख लेते हैं।

जब नीरज और सुभाष तीसरी मंज़िल की पिछली साइड में गए तो वहाँ दरवाज़े बंद मिले। निराशा के बादल दोनों के सामने छाने लगे। दोनों लौट ही रहे थे कि सुभाष के जान पहचान का कोई दूसरा क्लर्क मिला ।उसने बताया कि अभी 3 दिन पहले यह डिपार्टमेंट यहां से हटकर छठी मंज़िल पर चला गया है। आप दोनों को वहां जाना पड़ेगा।

नीरज और सुभाष काफी थक गए थे। दोनों ने नीचे आकर गर्म गरम चाय पी फिर छठी मंज़िल पर गए। छठी मंज़िल पे एक छोटा सा कमरा था और उस कमरे में एक पुरुष और 2 महिला कर्मचारी मिले। नीरज ने उनसे नोटिफिकेशन के बारे में पूछा तो उन लोगों ने बताया आप बिल्कुल ठीक जगह आए हैं ।लेकिन यहाँ पे सारे के सारे रिकॉर्ड हैं कहां? सारी फाइलों को लाइब्रेरी भेज दिया है।

इतनी ज्यादा दौड़ धूप से नीरज और सुभाष परेशान हो चुके थे। उन्होंने नीचे आकर फिर गरमा गरम चाय पी, समोसा खाया, और पहुंच गए लाइब्रेरी में । वहाँ पे दोनों नोटिफिकेशन के बारे में पता कर पता करने लगे। जब लाइब्रेरियन से नोटिफिकेशन के बारे में पूछा तो वहां बताया गया कि जितने भी पुराने नोटिफिकेशन है उसका प्रिंट आउट अब यहां से हटा दिया गया है और वो सारे के सारे प्रिंट आउट नई ब्रांच के कंप्यूटर सेल में मिलेंगे।

नीरज और सुभाष दोनो को गुस्सा आने लगा। पता नहीं ये किसने अरोड़ा साहब को नोटिफिकेशन के बारे में बता दिया। नोटिफिकेशन तो जैसे सुरसा का मुँह हो गया था। खत्म होने का नाम हीं नहीं ले रहा था। इधर इतनी दौड़ धूप से परेशान सुभाष ने कहा, अब रहने देते है, कल कोशिश करेंगे। नीरज ने झिड़क कर कहा, नहीं चलो अभी। सुभाष आराम करने लगा। नीरज ने कहा, इतने दिनों से तुम यहाँ आते जाते हो, कोई जान पहचान भी नहीं है क्या? तिस पर सुभाष ने कहा रोज़ का आना जाना तो आपका भी यहाँ लगा रहता है। आप ही जान पहचान निकाल लो ना।उसपर से आपकी तरह मुझे सैलरी भी तो समय पर नहीं मिलती। दिया तो उतना हीं जलेगा जितना की उसमे तेल पड़ा हो।

आपसी नोक झोंक और ऊपर नीचे करते हुए दोनो काफी थक चुके थे। धीरे-धीरे चलते हुए लाइब्रेरी के सेकंड फ्लोर पर पहुंचे और वहां पर जाकर उन लोगों ने उस नोटिफिकेशन के बारे में पूछताछ की। वहां पर उन्हें बताया गया कि यहां पर तकरीबन 40 साल से पहले की सारी नोटिफिकेशन की डिजिटल कॉपी मौजूद है। उसने नीरज को वहां पर एक कंप्यूटर के सामने बैठा दिया और कहा कि वह इन नोटिफिकेशन की छानबीन कर सकता है।

नीरज के साथ वहां पर सुभाष भी बैठ गया। पर कंप्यूटर सेल के इंचार्ज ने सुभाष को वहां पर बैठने से मना कर दिया। उसने कहा कि यहां पर केवल नीरज बैठ सकता है यहां पर क्लर्क नहीं बैठ सकते। नीरज के सामने बहुत बड़ी समस्या थी। उन 40 साल के सारी फाइलों, नोटिफिकेशन में से एक नोटिफिकेशन को निकालना। यानी कि लगभग 600-700 फाइलों में से किसी एक फाइल में पड़े एक नोटिफिकेशन को पढ़ना। यह कैसे हो?

