पासवर्ड
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कॉफी शॉप से सटे फुटपाथ पर धीरे धीरे भीड़ लग रही थी। किसी लड़के की डेडबॉडी पड़ी थी वहां, वहिं काफ़िशाप के अंदर बैठी लड़की के आसपास लोग जमा हो रहे थे। भाएँ भाएँ करती कई सारे आवाज़ें और फिर अचानक कानों में एक तीखी सीटी की आवाज़ और वो लड़की बेहोश हो गई थी वहाँ।
एक तरफ अर्थव्य देख रहा था खुद को ज़मीं पे बिखरे मरते हुए और दूसरी तरफ देख रहा था शीशे के उस पार बैठी यशस्विनी को।
५ मिनटपहले कॉफ़ी शॉप से बगैर बाय बोले यशस्विनी के कॉफी कप में हाँथ मारकर,बाहर निकल आया था वो, अब उसके चेहरे पे कोई भाव नही था। अब वह मुक्त था हर बंधन से। अंदर से कांच की खिड़कियों से झाँकती यशस्विनी, अर्थव्य को कदम दर कदम दूर जाते हुए देख रही थी खुद से। आंखों में आंसू भरे थे और हथेलियों में कॉफी से भीगा हुआ खत। जो अर्थव्य ने जाते वक्त उसके हाँथो मे थमा दिया था।
"मेरी यशस्विनी,
मैं चाहता तो आज हम दोनों ये कॉफी पी सकते थे
लेकिन मैं तुम्हे आज़ाद कर रहा हूँ"।
चरित्रहीन वो नही होता जो कई बार प्रेम करता है चरित्रहीन
वो होता है जो एक समय में एक से ज्यादा प्रेम करता है"।
तुम्हारा अर्थव्य ।