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दरिया को साहिल से मिलना ही होगा

दरिया को साहिल से मिलना ही होगा

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मयुरी-सी नज़रें
वो चन्दा-सा चेहरा
बिखरी-सी ज़ुल्फ़ें
समेटें अँधेरा |

उस दरिया किनारे बनी एक कहानी
हमें संग बितानी थी ये ज़िंदगानी |
दिल में उतरकर इन ख्वाबों को रंगकर
मिले हमसे तुम
तुम हुए हम
हम हुए तुम
आखिर क्यों हूँ मैं गुमसुम
जो तुम हुए गुम ?

मिलती थी मुझको वो आकर यहीं पे
यही था किनारा वो लम्हे यही थे
कहाँ ले गयी हो उन खुशियों को तुम
आओ लौटाओ
हुआ खुदसे में गुम !

वो किस्से पुराने कहानी पुरानी
हमारी तुम्हारी रवानी पुरानी |
न आस है अब
न वो पास है अब
वो बची सांसें भी
न जाने कहाँ गयी गुम |

वो गीत पुराने वो नज़्में पुरानी
तुम बिन हर ग़ज़ल की गुज़ारिश पुरानी |
चुप हूँ मैं
आवाज़ हो तुम
मेरे गीतों का
साज़ हो तुम
फिर साज़ गीतों से
कहाँ है गुम ?

दरिया को साहिल से मिलना ही होगा
उन साँसों को मुझमे फिर ढलना ही होगा
बिखरती गूँज हूँ मैं
विराम हो तुम
सदा मुझसे जुड़ा
मेरा नाम हो तुम !
यूँ कब तक रहोगे गुम
यूं कब तक रहोगे गुम ?

 


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