नीरज ने हिम्मत नहीं हारी और उसने अपना दिमाग लगाया। उसे यह बताया गया था कि तकरीबन 15 साल पहले की फाइलों में इस तरह की नोटिफिकेशन आई थी। नीरज 10 साल पहले की फाइलों को पढ़ना शुरू किया। और तकरीबन 3 साल पीछे जाते हीं उसको वह नोटिफिकेशन मिल गया। मेहनत तो काफी करनी पड़ी पर इस बात से दोनों को बहुत खुशी हुई कि उनकी मेहनत सफल हुई।

नीरज ने तुरंत हीं उस नोटिफिकेशन की कॉपी ली और अपने मोबाइल से उसका फोटो खींच लिया। जैसे ही नीरज उस नोटिफिकेशन को अपने व्हाट्सएप से अरोड़ा साहब के मोबाइल पर भेजना चाहा, सुभाष ने उसे ऐसा करने से रोक लिया। सुभाष ने कहा कि यह बात काफी गुप्त है। यदि व्हाट्सएप पर किसी और ने देख लिया तो समस्या खड़ी हो सकती है। नीरज ने सुभाष की बात मान ली।

सुभाष ने अरोड़ा साहब के मोबाइल पर फोन किया तो उस फोन को अरोड़ा साहब के सेक्रेटरी दीपक ने रिसीव किया। सुभाष ने दीपक से कहा कि एक बहुत ही जरूरी मैसेज है ,अरोडा साहब को बताना है। दीपक ने पूछा क्या है मैसेज? सुभाष ने मैसेज बताने से मना कर दिया। सुभाष को इस समय अपने आप पर काफी अभिमान आ रहा था। दरअसल दीपक साहब का सेक्रेटरी था और इस बात का उसे हमेशा घमंड रहता था कि जितनी भी गुप्त बातें थीं वो उन सारी बातों को वह जानता था। कितनी ही बार उसने सुभाष को झिड़क दिया था। लेकिन इस बार पासा सुभाष के हाथ में था। दीपक बार-बार पूछ रहा था सुभाष से , लेकिन सुभाष ने कहा जाकर साहब से कहो कि वह नोटिफिकेशन मिल गया है। दीपक को ये बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर में वह कौन सा नोटिफिकेशन है जिसके बारे में सुभाष को पता है और उसे पता नहीं है? सेक्रेटरी और क्लर्क के बीच जंग चल रहा था। जंग में हमेशा जीतने का आदि रहा सेक्रेटरी इस अनपेक्षित हार से परेशान और दुखी हो चला। इधर हमेशा पराजित होने वाला क्लर्क जीत के इस मौके को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। अंत में जीत सुभाष की हुई। दीपक ने सुभाष की बात को और अरोड़ा साहब तक पहुंचा दिया।

अब पासा सुभाष के हाथों में थी। उसने नीरज से कहा कि आप यह मत बताइएगा कि कंप्यूटर से नोटिफिकेशन को निकाला है। सुभाष ने नीरज से कहा कि आप यह बता दीजिएगा कि उस नोटिफिकेशन को सुभाष ने बहुत सारी फाइलों को छानबीन करके पैसा खिला कर निकाला है। दरअसल इस मौके का इस्तेमाल सुभाष कुछ पैसे कमाने के लिए करना चाह रहा था। नीरज बहुत ही ईमानदार आदमी था। उसने ऐसा करने से मना कर दिया। नीरज ने कहा कि यदि अरोड़ा साहब पूछेंगे कि फाइलें उसने कैसे निकाली है तो वह इस बात को बता देगा कि कंप्यूटर से निकाली है। यदि यह नहीं पूछा कि किस तरह से नोटिफिकेशन निकाला गया है तो वह अपनी तरफ से बताएगा नहीं।

नीरज ने शक की निगाहों से सुभाष की तरफ देखा।सुभाष को नीरज का उड़ती शक की निगाहों से देखना गवारा न लगा। सुभाष ने कहा कि अरोड़ा साहब भी तो उसे हर महीने की सैलरी बराबर समय पर नहीं देते। वह अपनी काम को पूरी ईमानदारी से करता है। ऐसा कोई काम नहीं करता है जिससे अरोड़ा साहब को नुकसान पहुंचे। फिर भी यदि वह बीमार पड़ता है तो अरोड़ा साहब उसके पैसे काट लेते हैं। हॉस्पिटल में जाने पर यदि ऑफ़िस नहीं आता है तो उस दिन की पगार उसे काट ली जाती है। यहां तक कि उसके जितने भी ओवरटाइम के पैसे हैं ,जितने भी बोनस के पैसे हैं उन पैसों को मांगने पर भी एक बार में वह पैसे नहीं मिलते। नीरज बाबू आपको तो पैसे समय पर मिल जाते हैं। आपका तो पैसा छुट्टी लेने पर नहीं कटता। यदि उसकी ईमानदारी के साथ भी बेईमानी की जा रही है तो वह भी वैसी बेईमानी क्यों न करें। वैसे भी उसकी बेईमानी से अरोड़ा साहब को तो कोई नुकसान नहीं पहुँचता, अलबत्ता उसे फायदा ज़रूर हो जाता है। नीरज चाह कर भी सुभाष को यह नहीं बता पाया कि उसके भी बोनस के पैसे समय पर नहीं मिलते।

नीरज ने कहा कि यदि कोई लोमड़ी की तरह व्यवहार कर रहा है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम भी लोमड़ी की तरह ही व्यवहार करने लगो। नीरज ने सुभाष से पूछा, क्या तुमने साधु और बिच्छू की कहानी नहीं सुनी है? नीरज बोलता गया। उसने सुभाष को कहानी याद दिलाई। एक साधु था। वह तालाब में सुबह सुबह स्नान करने गया हुआ था। वहां पर उसने एक बिच्छू को देखा। उस तालाब में वह बिच्छू डूब कर मरने वाला था। साधु बार बार अपने हथेली में बिच्छू को लाकर किनारे पर डालने की कोशिश करता, और बिच्छू बार बार साधु को डंक मारता। साधु का स्वभाव था बिच्छू को बचाना और बिच्छू का स्वभाव था साधु को काटना।

गिद्ध सड़े गले मांस को खाकर जिंदा रहता है। पर गिद्ध के सड़े गले मांस के खाने के हंस का स्वभाव तो नहीं बदलता। कौए को लाख मिठाई खिला दो, पर वो काँव काँव ही करेगा। कौए को देखकर तोता तो राम नाम जपना तो नहीं छोड़ता। माना कि अरोड़ा साहब तुम्हारे साथ बेईमानी करते हैं, न्याय नहीं करते पर इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम भी उनके साथ बेईमानी करने लगो। अरोड़ा साहब के स्वभाव में हीं बेईमानी है। वो व्यवसायी है, व्यापार केवल ईमानदारी के भरोसे चलता भी नहीं। तुम तो अपने स्वभाव में रहो।

राम और रावण दोनों को दुनिया याद रखती है। राम अपने स्वभाव के कारण जाने जाते हैं और रावण अपने कर्मों के कारण। दुर्योधन के रास्ते को युद्धिष्ठिर ने कभी नहीं अपनाया। इसी तरीके से तुम भी अपने रास्ते से मत चूको। माना कि अरोड़ा साहब समय पर पैसे नहीं देते, पर पूरे पैसे दे तो देते हैं। यदि छुट्टी के पैसे काटते हैं तो उनसे बात करो। इन सारी बातों को मन मे क्यों रखते हो?

सुभाष ने कहा कि मुझे यह सारी बातें समझ में नहीं आती है। पढ़ा लिखा आदमी नहीं हूं। मैं तो सिर्फ इतना जानता हूं कि मेरी ईमानदारी के साथ बेईमानी की जाती है। तो फिर मैं अरोड़ा साहब साथ में थोड़ी सी बेईमानी क्यों न करूं? प्रभु श्रीराम समुद्र के किनारे 3 दिन तक याचना करते रहे, आखिर में जब उन्होंने धनुष ताना तभी समुद्र उनके आगे झुका।

याद कीजिए पांडवों ने भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन आदि का वध कैसे किया? यहाँ तक कि राम ने भी बाली का शिकार छिप कर ही किया था। सियार के सामने कोई हनुमान चालीसा का पाठ करता है क्या? भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा? यदि कोई जंगल के कानून से चलता है तो उसको जंगल के कानून हीं समझ आते है। कोई अच्छा है इसका मतलब ये नहीं कि वो कमजोर है।

नीरज ने कहा कि सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए असीम ताकत चाहिए होती है।यदि तुम किसी की बेईमानी से प्रभावित होते हो इसका कुल मतलब इतना ही है कि तुम कमजोर हो। होना ये चाहिए कि तुम्हारी अच्छाई का असर बेईमानों पे हो। तुमने गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी नहीं सुनी क्या? गौतम बुद्ध के प्रभाव में आकर अंगुलिमाल कैसे बौद्ध भिक्षु बन गया? नारद मुनि के कारण डाकू रत्नाकर महाकवि वाल्मीकि बन गया।यदि तुम मे पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़ने का सामर्थ्य नहीं है तो इसमें पहाड़ की चोटी क्या दोष? कोई ना कोई तो पहाड़ की चोटी पर चढ़ता हीं है। यदि स्वयं में सामर्थ्य नहीं है तो कम से कम रास्ते की महत्ता का अपमान तो मत करो।

खैर तुम तो मानोगे नहीं। तुमको जो करना है करो। मेरी तो स्वभाव में बेईमानी है ही नहीं। भाई मैं तो सुबह सुबह उठकर रोज़ ध्यान करता हूं। ध्यान में ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूं कि जिन सिद्धांतों का पालन मेरे पिता ने किया है , उन सिद्धांतों और आदर्शों पर मैं टिका रहूं। और एक बात और है, मैं चाह कर भी बेईमानी नहीं कर सकता। नीरज ने वह नोटिफिकेशन सुभाष के हाथ में पकड़ा दिया और वहां से चल दिया।अरोड़ा साहब अपनी करनी का फल भुगतेंगे और तुम अपनी करनी का। मैं तो अपने रास्ते इसलिए चलता हूँ कि मुझे सुकून मिलता है और इससे मेरा दिल हल्का रहता है।

सुभाष ने कहा , आपकी बात सही है, लेकिन आदर्शों से दुनिया नहीं चलती। मेरे बाबूजी गांव से आये थे। उन्हें हॉस्पिटल दिखाने के लिए चार दिन की छुट्टी ली थी। अरोड़ा साहब ने पैसे काट लिए। बोनस के पैसे भी नहीं दे रहे हैं। हालांकि पैसे पूरे दे देते हैं, पर समय पर नहीं मिलने पर क्या फायदा। इन आदर्शों के भरोसे दवाई कहाँ से लाऊं? मैं तो ठहरा गँवार आदमी। आपकी तरह पढ़ा लिखा नहीं। मुझे तो बस इतना पता है कि जिस मरीज़ को जैसी बीमारी हो, उसे वैसी हीं दवा दिया जाना चाहिए। जंगल के कानून से जीने वाले व्यक्ति भक्ति के पाठ से कभी नहीं सुधरते। ईमानदारी कभी भी बेइमानी का इलाज नहीं हो सकती। बेईमानी तो बेईमानी से हीं पछाड़ खा सकती है।

नीरज ने सुभाष की फिर समझाने की कोशिश की। उसने कहा कि बेईमानी को ठीक करने का ठेका उसने अपने सर पर क्यों उठा रखा है। बेईमानों को सजा देने का काम तो ईश्वर का है। तुमको दिखाई नहीं पड़ता, अरोड़ा साहब को बी.पी. है, मधुमेह है, थाइरॉयड की बीमारी है? मसाला खा नहीं सकते, मीठा खा नहीं सकते, तितापन, खट्टापन ,धूल धक्कड़ से एलर्जी है उनको। दूध , दही से परहेज करना पड़ता है।ये सारी बेईमानियां उनके शरीर से निकल रही है। तुम्हें दिखाई नहीं पड़ती क्या?

सुभाष ने कहा कि चलिए मान लिया कि अरोड़ा साहब को अपनी करनी का फल मिल रहा है, पर इससे उसको क्या फायदा हुआ? अरोड़ा साहब के बी.पी., मधुमेह या थाइरॉयड , एलर्जी होने से उसके पिता का इलाज तो संभव नहीं हो पा रहा है ना? और यदि बेईमानी की सजा उसे मिलती है तो उसे कोई अफसोस नहीं होगा। कम से कम उसके पिता का इलाज तो संभव हो पायेगा। नीरज को समझ आ गया कि भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा होने वाला नहीं।

तकरीबन आधे घंटे बाद अरोड़ा साहब वहां पर आए। सुभाष और नीरज दोनों की प्रशंसा खुले दिल से करने लगे। जब नीरज ने अरोड़ा साहब को उस नोटिफिकेशन को दिखाना चाहा , साहब ने कहा कि नोटिफिकेशन सुभाष ने व्हाट्सएप से पहले ही भेज दिया है। अरोड़ा साहब ने सुभाष को बुलाकर कहा, जितने पैसे खर्च हुए हैं, जाकर दीपक से ले लेना। नीरज चुप चाप देखता रहा।सुभाष ने 5000/- रुपये नोटिफिकेशन के खर्चे के नाम पर ले लिए। उन रुपयों से उसने अपने बीमार पिता के लिए दवाईयाँ खरीदी और गाँव भेज दिया। बेईमानी

के नमक का हक अदा हो चुका था।


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